मॉ, भारतीय रेलवे के अलावा इस संसार में अपना कौन है ?

बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है

हुजूर, आपके तबज्जों का इन्तजार है .........................

अकबर का मकबरा सिकन्दरा, आगरा

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नोट की शान

Gaurav Saxena

 

                           
नोट की शान

                            नोट की शान


ऐ छुट्टन साइड दोजहॉ देखो वहॉ खड़े हो जाते हो, 2000 के नोट ने इठलाते हुयें 500 के नोट से कहा। तो तुरन्त 500 के नोट ने पलटकर जबाब दिया – छोटे समझने की भूल भी करनामैं देखनें में ही छोटा लगता हूं लेकिन घाव बहुत गम्भीर करता हूं। मेरी शक्ति के आगे बड़े से बड़ा  व्यक्ति भी नतमस्तक है। पूरे बाजार में मेरा ही डंका बजता है तुम्हे तो कोई भूल से भी नही लेना चांहता है। तुम बड़े हुये तो क्या हुआ बड़ा तो पेड़ खजूर भी होता हैजो किसी भी काम का नही होता है।
बस-बस छुट्टन ज्यादा ज्ञान मत बांटो। जिस तरह से तुम छोटे हो वैसे ही तुम्हारे विचार भी छोटे है। तुम कभी बड़ा सोच भी नही सकते हो। बड़े आये मेरी बराबरी करने वालेतुम तो मेरे पैरो की धूल के बराबर भी नही हो।


तुम बाजार और मेला-मदार में भले ही छोटी-मोटी पहचान रखते हो लेकिन बड़े लेन-देन और व्यापार में तुम्हे कोई नही पूंछता। तुम्हे पता भी है कि मैनें लोगो के काम को कितना आसान कर दिया है। बड़ी से बड़ी रकम मेरे चन्द नोटो में समा जाती हैआराम से कोई भी इधर-उधर ला-ले जा सकता है। कितने लोगो के अटके पड़े कामों को मेरे चन्द नोटो नें मुठ्ठी में दबकर चन्द मिनटो में पूर्ण करवाया है। मैने लेन-देन की परिभाषा ही बदल दी हैअब कोई भी आसानी से डेस्क के नीचे से मुझे बाबू लोगो से मिलवा सकता है। मैं ही तो हूं जिसनें बाबू लोगो की तिजोरियो की शान बढ़ाई हैअब तिजोरियां मेरे रूप रंग की खुशबू से सराबोर रहती है। अब इत्र की जगह बाबू लोग मेरी सुगन्ध सूंघते है। मेरे रूप रंग की दीवानगी का अन्दाजा तो इस बात से ही लगाया जा सकता है कि बाबू लोग मुझे अपने बेड के नीचे बिछाकर उसके ऊपर अपना भारी भरकम शरीर रखकर सारी रात हसीन स्वप्न देखते है।


अब तुम ही बताओं क्या मुझसे पूर्व यह सबकुछ सम्भव था। मेरी बजह से ही बाबू लोग आज चैन की वंशी बजा पा रहे है। तुम्हारा जन्म भले ही मुझसे पहले हुआ हो लेकिन आयु में बड़ा होना आज कोई मायनें नही रखता है। जरूरी नही कि हर सफेद बाल वाला व्यक्ति ज्ञानी और अनुभवी हो। अब सब बाते केवल कहने मात्र की ही रह गयी है।
इतना मत इठलाओ लम्बू दादाजहॉ काम आवे सुई तो कहा करे तलवारि। वो समय याद करो जब तुम्हारे छोटे भाई 1000 रू0 के नोट को सरकार नें रातो-रात बन्द कर दिया थाफिर तुम्हारे बाबू लोग क्यो फड़फड़ाने लगे थें। तब बैंक की पूछ-ताछ का सामना क्यो नही कर पाये थे तुम्हारे बाबू लोग। समय बलवान होता है भविष्य किसी नें नही देखाइसलिए अपने बड़े होने पर इतना घमण्ड मत करो।


अरे- अरे जाने दोजाने दोमुझे तुम्हारे साथ रहनें में घुटन होने लगी है। बैंक क्लर्क के बक्से में पड़े 2000 के नोट नें यह कहकर छलांग लगाई और तभी अचानक बैंक में मेल आयी कि अब सरकार 2000 का नोट बन्द करनें जा रही हैजिसके लिए निर्धारित समय-सीमा भी तय की गयी है जिसमे लोग 2000 के नोट को बैंक में जमा कर सकते है।
यह खबर सुनते ही 2000 का नोट 500 रू0 के नोट के पास आकर फफक-फफककर रोने लगा और उधर बाबू लोग सर पकड़ कर बैठे थे। जिन्होनें नें अपनें बेड और तिजोरियों को 2000 के नोटो से भर रखा था। बेड और तिजौरियों में पड़े 2000 के नोटो की संख्या के आगे बैंक में जमा करने की यह निर्धारित समय सीमा तो कुछ भी नही है। अब बेचारे करे भी तो क्या करेइधर कुआं और उधर खाई।
 
लेखक
गौरव सक्सेना


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र 'देशधर्म' नें अपने 21 मई 2023 के अंक में प्रकाशित किया है। 


नोट की शान


लपकलाल का सपना

Gaurav Saxena

 

लपकलाल का सपना


लपकलाल का सपना


शार्टकट में लांग जंप लगाने की तमन्ना हर किसी को सूट नहीं करती है। किसी को शार्टकट रातो-रात करोड़पति बना देता है तो किसी को रोड़पति। लेकिन हमारे लपकलाल जी को कौन समझाये कि शार्टकट हानिकारक भी हो सकता है। नहीं माने और पहुंच गये अपने गुरू घंटाल के पास-

गुरू – क्या हुआ वत्स, परेशान नजर आ रहे हो, सबकुछ खैरियत तो है ना।

लपकलाल – जी कुछ भी सही नही चल रहा है मैं अत्यन्त परेशान हूं। इसी के समाधान के लिए आपकी शरण में आया हूं।

गुरू – लेकिन तुम्हारा तो चोरी चकारी काम सही चल रहा था फिर अचानक से क्या भूचाल आ गया।

लपकलाल – अरे गुरूदेव, चोरी चकारी के चलते कई बार जेल के दर्शन कर चुका हूं और पुलिसियां लठ्ठ भी खा चुका हूं। बड़ी जुगाड़ लगवाकर जेल से छूटा हूं। अब गुरूदेव कोई अन्य काम बताओ जिसमें जेल-वेल का चक्कर न हो। सिर्फ आराम ही आराम हो, फ्री का खाना- पीना हो और मौज-मस्ती भी खूब करने को मिले।  

गुरू घंटाल ने देर तक अपने बिना धुले बाल खुजलाये और दिमाग पर जोर दिया। बहुत देर बाद गुरूदेव बोलने की मुद्रा में आये।

गुरू – देख बेटा लपकलाल तेरे लिए मेरे दिमाग में एक काम है जिसमे आराम के साथ-साथ पैसा ही पैसा है।

लपकलाल – जल्द बताये गुरूवर विलम्ब कैसा ....

गुरू – देख लपकलाल तुम्हारा रूप, कद काठी और बोल-चाल का लहजा सब कुछ बहरूपिया है। बस इसी बहरूपिया रूप को अवसर में तब्दील कर लो। इसी रूप को अपने जीवन में उतार कर आराम से जीवन यापन करो।

लपकलाल – मैं कुछ समझा नही गुरूवर.......

अब कान लगाकर मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम किसी दूर गॉव में जाकर एक झोपड़ी बनाओ और उसमे बहरूपिया बाबा बनकर रहने लगो। अपनी असली पहचान छुपाकर रखना। लोगो की भावनाओ से खेलना शुरू करो, व्यक्ति के अनुरूप घिसे- पिटे शब्दो का प्रयोग करके उनका भविष्य बताने लगो। धीरे- धीरे इस व्यवसाय में पैर जमाओ फिर देखो कमाल, इतनी गुरूदक्षिणा मिलेगी कि लेखा- जोखा रखने के लिए भी एकाउन्टेंट रखने पड़ेगे।

लपकलाल – लेकिन मैं किसी का भविष्य कैसे बता पाऊंगा, मुझे तो अपना ही भविष्य नही दिख रहा है।

गुरू – इसके लिए चन्द वाक्यो को रटना होगा। जैसे किसी भी व्यक्ति को देखकर कह सकते हो कि उसका जीवन संघर्षों में बीता है, उसने सभी के साथ भला ही किया है, उसे धोखा ही दिया है इस सन्सार ने, आप मेहनत की रोजी –रोटी खाने वाले व्यक्ति है, वगैरह – वगैरह..  

इस तरह के वाक्य सभी पर फिट बैठ जायेगे और लोग खुश होकर दक्षिणा देगे, खाना फल मेवा भी देगे। धीरे- धीरे प्रवचन फिर कथा और अपनी मेहनत के हिसाब से आगे का सफर तय करते जाना।   

ठीक है गुरूदेव, मैं समझ गया कहकर लपकलाल चल दिया और दूर गॉव में बाबा बन बैठा। देखते ही देखते उसका नाम फैल गया। भविष्य जानने के लिए दूर-दूर से भक्त आने लगे, किसी एक- दो व्यक्ति के काम बन भी गये तो उन भक्तो की फोटो मय फोन नम्बर के कुटियां में प्रमाण हेतु लटका दी गयी। चन्द श्लोक भी सीख लिए जिससे प्रवचन गूढ़ ज्ञान और अधिक प्रभावी लगने लगा।

एक दिन नगर के एक बड़े व्यापारी के यहॉ से सत्यनारायण कथा का बुलावा आया तो लपकलाल नें जल्दी- जल्दी में गलती से अपनी पोटली में कथा की किताब की जगह गरूण पुराण की पुस्तक रख ली जो कि किसी कि मृत्यु के बाद आत्मा को शांति प्रदान करनें के उद्देश्य से पढ़ी जाती है।

कथा कहने के लिए लपकलाल नें थैले में हाथ डाला तो किताब बदली दिखी, यह देख उसका दिमाग चकरा गया, फिर सोचा कि अब तो वह अनुभवी हो चुका है और फिर यह व्यापारी तो स्वयं अनपढ़ है खुद इसके कर्मचारी इसको रात-दिन चूना लगा रहे है। वह भला क्या जान पायेगा कि मैं कौन सी कथा की पुस्तक लाया हूं।

 

शांति - शांति के शब्दों की भरमार के साथ जब कथा समाप्त हुयी तो व्यापारी बोला कि इसमें लीलावती और कलावती तो आयी नहीं वह कहां चली गयी।

तो लपकलाल बोला कि वे दोनों ही अपने मायके गयी है, लेकिन व्यापारी की शिक्षित पत्नी कथा के अन्तिम चरणो में मायके से लौट आयी थी, और लपकलाल के हाथों में गरूण पुराण की पुस्तक देखकर बौखला उठी।

फिर क्या था दे दना दन – दे दना दन कार्यक्रम प्रसाद वितरण समारोह का हिस्सा बन चुका था। लपकलाल अस्पताल में दर्द से कराह रहा था, लपकलाल का शोर्टकट में करोड़पति बनने का सपना अधूरा ही रह गया। उधर गुरू घंटाल के पास भी बात पहुंच चुकी थी और वह भी अपनी पहचान और स्थान बदलते घूम रहे थें।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना


शार्टकट में लांग जंप लगाने की तमन्ना हर किसी को सूट नहीं करती है। किसी को शार्टकट रातो-रात करोड़पति बना देता है तो किसी को रोड़पति। लेकिन हमारे लपकलाल जी को कौन समझाये कि शार्टकट हानिकारक भी हो सकता है। नहीं माने और पहुंच गये अपने गुरू घंटाल के पास-

गुरू – क्या हुआ वत्स, परेशान नजर आ रहे हो, सबकुछ खैरियत तो है ना।

लपकलाल – जी कुछ भी सही नही चल रहा है मैं अत्यन्त परेशान हूं। इसी के समाधान के लिए आपकी शरण में आया हूं।

गुरू – लेकिन तुम्हारा तो चोरी चकारी काम सही चल रहा था फिर अचानक से क्या भूचाल आ गया।

लपकलाल – अरे गुरूदेव, चोरी चकारी के चलते कई बार जेल के दर्शन कर चुका हूं और पुलिसियां लठ्ठ भी खा चुका हूं। बड़ी जुगाड़ लगवाकर जेल से छूटा हूं। अब गुरूदेव कोई अन्य काम बताओ जिसमें जेल-वेल का चक्कर न हो। सिर्फ आराम ही आराम हो, फ्री का खाना- पीना हो और मौज-मस्ती भी खूब करने को मिले।  

गुरू घंटाल ने देर तक अपने बिना धुले बाल खुजलाये और दिमाग पर जोर दिया। बहुत देर बाद गुरूदेव बोलने की मुद्रा में आये।

गुरू – देख बेटा लपकलाल तेरे लिए मेरे दिमाग में एक काम है जिसमे आराम के साथ-साथ पैसा ही पैसा है।

लपकलाल – जल्द बताये गुरूवर विलम्ब कैसा ....

गुरू – देख लपकलाल तुम्हारा रूप, कद काठी और बोल-चाल का लहजा सब कुछ बहरूपिया है। बस इसी बहरूपिया रूप को अवसर में तब्दील कर लो। इसी रूप को अपने जीवन में उतार कर आराम से जीवन यापन करो।

लपकलाल – मैं कुछ समझा नही गुरूवर.......

अब कान लगाकर मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम किसी दूर गॉव में जाकर एक झोपड़ी बनाओ और उसमे बहरूपिया बाबा बनकर रहने लगो। अपनी असली पहचान छुपाकर रखना। लोगो की भावनाओ से खेलना शुरू करो, व्यक्ति के अनुरूप घिसे- पिटे शब्दो का प्रयोग करके उनका भविष्य बताने लगो। धीरे- धीरे इस व्यवसाय में पैर जमाओ फिर देखो कमाल, इतनी गुरूदक्षिणा मिलेगी कि लेखा- जोखा रखने के लिए भी एकाउन्टेंट रखने पड़ेगे।

लपकलाल – लेकिन मैं किसी का भविष्य कैसे बता पाऊंगा, मुझे तो अपना ही भविष्य नही दिख रहा है।

गुरू – इसके लिए चन्द वाक्यो को रटना होगा। जैसे किसी भी व्यक्ति को देखकर कह सकते हो कि उसका जीवन संघर्षों में बीता है, उसने सभी के साथ भला ही किया है, उसे धोखा ही दिया है इस सन्सार ने, आप मेहनत की रोजी –रोटी खाने वाले व्यक्ति है, वगैरह – वगैरह..  

इस तरह के वाक्य सभी पर फिट बैठ जायेगे और लोग खुश होकर दक्षिणा देगे, खाना फल मेवा भी देगे। धीरे- धीरे प्रवचन फिर कथा और अपनी मेहनत के हिसाब से आगे का सफर तय करते जाना।   

ठीक है गुरूदेव, मैं समझ गया कहकर लपकलाल चल दिया और दूर गॉव में बाबा बन बैठा। देखते ही देखते उसका नाम फैल गया। भविष्य जानने के लिए दूर-दूर से भक्त आने लगे, किसी एक- दो व्यक्ति के काम बन भी गये तो उन भक्तो की फोटो मय फोन नम्बर के कुटियां में प्रमाण हेतु लटका दी गयी। चन्द श्लोक भी सीख लिए जिससे प्रवचन गूढ़ ज्ञान और अधिक प्रभावी लगने लगा।

एक दिन नगर के एक बड़े व्यापारी के यहॉ से सत्यनारायण कथा का बुलावा आया तो लपकलाल नें जल्दी- जल्दी में गलती से अपनी पोटली में कथा की किताब की जगह गरूण पुराण की पुस्तक रख ली जो कि किसी कि मृत्यु के बाद आत्मा को शांति प्रदान करनें के उद्देश्य से पढ़ी जाती है।

कथा कहने के लिए लपकलाल नें थैले में हाथ डाला तो किताब बदली दिखी, यह देख उसका दिमाग चकरा गया, फिर सोचा कि अब तो वह अनुभवी हो चुका है और फिर यह व्यापारी तो स्वयं अनपढ़ है खुद इसके कर्मचारी इसको रात-दिन चूना लगा रहे है। वह भला क्या जान पायेगा कि मैं कौन सी कथा की पुस्तक लाया हूं।

 

शांति - शांति के शब्दों की भरमार के साथ जब कथा समाप्त हुयी तो व्यापारी बोला कि इसमें लीलावती और कलावती तो आयी नहीं वह कहां चली गयी।

तो लपकलाल बोला कि वे दोनों ही अपने मायके गयी है, लेकिन व्यापारी की शिक्षित पत्नी कथा के अन्तिम चरणो में मायके से लौट आयी थी, और लपकलाल के हाथों में गरूण पुराण की पुस्तक देखकर बौखला उठी।

फिर क्या था दे दना दन – दे दना दन कार्यक्रम प्रसाद वितरण समारोह का हिस्सा बन चुका था। लपकलाल अस्पताल में दर्द से कराह रहा था, लपकलाल का शोर्टकट में करोड़पति बनने का सपना अधूरा ही रह गया। उधर गुरू घंटाल के पास भी बात पहुंच चुकी थी और वह भी अपनी पहचान और स्थान बदलते घूम रहे थें।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र दैनिक जागरण नें अपनें 15 मई 2023 के राष्ट्रीय  अंक में प्रकाशित किया है। 

लपकलाल का सपना


व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर

Gaurav Saxena

          
व्हाट्सएप यूनीवर्सिटी का प्रोफेसर

                   

                           व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर


व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को अपने नयें कार्यालय के लिए ठलुआनिकम्में व्यक्तियों की आवश्यकता है। पूर्व में एडमिन रह चुके युवक – युवतियों को वरियता दी जायेगी। वेतन योग्यतानुसार न होकर अनुभव के आधार पर होगा। अनुभव के तौर पर पूर्व में अफवाह फैलानें वाले, भ्रामक सन्देश भेजनें वालेदंगे भड़कानें वालेअमर्यादित सन्देश वालों के अनुभवों को वरीयता के आधार पर विशेष मान्यता दी जायेगी।
जैसे ही अखबार में यह खबर पंगुलाल नें पढ़ी तो वह खुशी से झूम उठाउसका मन मयूर नृत्य करनें लगा। खबर की कटिंग को पर्स में दबाकर अपनें गुरू चंगुलाल के पास पहुंचा तो चंगूलाल आराम से धूप में बैठा अलसिया रहा था और बीच- बीच में व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में अपनें अनुभव साझा भी करता जा रहा था।
गुरूदेव चरण स्पर्श.....
आयुष्मान भव वत्स, कैसे आना हुआ। सब खैरियत तो है ना।
जी गुरूदेवयह आपकी कृपा और दीक्षा के बल का ही प्रभाव है कि जो जीवन कुशल मंगल से व्यतीत हो रहा है। गुरूदेव आप यह अखबार की कटिंग देखे और इस विज्ञप्ति में मेरे पद की दावेदारी पर अपना आर्शीवाद प्रदान करें।
गुरुदेव नें अपनें अन्धे हो चुके चश्में से नजर गढ़ाकर कटिंग को गौर से पढ़ा औऱ बोले कि बेटा -  काम तो अच्छा है नाम औऱ इज्जत भी खूब है। लेकिन ..........
लेकिन क्या गुरूदेव, जल्द बताइयें।
देखो बेटा पंगु वैसे तो आजकल उल्टा सीधाकाला- सफेद सब कुछ चल रहा है या कहे कि दौड़ रहा है। लेकिन समाज में एक वर्ग व्यंग्य लेखकों का है जो समाज में घटित होनें वाली हर एक खबर पर अपनी पैनी नजर रखते है। यदि जरा सी भी ऊंच-नीच हुयी तो समझों कि गयी भैस पानी में। नौकरी छोड़ो जेल भी जा सकते हो। हम जैसे लोगो को सबसे ज्यादा खतरा इन व्यंग्य लेखकों से ही है जिनके व्यंग्य वाण से बच पाना नामुकिंन है।
तो फिर गुरूदेव क्या करेंक्या निठल्ले बैठ कर गप्पे लड़ायें। मैं तो बहुत उम्मीद के साथ आपके पास आया थाऔर आपने तो भयभीत कर दिया।
नही बेटाभयभीत नही होना है निर्भीक होकर काम करना है। जब इतनी विसंगतियों के बीच व्यंग्य लेखक निर्भीक होकर लिख रहे हैनित्य नयें विषयों से समाज को आईना दिखा रहे है तो फिर हमें भी निर्भीक होकर अपना काम करते जाना है। यदि हमनें अपना काम छोड़ दिया तो फिर इस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को कौन पूछेगाइसके लिए आखिर हमें ही तो काम करना होगा। समाज में नफरतभ्रमजालअफवाहे हम नही फैलायेगे तो कौन फैलायेगा। अखिर इन्ही नफरतो की आंच में तो हम अपनी रोटी सेंकते है और इसी से अपना पेट पलता है। तुम निडर हो इस पद के लिए आवेदन करों और नौकरी पाकर मेरा भी ध्यान रखना।
आपका ध्यान कुछ समझा नही गुरूदेव...
ध्यान से अभिप्राय यहीं है कि अगली बार जब इस यूनिवर्सिटी में कुलपति के लिए भर्ती निकले तो मुझे तुरन्त बताना क्योकि मेरे लिए यहीं पद सबसे उपयुक्त होगा और इसीं पद पर आसीन होकर मैं ज्ञान की अविरल गंगा प्रवाहित कर सकूंगा।
बिल्कुल गुरूदेवमैं अवश्य ध्यान रखूंगा। इतना कहकर पंगु चल दिया और आवेदनकर्ताओं की सूची में प्रथम स्थान पाकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में नौकरी पा गया।
फिर क्या था दिन-रात नफरतअफवाहभ्रम फैलानें का काम धड़ल्लें से चल निकलादेखते ही देखते पंगु व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का चहेता प्रोफेसर बन गया।
लेकिन एक दिन उसकी पोस्ट एक व्यंग्य लेखक से जा टकरायीव्यंग्य लेखक नें सुधरनें की हिदायत दी लेकिन पंगु कहॉ माननें वाले नतीजन भड़काऊ पोस्ट आगे सफर तय करती रही और एक दिन सरकार तक जा पहुंची और बेचारे पंगु आज भड़काऊ पोस्ट के चक्कर में जेल में चक्की पीस रहे है। औऱ उधर उसके गुरूदेव पहचान छिपाकर भागे – भागे घूम रहे है।
 
व्यंग्यकार
गौरव सक्सेना
उक्त लेख को राष्ट्रीय समाचार पत्र "अमर उजाला" नें 14 मई 2023 के अंक में प्रकाशित किया है। 



ईयरफोन की महिमा

Gaurav Saxena

 

ईयरफोन की महिमा


ईयरफोन की महिमा


वह व्यस्त है अपनी एक अलग दुनियां में, किसी से कोई मतलब नही, अपनी ही धुन में मस्त है, न किसी की सुनना न किसी से कुछ कहना। यह स्थिति तो बैरागियो की होती है, क्या वह बाबा बैरागी हो चला है या फिर हो सकता है कि दीवाना हो गया हो। क्योकि दीवानापन भी व्यक्ति को इस स्थिति में ला सकता है।

नही- नही वह तो आधुनिकता का मारा और तकनीकी का शिकार है। इसी के चलते उसने अपने कानों में ईयरफोन रुपी यंत्र लगा रखा है। जब से उसनें इस यंत्र को अपनी दिनचर्या में शामिल किया है तब से मानों उसकी जिन्दगी ही बदल गयी हो। जहॉ पहले घर और मौहल्लें में उसकी कहा-सुनी को लेकर महाभारत हो जाया करती थी वहीं इस यंत्र की व्यस्तता के चलते हर तरफ शांति ही शांति है। बाजार में जाता है तो भी मधुर संगीत कानों में इस यंत्र के माध्यम से निरन्तर बहता रहता है। संगीत में रमा मन कहां मोल-भाव करता है नतीजन दुकनदारों का समय बचता है और उनको भी मुंह मांगे दाम बिना किसी अतिरिक्त परिश्रम के मिल जाते है। वहीं कल शाम को वह मन्दिर की मुड़ेर पर बैठा संगीत में सराबोर हो रहा था, संगीत में समय का पता ही नही चला कि कब मन्दिर के पट बन्द होने का समय हो चला। शाम के अन्धेरे में इस संगीत प्रेमी में किसी को कोई भिखारी नजर आया तो किसी को कोई बूढ़ा अपाहिज नजर आया, और फिर क्या था बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख वाली बात को प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया। कनचप्पें की झोली रूपयों और फलों से भर गयी। घर पहुंचा तो पत्नी और बच्चे खुश। उनकी खुशी का कारण कोई और नही यहीं कान से चिपका यंत्र है जो कनचप्पा को हर शाम मन्दिर की मुड़ेर पर बरबस ही खींच ला रहा है।

इस यंत्र में कुछ तो खास है तो घास को भी खास बना देता है। निठल्लों को भी काम का बना देता है। इन छोटे से दो बटन रूपी यंत्र की अपनी अलग ही महिमा है जो देखन में छोटे लगे और घाव करे गम्भीर। गांव से जब प्रधान जी के अत्याचारों की शिकायत लेकर कनचप्पा शहर गया तो बड़े बाबू भी कनचप्पा की तरह अपनी मस्ती में मशगूल थें, सिर्फ गर्दन हिला रहे थें, शायद मधुर संगीत के साथ- साथ मुख में पान रस का भी स्वाद ले रहे थे। बेचारा कनचप्पा वापिस गांव को यह सोचकर लोट चला कि चलो शिकायत तो हो गयी, शहरी बाबू है इनका काम करनें का अलग ही स्टायल होता है। गर्दन हिली मतलब अब प्रधान की गद्दी हिल ही जायेगी।

वापसी में बाजार से होता हुआ घर जा रहा था कि घोड़ा गाड़ी वाले का घोड़ा भड़क गया क्योकि कनचप्पा की तरह घोड़ा गाड़ी वाला भी कान में यंत्र लगाकर संगीत में बह रहा था, अन्दाजा नही मिला और घोड़े को चाबुक कुछ जोर से लगा दिया, नतीजन बाजार में अफरा- तफरी मच गयी और लोगो का शोर कनचप्पा के कानों को स्पर्श न कर सका। घोड़े नें कनचप्पा को लतिया दिया और जब आंख खुली तो कनचप्पा नें स्वंय को अस्पताल में पाया, पास में बच्चे और पत्नी खड़ी थी। कनचप्पा दर्द से कराह रहा था। नर्स कानों में यंत्र लगा कर अन्य मरीजों के इन्जेक्शन लगानें में मशगूल थी। उधर प्रधान जी भी कानों में यंत्र लगाकर मधुर संगीत सुनते हुये कनचप्पा का हाल जाननें के लिए अस्पताल में कनचप्पा को खोज रहे थें।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" ने अपनें राष्ट्रीय संस्करण में दिनांक 10 अप्रैल 2023 को प्रकाशित किया है। 

ईयरफोन की महिमा


गहराता जल संकट

Gaurav Saxena

 

गहराता जल संकट


गहराता जल संकट


प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस इस उद्देश्य के साथ मनाया जाता है कि धरती पर स्वच्छ पीने योग्य जल बच सके और आगे आने वाली पीढ़ियों की भी प्यास बुझ सके। क्योंकि जल अमृत है और इसके बिना तो मानव जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। इसके बाबजूद जल संरक्षण की दिशा में लोगों में गंभीरता का अभाव दिखता है। कार्यक्रमो और गोष्ठियों में चर्चा तो खूब होती है, लेकिन अफसोस इस बात का है, कि लोग अपनें स्तर पर जिम्मेदारी निभाने से बचते है और इसे सिर्फ सरकार का ही विषय मानकर छोड़ देते है। यही कारण है कि वाहन साफ करनें के वैकल्पिक तरीके होनें के बावजूद भी लोग नलों के पानी से घन्टो वाहन साफ करते दिखायी पड़ते है। घरों, मौहल्लों में जल के बेतहाशा दोहन की तस्वीर अब आम बात हो गई है। नलों से बहता जल, पाइपलाइन से निरन्तर बहता पानी हमें भविष्य में भयकर जल संकट की ओर ले जा रहा है। विशेषज्ञों नें हमे यहां तक चेताया है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के कारण ही होगा, लेकिन फिर भी जल संरक्षण के प्रति हमारी लापरवाही आखिर क्या दिन दिखाना चाहंती है। 


नीति आयोग के अनुसार भारत के 21 शहरों का भूजल प्रदूषित हो चुका है, जिसमें दिल्ली – एनसीआर भी शामिल है। नोएडा जैसे बड़े शहरों का भूजल स्तर पिछले 5 वर्षों में करीबन 1.5 मीटर तक नीचे जा चुका है। यदि इस ओर हमारी लापरवाही इसी प्रकार रही और समय रहते ठोस कदम नही उठाये गये तो वर्ष 2030 तक भारत की 40 प्रतिशत आबादी को स्वच्छ जल उपलब्ध नही हो पायेगा।

14 लाख लोग प्रतिवर्ष प्रदूषित जल और स्वच्छता की कमी के कारण हुई बीमारियों से काल के गाल में समा जाते है और 7.4 करोड़ लोगों की उम्र गंदे पानी और स्वच्छता में कमी के कारण फैली बीमारियों के कारण निरन्तर घट रही है।


यह आंकड़े इतनें भयावह है कि बिना शुद्ध जल के जीवन की कल्पना मात्र से हद्य विचलित हो उठता है। निरन्तर जल संसाधनों का घटना, प्रदूषित होता जल, बेतहाशा जल बर्बादी एक विकराल समस्या बनी हुयी है। जिसे देखकर तो यहीं लगता है कि जल संरक्षण के प्रति लोगो में दिलचस्पी नही रही है और लोग भविष्य के गहराते जल संकट के प्रति गम्भीर भी नही है।


आज जरूरत है कि जनसहभागिता के साथ जल संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाये जाये और हर एक व्यक्ति को जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जायें तथा इसकी शुरूआत स्वयं से ही की जाये। इस बार विश्व जल दिवस की थीम भी है – स्वयं में वह बदलाव लाएं, जो बदलाव आप दुनियां में देखना चाहंते है। वास्तव में यह थीम ही सम्पूर्ण विश्व में जल संकट को दूर करनें की राह दिखा सकती है। जब तक हम स्वयं जल संरक्षण की दिशा में पहल नही करेगे तब तक किसी सार्थक परिणाम की आशा करना केवल दिवास्वपन देखनें जैसा ही है।

 

गौरव सक्सेना

युवा व्यग्यकार


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें दिनांक 23 मार्च 2023 के अंक में प्रकाशित किया हैं।

गहराता जल संकट


होली का हास्यफल

Gaurav Saxena

 

होली का हास्यफलहोली का हास्यफल



होली पावन पर्व पर आपका भविष्य कैसा रहेगा, जानियें हमारे ज्योतिषी हसौड़ादास जी सें। हसौड़ादास जी को कई वर्षों का ज्योतिष का गहन अनुभव है, इनकी कही हुई बात को कोई नही काट सकता है भले इनकी गुरू दक्षिणा के चक्कर में यजमान की जेब ही क्यो न कट जायें। हसौड़ादास जी के ज्योतिष के अनुसार होली से बदलती 12 राशियों की ग्रह दशा निम्नवत है-

मेष राशि- इस राशि वाले जातकों पर मॉ लक्ष्मी मेहरवान रहेगी, जिसके कारण उन्हे रास्ते में चलते हुयें पुरानें खोटे सिक्के मिलते रहेगे। काले धन्धों की कालिख लग सकती है, इससे बचनें के लिए काली स्याही से शरीर पर मालिश करें।

वृष राशि – गृहस्थों को उदण्डी सन्तान प्राप्त होनें का योग्य है, यही सन्तानें आगे चलकर फेसबुकियां संसार बसायेगी। मोबाइल पर सारा दिन व्यतीत करनें वालों की नेत्र ज्योति बढ़नें की प्रबल सम्भावना है।  

मिथुन राशि- इस राशि के जातको की मनोकामना चुगलखोरी से शीघ्र पूर्ण होगी, अत: कार्यक्षेत्र में चुगलखोरी करते रहे और इसके नये–नयें प्रकार सीखनें से तरक्की की अपार सम्भावनायें देखी जा सकती है। मारपीट की नौबत से बचनें के लिए हरी मिर्च नियमित घोंटकर पीते रहें।

कर्क राशि- पुरानी उधारी के मामलें सामनें आयेगे उनसे बचनें के लिए रोगग्रस्त होनें का ढ़ोग रचनें का अभ्यास करते रहे। आपसे भी कोई नया जन उधार मांग सकता है बचनें के लिए सोशल मीडियां पर स्वयं को दिवालियां घोषित कर दें।

सिंह राशि- व्हाटसअप यूनीवर्सिटी की कोई महिला आपके वैवाहिक जीवन में उठापटक करवा सकती है बचनें के लिए सब्जी मण्डी की लड़ती गायों को शान्त कराकर उन्हे ताजी सब्जी खरीदकर खिलायें, दशा व दिशा दोनों बदलेगी।

कन्या राशि- कार्यक्षेत्र में उतार- चढ़ाव का दौर शुरू हो रहा है परेशानी से बचनें के लिए सीनियर्स को प्रति सप्ताह चाय- पानी के लिए अपनें घर पर आंमत्रित करें तथा समय–समय पर उन्हे मंहगे गिफ्ट देते रहे।

तुला राशि- आपकी जुबान से बनती बात बिगड़ सकती है इसे तौलकर ही मुख के तराजू से बाहर आनें दें, पत्नी के साथ जुबान को लेकर कोई प्रयोग न करें, हो सके तो छुट्टी के दिन मौन व्रत रखें।

वृश्चिक राशि- आपके वाहन पर शातिर चोरो की निगाह है इसे बचानें के लिए घर पर कटखनें कुत्ते पाले तथा गली के आवारा कुत्तों को सप्ताह में एक बार उनकी पसन्द का भोजन करायें।

धनु राशि-  यात्रा का योग बना रहेगा लेकिन बिना टिकट यात्रा पर पकड़े जानें की प्रबल सम्भावनायें है, जेब में अधिक धन लेकर यात्रा करें अन्यथा जेल दर्शन के भी योग दिखायी पड़ सकते है।

मकर राशि- पत्नी के साथ वाद-विवाद से बचें उसके सामनें किसी भी स्त्री की भूल से भी चर्चा न करें, लेकिन ससुरालियों की तारीफ करतें रहे, महीनें में कम से कम एक बार पत्नी को मायके के दर्शन करवाते रहे तो कृपा आती रहेगी।

कुम्भ राशि- काले कारनामों का घड़ा लबालब भर चुका है इसके फूटनें से आयें भूचाल से बचनें के लिए घड़ों में घी भरकर दान करें या फिर किसी मोटी खुराकवाले व्यक्ति को नियमित पकवान खिलायें।

मीन राशि- आप बिना बुलायें किसी भी शादी में न जायें, पकड़े जानें पर आपसे पूरी साल फ्री में खाना खानें की चार गुना कीमत की बसूली के योग बन रहे है। उपाय के तौर पर अपनी रूखी – सूखी रोटी से ही गुजारा करें।  

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

ससुराल की यादगार होली

Gaurav Saxena

 

ससुराल की यादगार होली

ससुराल की यादगार होली


हैलो, जीजा जी कैसे है, इस बार होली पर घर आना है दीदी तो पहले से ही यहॉ पर है बस आप की ही कमी है, आप समय से आ जाना। मुझे तो होली की याद ही नही थी, आखिर इस महंगाई में आम आदमी को त्यौहार कहॉ याद रहते है। मैं साली साहिबा को भला कैसे नाराज कर सकता था, सो होली पर स्वयं को ससुराल के हवालें करनें का आस्वासन दे दिया और जुट गया ससुराल जानें की तैयारी में, देखते ही देखते होली का दिन भी आ गया सो मैं नये स्वेत वस्त्र धारण कर बस से ससुराल जानें के लिए घर से निकला ही था कि पड़ोस के कुछ लड़को नें मेरा रास्ता रंग भरी पिचकारी दिखाकर रोका उनकी पिचकारी मेरे लिए पिस्टन से कम न थी। लेकिन मैं उन हुड़दंगी लड़कों का मुकाबला करनें में सफल हुआ नतीजन कोरा कोरा बिना रंग से रंगे बस में बैठ गया।

यदि रंगो से पुता हुआ ससुराल पहुंचा औऱ ससुरालियों नें मुझे न पहचाना और यदि पहचान भी लिया तो साली साहिबा क्या सोचेगी। आखिर होली पर ससुरालियों के भी तो कोई अरमान है। इसी सोच के चलते स्वयं को रंगो से बचाते हुयें बस की खिड़की बन्द कर यात्रा कर रहा था। तभी बस नें अचानक से ब्रैक लिए और डगमगाकर खड़ी हो गयी। आखिर बस को भी आज ही खराब होना था। अन्य यात्रियों की तरह मैं भी पद यात्रा शुरू कर चुका था क्योकि कई घन्टों के इन्तजार के बाद भी ससुराल के लिए कोई सवारी नही मिली।

हारा थका बस जैसे-तैसे चल रहा था कि तभी कुत्तों के झुण्ड नें आकर के रास्ता रोका अब भला इनसे कैसे मुकाबला करू। हुड़दंगी लड़को के रंगो से तो अपनें स्वेत वस्त्रों को बचा लिया लेकिन इन कटखनें कुत्तों के दांतो से बचना मुश्किल था। तभी एक उपाय सूझा औऱ ससुराल ले जानें के लिए खरीदे फलों की थैली कुत्तों के सामनें फेक कर जान छुड़ाई।

रास्तें में मिलनें वाली विपदाओं को मैं हनुमान जी की तरह पार करता जा रहा था और बचनें का पूरा प्रयास कर रहा था कि कहीं कोई रंग न लगा दें। लेकिन मुझे नही लग रहा था कि मेरा बिना रंगे ससुराल पहुंचनें का प्रयास सफल होगा भी या नही।

आगे जाकर देखा तो कुछ लोग धरनें पर बैठे मिलें जिन्होनें रास्ता रोक रक्खा था। धरनें का कारण महंगाई थी लोग नारेबाजी कर रहे थें कि इतनी महंगाई में भला होली कैसे खेले, रंग और गुलाल कैसे खरीदे, गुझियां के लिए मावा कैसे खरीदें। मैं भीड़ से निकलनें का प्रयास कर ही रहा था तभी एक मोटे तंगड़े कालिया टाइप के व्यक्ति नें मुझे पकड़ लिया और बोला आगे नही जा सकते हो, मैनें काफी विनती की तो उस व्यक्ति नें कहा की उसका नेता होली खेलनें अपनी ससुराल गया है मुझे उसके नेता का किरदार निभाना होगा औऱ भीड़ के सामनें महंगाई पर भाषण देना होगा। यदि सब कुछ सफल रहा तो मेरे लिए रास्ता खोल दिया जायेगा। मरता सो क्या न करता, बन गया नेता और देनें लगा महंगाई पर धुआंधार भाषण। लोगो की नारेबाजी का शोर बढ़ता ही जा रहा था, कि तभी पुलिस की गाड़ियां धरनें को धरासायी करनें के लिए आ धमकी। देखते ही देखते अफरातफरी मच गयी। पुलिस लठ्ठमार होली खेलनें लगी। मैं पुलिसियां लठ्ठ से बचकर भांगनें में सफल हुआ और दुबके दबातें खेतो के बीच से होता हुआ आधी रात को अपनी ससुराल जा पहुंचा।

सभी सोयें हुये थें, बड़ी देर बाद दरबाजा खुला तो साली साहिबा नें कहा अरे जीजा जी हैप्पी होली..... आप बहुत लेट आयें मुझे बहुत तेज नींद आ रही है, आप भी आराम करियें, हम लोग अगली साल होली खेलेगे।

मैं थका हारा बिना होली खेले ही सो गया इस उम्मीद में कि अगली साल साली साहिबा मेरे साथ होली खेलेगी। मैं इस साल होली न खेल पानें के कारण दुखी था। फिर सोचा कि मैं ठहरा मंहगाई का मारा आम आदमी, मेरें नसीब में अब कहॉ रह गया है रंग भरी होली का खेलना।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनेें 05 मार्च 2023 के अंक में प्रकाशित किया है तथा हैदराबाद से प्रकाशित समाचार पत्र "हिन्दी मिलाप" नें अपनें होली परिशिष्ट (दिनांक 07 मार्च 2023) में चयनित कर पुरस्कृत किया है।



ससुराल की यादगार होली

ससुराल की यादगार होली


 

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