मॉ, भारतीय रेलवे के अलावा इस संसार में अपना कौन है ?

बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है

हुजूर, आपके तबज्जों का इन्तजार है .........................

अकबर का मकबरा सिकन्दरा, आगरा

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मायके का सुख-- व्यंग्य लेख

Gaurav Saxena


मायके का सुख-- व्यंग्य लेख

 

मायके का सुख


हे सखी, तुम क्यो व्यर्थ चिन्ता कर रही हो, युगों – युगों से मायका ही हम स्त्रियों का मनपसन्द टूरिस्ट प्लेस रहा है। हम कितना भी ससुराल में हस बोल ले लेकिन हम सबका मन मायके में ही रमा बसा रहता है। तुम बेबजह ही परेशान हो रही हो। भला हमे कौन मायके जाने और मनचांहे दिनो तक वहॉ रूकने से रोक सकता है। इसलिए तुम बिना किसी भय के जितने दिन मन करे मायके मे खूब खेलो खाओ और मौज करो।

लेकिन मैं परेशान न होऊ तो क्या करूं – दूसरी चंचल सखी ने साड़ी के पल्लू से पसीना पौछते हुये कहा।

तभी झगड़ू सखी ने साहस बंधाते हुये चंचल सखी से अपनी समस्या से पर्दा उठाने का आग्रह किया।

तो चंचल सखी ने अपनी समस्या को आम स्त्री की समस्या बताते हुये कहा कि मेरे पतिदेव को मेरे मायके जाने की सूचना मात्र से ही 108 डिग्री का बुखार आ जाता है। यदि पैरासीटामोल काम कर भी जाये तो गिनती के 1-2 दिनो के लिए ही मायके जाने की स्वीकृति मिलती है और उसके बाद उनकी स्वीकृति पर हैड ऑफ डिपार्टमेन्ट सासू मॉ की मोहर लग पाना मुश्किल होती है। वहॉ से फाईल घूम कर चीफ ससुर साहब के पास जाती है तब जाकर कहीं मायके जाना फाइनल हो पाता है। अब तुम ही बताओ 2 दिन की परमीशन के लिए हम औरतो को कितने पापड़ बेलने पड़ते है। मैं कभी भी मन भरकर मायके में रुक ही नही पाती हूं।

अरे मेरी भोली चंचल सखी, बस इतनी सी बात के लिए परेशान हो रही हो। तुम स्मार्ट जमाने में रहकर भी स्मार्ट न बन पायी।

मैं कुछ समझी नही झगड़ू सखी ......

सबकुछ समझाती हूं तू पहले मेरे लिए गर्मागर्म चाय और पकौड़ी का नास्ता तैयार कर , बहुत तेज भूख लगी है।

चंचल रसोई में जाकर गर्मागर्म नाश्ता तैयार करने लगती है और वहीं रसोई में झगड़ू भी आकर अपने ज्ञान रस की वर्षा करने लगती है।  

हे सखी कान लगा कर सुनो। हमारा देश विविधताओं और आस्थाओं से भरा पड़ा है, बस इसी को अवसर में बदल लो।

मैं कुछ समझी नही चंचल ने उत्सुकतावश पूछा-

तो झगड़ू ने कहा कि जब तुम्हारे निर्धारित दो दिन मायके में पूर्ण हो जाये तो बस फिर अगले दिन दिशा सूर्य, फिर अगले दिन चौथ और फिर पड़वा इत्यादि दिन बताकर अपने ससुराल में अपनी मॉ से फोन करवाकर मना करवा देना कि अभी यह दिन यात्रा के लिए शुभ नही है, जब शुभ दिन आयेगे तब ही ससुराल वापस आना होगा। फिर इसी प्रकार जितने दिन मन करे आराम से रहना ओर इसी प्रकार दिन औऱ त्यौहारों का सहारा लेती रहना।

ठीक कहा बहिन मैं अब आराम से खूब मन भरकर मायके मे रहूंगी।

और फिर चंचल ने ठीक ऐसा ही किया और पूरे दो महीने आराम से मायके में रहकर वापस लौटी है। चंचल के वापस लौटते ही उसकी सास भी अपने मायके के लिए रवाना हो गयी।

अब चंचल रोज अपनी सास को फोन करती है कि सासू मॉ कब वापस आओगी, अकेले घर काटने को दौड़ता है। हर बार उसकी सास शुभ दिन की बात कह देती है और आज 6 माह बीत चुके है। चंचल अपनी सासू मॉ की वापस यात्रा के हर रोज शुभ दिन की राह देख रही है।

 

लेखक

गौरव सक्सेना
354 करमगंज, इटावा

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" ने अपने 17 सितम्बर 2023 के अंक में प्रकाशित किया है। 



मायके का सुख

मिलने से सब होता है-- व्यंग्य लेख

Gaurav Saxena

 

मिलने से सब होता है-- व्यंग्य लेख

 

मिलने से सब होता है

अरे सुनो जी, अपने बिट्टू नें इसबार फिर से नाक कटवा दी है। अब मैं कॉलोनी की औरतो को क्या मुंह दिखाऊंगी।

अरे भाग्यवान क्या हुआ ? क्यो सुबह – सुबह से चिल्ला रही हो।

चिल्लाऊ न तो क्या करूं, पूरे मौहल्ले में जश्न का माहौल है सभी एक दूसरे को मिठाई खिला रहे है। और फोटो खींच-खींच कर पोस्ट कर रहे है। सभी के सभी हैप्पी वाली फीलिंग फील कर रहे है। और मैं शर्म के मारे मरी जा रही हूं।

अरे तो तुम क्यो सेड वाली फीलिंग फील कर रही हो... क्या हुआ बताओगी भी या नही।

तब श्रीमतीजी ने गूढ़ रहस्य से पर्दा उठाया कि उनके बेटे के क्लास में सभी बच्चों से कम नम्बर आये है। वो तो स्कूल के टीचर से कोचिंग लगवाई थी इसलिए पास भी हो गया बरना तो बस फेल ही हो जाता।

अरे भाग्यवान, यह सब तुम्हारी बजह से ही हुआ है, तुमने सब कुछ स्कूल के टीचर के ऊपर ही छोड़ दिया। आखिर खुद भी तो बच्चो की पढ़ाई पर ध्यान देना होता है।  

फिर आप इसमें मेरी गलती निकालने लगे, इसमे भला मेरी क्या गलती है। बल्कि बिट्टू के कम नम्बरों से पास होने का कारण आपकी ही लापरवाही है। आपने कभी उसकी पढ़ाई की चिन्ता नही की, वह क्या पढ़ रहा है और क्या कर रहा है, आपने जानने की कभी कोशिश नही की है।

अरे मैं ऑफिस के काम से ही थक जाता हूं, मेरे पास इतना समय कहॉ है।

अब नही है समय तो बताओं कि मैं क्या करूं, मौहल्लेवालो को क्या मुंह दिखाऊं।

अरे भाग्यवान, तुम चिन्ता मत करो मैं कल बिट्टू के स्कूल में जाकर टीचर से मिलूंगा।

लेकिन अब मिलनें से क्या होगा......

देखो भाग्यवान पहले तो अपनी छोटी सोच को बड़ा करो, यह जमाना मिलने और मिलानें का ही है। आज हर क्लाइंट बाबू से, बाबू ऑफिसर से, ऑफिसर सचिव से अकेले में मिलता है और सभी के काम पलक झपकते ही पूरे हो जाते है। मिलने मिलाने से बड़े से बड़े मसले हल हो जाते है तो फिर तो यह कम नम्बरों का मसला है, यह तो बस चुटकियों मे हल हो जायेगा।

फिर क्या था अगले दिन टीचर से मेरी मीटिंग हुयी तो टीचर ने बताया कि बिट्टू बहुत कम बुद्धि का है। पढ़ा हुआ उसे याद ही नही होता है। नम्बर तो कम आना लाजमी है।

मेरी इस बात पर बहस छिड़ गयी कि बिट्टू कम बुद्धि का कैसे है। वह कई व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन है, उसके फेसबुक, इंस्टा पर लाखों फॉलोवर है, किस रील के बाद किस क्रीएटर की रील आयेगी। किसके कितने फॉलोवर है, सब कुछ तो उसकी जुबान पर है। फिर भला वह कम बुद्धि का कैसे हुआ।

टीचर मेरी बातो से बौखला गयी गुस्से में लाल होकर बोली, कि आप मेरा समय बर्बाद न करे फेसबुक, इस्टाग्राम की तरह ही एक व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी भी है उसमे अपने बच्चे का दाखिला करवा दीजिये, वही से आपका बिट्टू टॉप कर पायेगा। यहॉ से तो टॉप करने से रहा।

मैं निराश होकर स्कूल से वापस लोट रहा था कि मुझे गेट पर स्कूल के बड़े बाबू मिल गये। वह मेरे मौहल्ले में पहले किराये के मकान पर रहते थे और आजकल आलीशान कोठी के मालिक है। मैने बिट्टू के कम नम्बर की बात बताई तो उन्होनें अकेले में मिलने को कहा।

मैं अकेले में मिला तो उन्होने बताया कि इस साल का तो रिजल्ट आउट हो चुका है, सभी की मार्कशीट सोशल मीडिया में वायरल हो चुकी है। अब कुछ किया तो स्कूल की नाक कट सकती है, लेकिन अगले वर्ष आपके बिट्टू को टॉप कराने का जिम्मा मेरा है। आप बेफ्रिक होकर चैन की वंशी बजाईये, अगले वर्ष का टॉपर आपका बिट्टू होगा।

मैं खुशी से झूमता घर आया तो देखा कि श्रीमतीजी दुखी होकर बैठी थी, वह बोली मिल आये टीचर से, करा आये न अपनी बेईज्जती ....

अरे भाग्यवान, फिर कर दी न तुमने छोटी बात। मैने तुमसे कहा था न कि मिलने से सब हो जाता है। मैं स्कूल के बाबू से मिलकर आया हूं। अब तुम केवल इस बार की बेइज्जती स्वीकार कर लो, अगले वर्ष पूरे मौहल्ले में अपना सिक्का घूमेगा, अपना बिट्टू टॉप करेगा।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

 

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" ने अपने 30 जुलाई के अंक में तथा दैनिक जागरण ने अपने राष्ट्रीय संस्करण अंक में 03 अगस्त 2023 को प्रकाशित किया है। 

मिलने से सब होता है

मिलने से सब होता है-- व्यंग्य लेख


नेता जी का अफसर बेटा - व्यंग्य लेख

Gaurav Saxena

 नेता जी का अफसर बेटा

नेता जी का अफसर बेटा - व्यंग्य लेख


अरे भईया कुछ करिये नही तो अपना और अपने परिवार का नाम मिट्टी में मिल जायेगा। क्या बताऊ झगड़ू मैं खुद बहुत परेशान रहता हूं। मेरा इकलौता लड़का और वह भी किताबी कीड़ा हैदिन-भर किताबो में ही घुसा रहता है, बीमारी का बहाना बनाकर रात-रातभर पढ़ाई करता है। इस उम्र में जहॉ लड़को को मंहगे मोबाइल फोनकारबाईक और गर्ल फ्रेंड का रोग लगा होता है वहीं मेरे नबाबसाहब को पढ़ाई के अलावा कुछ दिखाई ही नही देता है। कहता है पढ़ लिखकर एक दिन बड़ा अफसर बनूंगा। लेकिन अपने खानदान में तो सभी दम-खम वालेलड़ाई- झगड़े वालेकोर्ट – कचहरी में पेश होने वाले नेता हुये है। झगड़ू ने बीच में ही बात काटते हुये कहा। हॉ झगड़ू पता है पर इस लड़के की बुद्धि को क्या करे। तुम मेरे भाई होतुम ही कोई रास्ता बताओ जिससे मेरे बेटे का मन पढ़ाई से सदा के लिए दूर हो जायेअपने खानदान में तो बस नाम के लिए रूपया देकर डिग्री खरीदी जाती है। यदि हम लोग पढ़ाई- लिखाई करने लगे तो भला राजनीति कौन करेगाजनता से झूठे वादे कौन करेगाकाले- धन्धे कौन करेगागरीबो को कौन चक्करघन्नी की तरह घुमायेगा।

      बिल्कुल ठीक कहा आपने भईयामेरे दिमाग में एक उपाय है जिससे निश्चय तौर पर आपके बेटे और मेरे भतीजे का मन पढ़ाई से हमेशा के लिए दूर चला जायेगा। अरे वाह! झगड़ू जल्दी बताओ मैं जल्द ही वह उपाय करूंगा। आप एक काम करो कि उसकी किताबे ऐसी जगह छुपाओं कि उसे किसी भी कीमत पर वह मिल न सके। जब किताबे ही नही होगी तो पढ़ेगा क्याऔर पढ़ेगा नही तो अन्त में नेता ही तो बनेगा।

अरे छोटे कर दी न वही छोटी बात। जब वह हाईस्कूल में पढ़ता था तब उसकी परीक्षा के समय मैनें और तुम्हारी भाभी ने मिलकर यह उपाय किया था उसका नतीजा यह निकला था कि उसने पूरे कॉलेज में टॉप किया था। पता नही कितनी बुद्धि है उसके पास......

फिर तो आप उसकी शादी कर दो। घर-गृहस्थी और फिर बाल – बच्चे इन्ही मे फस जायेगा। फिर हो गयी पढ़ाई- लिखाई और बन गया अफसर।

नही झगड़ू शादी के नाम पर तो वह खाना- पानी तक छोड़ देता है। कहता है पहले अधिकारी बनेगा फिर किसी अधिकारी लड़की से ही शादी करेगा।

झगड़ू – लेकिन भईया, क्या जरूरी है कि उसे इस बेरोजगारी के समय में अधिकारी लड़की मिल ही जायेगी।

हां मैनें यह बात पूछी थीतो बोल रहा था कि लड़की शिक्षित होनी चाहियें फिर मैं उसे स्वंय नौकरी के लिए तैयारी करवाऊंगा।

तब तो हो गया भईया बंटाधार... आपको पता भी है आजकल क्या चल रहा है पढ़ लिखकर लड़कियां अधिकारी बन जाती है और फिर चल देती अपने पतिदेव को छोड़कर अपनी नई दुनियां बसानें......

हॉ सब पता है- नेता जी नें गहरी सांस लेकर कहा। नेतागीरी से थका हारा जब मैं घर वापस आता हूं तो फिर से वही नुकीलें प्रश्न मन मस्तिष्क को भेदनें लगते है कि यदि कहीं पढ़ लिखकर मेरा इकलौता बेटा कोई बड़ा अफसर बन गया तो फिर नेतागीरी कौन करेगा। मैं जनता और मीडिया की नुकीली बातो को चुटकियों में इस प्रकार से गिरा देता हूं जैसे हर चुनाव में हम विपक्ष को गिराते है। सत्ता पक्ष में अच्छी खासी धाक, शान- शौकत और धन – दौलत की अपार सम्पदा होनें के बाद भी मैं अपनें लड़के से हारा हूं। किसी नें सच ही कहा है कि औलाद जो कराये सो कम है।

तभी दरवाजे की घन्टी बजती है। मौहल्ले वाले, रिश्तेदारशुभचिन्तक मिठाई लिए घर में घुसने लगते है। पूंछने पर पता चला कि जिसका डर था वहीं हुआ। नेता जी के लड़के का सरकारी सेवा में चयन हो गया है वह अब अधिकारी बन गया है। आखिर होनी को कौन टाल सकता है।

नेता जी खुशी के लड्डू खाकर धड़ाम से सोफे पर गिर पड़ेवह मौन थेसदमें में थे। लोग कह रहे थे कि खुशी में अक्सर ऐसा ही होता है लेकिन नेता जी और उनके परिवार के लिए तो यह खुशी मानो एक मातम बन कर आयी हो।

 

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपने 09 जुलाई 2023 के अंक में तथा दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण ने 11 जुलाई 2023 को अपने अंक में प्रकाशित किया है। 

नेता जी का अफसर बेटा - व्यंग्य लेख

नेता जी का अफसर बेटा - व्यंग्य लेख


नोट की शान - व्यंग्य लेख

Gaurav Saxena

 

                           
नोट की शान

                            नोट की शान


ऐ छुट्टन साइड दोजहॉ देखो वहॉ खड़े हो जाते हो, 2000 के नोट ने इठलाते हुयें 500 के नोट से कहा। तो तुरन्त 500 के नोट ने पलटकर जबाब दिया – छोटे समझने की भूल भी करनामैं देखनें में ही छोटा लगता हूं लेकिन घाव बहुत गम्भीर करता हूं। मेरी शक्ति के आगे बड़े से बड़ा  व्यक्ति भी नतमस्तक है। पूरे बाजार में मेरा ही डंका बजता है तुम्हे तो कोई भूल से भी नही लेना चांहता है। तुम बड़े हुये तो क्या हुआ बड़ा तो पेड़ खजूर भी होता हैजो किसी भी काम का नही होता है।
बस-बस छुट्टन ज्यादा ज्ञान मत बांटो। जिस तरह से तुम छोटे हो वैसे ही तुम्हारे विचार भी छोटे है। तुम कभी बड़ा सोच भी नही सकते हो। बड़े आये मेरी बराबरी करने वालेतुम तो मेरे पैरो की धूल के बराबर भी नही हो।


तुम बाजार और मेला-मदार में भले ही छोटी-मोटी पहचान रखते हो लेकिन बड़े लेन-देन और व्यापार में तुम्हे कोई नही पूंछता। तुम्हे पता भी है कि मैनें लोगो के काम को कितना आसान कर दिया है। बड़ी से बड़ी रकम मेरे चन्द नोटो में समा जाती हैआराम से कोई भी इधर-उधर ला-ले जा सकता है। कितने लोगो के अटके पड़े कामों को मेरे चन्द नोटो नें मुठ्ठी में दबकर चन्द मिनटो में पूर्ण करवाया है। मैने लेन-देन की परिभाषा ही बदल दी हैअब कोई भी आसानी से डेस्क के नीचे से मुझे बाबू लोगो से मिलवा सकता है। मैं ही तो हूं जिसनें बाबू लोगो की तिजोरियो की शान बढ़ाई हैअब तिजोरियां मेरे रूप रंग की खुशबू से सराबोर रहती है। अब इत्र की जगह बाबू लोग मेरी सुगन्ध सूंघते है। मेरे रूप रंग की दीवानगी का अन्दाजा तो इस बात से ही लगाया जा सकता है कि बाबू लोग मुझे अपने बेड के नीचे बिछाकर उसके ऊपर अपना भारी भरकम शरीर रखकर सारी रात हसीन स्वप्न देखते है।


अब तुम ही बताओं क्या मुझसे पूर्व यह सबकुछ सम्भव था। मेरी बजह से ही बाबू लोग आज चैन की वंशी बजा पा रहे है। तुम्हारा जन्म भले ही मुझसे पहले हुआ हो लेकिन आयु में बड़ा होना आज कोई मायनें नही रखता है। जरूरी नही कि हर सफेद बाल वाला व्यक्ति ज्ञानी और अनुभवी हो। अब सब बाते केवल कहने मात्र की ही रह गयी है।
इतना मत इठलाओ लम्बू दादाजहॉ काम आवे सुई तो कहा करे तलवारि। वो समय याद करो जब तुम्हारे छोटे भाई 1000 रू0 के नोट को सरकार नें रातो-रात बन्द कर दिया थाफिर तुम्हारे बाबू लोग क्यो फड़फड़ाने लगे थें। तब बैंक की पूछ-ताछ का सामना क्यो नही कर पाये थे तुम्हारे बाबू लोग। समय बलवान होता है भविष्य किसी नें नही देखाइसलिए अपने बड़े होने पर इतना घमण्ड मत करो।


अरे- अरे जाने दोजाने दोमुझे तुम्हारे साथ रहनें में घुटन होने लगी है। बैंक क्लर्क के बक्से में पड़े 2000 के नोट नें यह कहकर छलांग लगाई और तभी अचानक बैंक में मेल आयी कि अब सरकार 2000 का नोट बन्द करनें जा रही हैजिसके लिए निर्धारित समय-सीमा भी तय की गयी है जिसमे लोग 2000 के नोट को बैंक में जमा कर सकते है।
यह खबर सुनते ही 2000 का नोट 500 रू0 के नोट के पास आकर फफक-फफककर रोने लगा और उधर बाबू लोग सर पकड़ कर बैठे थे। जिन्होनें नें अपनें बेड और तिजोरियों को 2000 के नोटो से भर रखा था। बेड और तिजौरियों में पड़े 2000 के नोटो की संख्या के आगे बैंक में जमा करने की यह निर्धारित समय सीमा तो कुछ भी नही है। अब बेचारे करे भी तो क्या करेइधर कुआं और उधर खाई।
 
लेखक
गौरव सक्सेना


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र 'देशधर्म' नें अपने 21 मई 2023 के अंक में तथा दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण नें 22 मई 2023 को प्रकाशित किया है। 


नोट की शान


नोट की शान - व्यंग्य लेख

लपकलाल का सपना

Gaurav Saxena

 

लपकलाल का सपना


लपकलाल का सपना


शार्टकट में लांग जंप लगाने की तमन्ना हर किसी को सूट नहीं करती है। किसी को शार्टकट रातो-रात करोड़पति बना देता है तो किसी को रोड़पति। लेकिन हमारे लपकलाल जी को कौन समझाये कि शार्टकट हानिकारक भी हो सकता है। नहीं माने और पहुंच गये अपने गुरू घंटाल के पास-

गुरू – क्या हुआ वत्स, परेशान नजर आ रहे हो, सबकुछ खैरियत तो है ना।

लपकलाल – जी कुछ भी सही नही चल रहा है मैं अत्यन्त परेशान हूं। इसी के समाधान के लिए आपकी शरण में आया हूं।

गुरू – लेकिन तुम्हारा तो चोरी चकारी काम सही चल रहा था फिर अचानक से क्या भूचाल आ गया।

लपकलाल – अरे गुरूदेव, चोरी चकारी के चलते कई बार जेल के दर्शन कर चुका हूं और पुलिसियां लठ्ठ भी खा चुका हूं। बड़ी जुगाड़ लगवाकर जेल से छूटा हूं। अब गुरूदेव कोई अन्य काम बताओ जिसमें जेल-वेल का चक्कर न हो। सिर्फ आराम ही आराम हो, फ्री का खाना- पीना हो और मौज-मस्ती भी खूब करने को मिले।  

गुरू घंटाल ने देर तक अपने बिना धुले बाल खुजलाये और दिमाग पर जोर दिया। बहुत देर बाद गुरूदेव बोलने की मुद्रा में आये।

गुरू – देख बेटा लपकलाल तेरे लिए मेरे दिमाग में एक काम है जिसमे आराम के साथ-साथ पैसा ही पैसा है।

लपकलाल – जल्द बताये गुरूवर विलम्ब कैसा ....

गुरू – देख लपकलाल तुम्हारा रूप, कद काठी और बोल-चाल का लहजा सब कुछ बहरूपिया है। बस इसी बहरूपिया रूप को अवसर में तब्दील कर लो। इसी रूप को अपने जीवन में उतार कर आराम से जीवन यापन करो।

लपकलाल – मैं कुछ समझा नही गुरूवर.......

अब कान लगाकर मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम किसी दूर गॉव में जाकर एक झोपड़ी बनाओ और उसमे बहरूपिया बाबा बनकर रहने लगो। अपनी असली पहचान छुपाकर रखना। लोगो की भावनाओ से खेलना शुरू करो, व्यक्ति के अनुरूप घिसे- पिटे शब्दो का प्रयोग करके उनका भविष्य बताने लगो। धीरे- धीरे इस व्यवसाय में पैर जमाओ फिर देखो कमाल, इतनी गुरूदक्षिणा मिलेगी कि लेखा- जोखा रखने के लिए भी एकाउन्टेंट रखने पड़ेगे।

लपकलाल – लेकिन मैं किसी का भविष्य कैसे बता पाऊंगा, मुझे तो अपना ही भविष्य नही दिख रहा है।

गुरू – इसके लिए चन्द वाक्यो को रटना होगा। जैसे किसी भी व्यक्ति को देखकर कह सकते हो कि उसका जीवन संघर्षों में बीता है, उसने सभी के साथ भला ही किया है, उसे धोखा ही दिया है इस सन्सार ने, आप मेहनत की रोजी –रोटी खाने वाले व्यक्ति है, वगैरह – वगैरह..  

इस तरह के वाक्य सभी पर फिट बैठ जायेगे और लोग खुश होकर दक्षिणा देगे, खाना फल मेवा भी देगे। धीरे- धीरे प्रवचन फिर कथा और अपनी मेहनत के हिसाब से आगे का सफर तय करते जाना।   

ठीक है गुरूदेव, मैं समझ गया कहकर लपकलाल चल दिया और दूर गॉव में बाबा बन बैठा। देखते ही देखते उसका नाम फैल गया। भविष्य जानने के लिए दूर-दूर से भक्त आने लगे, किसी एक- दो व्यक्ति के काम बन भी गये तो उन भक्तो की फोटो मय फोन नम्बर के कुटियां में प्रमाण हेतु लटका दी गयी। चन्द श्लोक भी सीख लिए जिससे प्रवचन गूढ़ ज्ञान और अधिक प्रभावी लगने लगा।

एक दिन नगर के एक बड़े व्यापारी के यहॉ से सत्यनारायण कथा का बुलावा आया तो लपकलाल नें जल्दी- जल्दी में गलती से अपनी पोटली में कथा की किताब की जगह गरूण पुराण की पुस्तक रख ली जो कि किसी कि मृत्यु के बाद आत्मा को शांति प्रदान करनें के उद्देश्य से पढ़ी जाती है।

कथा कहने के लिए लपकलाल नें थैले में हाथ डाला तो किताब बदली दिखी, यह देख उसका दिमाग चकरा गया, फिर सोचा कि अब तो वह अनुभवी हो चुका है और फिर यह व्यापारी तो स्वयं अनपढ़ है खुद इसके कर्मचारी इसको रात-दिन चूना लगा रहे है। वह भला क्या जान पायेगा कि मैं कौन सी कथा की पुस्तक लाया हूं।

 

शांति - शांति के शब्दों की भरमार के साथ जब कथा समाप्त हुयी तो व्यापारी बोला कि इसमें लीलावती और कलावती तो आयी नहीं वह कहां चली गयी।

तो लपकलाल बोला कि वे दोनों ही अपने मायके गयी है, लेकिन व्यापारी की शिक्षित पत्नी कथा के अन्तिम चरणो में मायके से लौट आयी थी, और लपकलाल के हाथों में गरूण पुराण की पुस्तक देखकर बौखला उठी।

फिर क्या था दे दना दन – दे दना दन कार्यक्रम प्रसाद वितरण समारोह का हिस्सा बन चुका था। लपकलाल अस्पताल में दर्द से कराह रहा था, लपकलाल का शोर्टकट में करोड़पति बनने का सपना अधूरा ही रह गया। उधर गुरू घंटाल के पास भी बात पहुंच चुकी थी और वह भी अपनी पहचान और स्थान बदलते घूम रहे थें।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र दैनिक जागरण नें अपनें 15 मई 2023 के राष्ट्रीय  अंक में प्रकाशित किया है। 

लपकलाल का सपना


व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर

Gaurav Saxena

          
व्हाट्सएप यूनीवर्सिटी का प्रोफेसर

                   

                           व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर


व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को अपने नयें कार्यालय के लिए ठलुआनिकम्में व्यक्तियों की आवश्यकता है। पूर्व में एडमिन रह चुके युवक – युवतियों को वरियता दी जायेगी। वेतन योग्यतानुसार न होकर अनुभव के आधार पर होगा। अनुभव के तौर पर पूर्व में अफवाह फैलानें वाले, भ्रामक सन्देश भेजनें वालेदंगे भड़कानें वालेअमर्यादित सन्देश वालों के अनुभवों को वरीयता के आधार पर विशेष मान्यता दी जायेगी।
जैसे ही अखबार में यह खबर पंगुलाल नें पढ़ी तो वह खुशी से झूम उठाउसका मन मयूर नृत्य करनें लगा। खबर की कटिंग को पर्स में दबाकर अपनें गुरू चंगुलाल के पास पहुंचा तो चंगूलाल आराम से धूप में बैठा अलसिया रहा था और बीच- बीच में व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में अपनें अनुभव साझा भी करता जा रहा था।
गुरूदेव चरण स्पर्श.....
आयुष्मान भव वत्स, कैसे आना हुआ। सब खैरियत तो है ना।
जी गुरूदेवयह आपकी कृपा और दीक्षा के बल का ही प्रभाव है कि जो जीवन कुशल मंगल से व्यतीत हो रहा है। गुरूदेव आप यह अखबार की कटिंग देखे और इस विज्ञप्ति में मेरे पद की दावेदारी पर अपना आर्शीवाद प्रदान करें।
गुरुदेव नें अपनें अन्धे हो चुके चश्में से नजर गढ़ाकर कटिंग को गौर से पढ़ा औऱ बोले कि बेटा -  काम तो अच्छा है नाम औऱ इज्जत भी खूब है। लेकिन ..........
लेकिन क्या गुरूदेव, जल्द बताइयें।
देखो बेटा पंगु वैसे तो आजकल उल्टा सीधाकाला- सफेद सब कुछ चल रहा है या कहे कि दौड़ रहा है। लेकिन समाज में एक वर्ग व्यंग्य लेखकों का है जो समाज में घटित होनें वाली हर एक खबर पर अपनी पैनी नजर रखते है। यदि जरा सी भी ऊंच-नीच हुयी तो समझों कि गयी भैस पानी में। नौकरी छोड़ो जेल भी जा सकते हो। हम जैसे लोगो को सबसे ज्यादा खतरा इन व्यंग्य लेखकों से ही है जिनके व्यंग्य वाण से बच पाना नामुकिंन है।
तो फिर गुरूदेव क्या करेंक्या निठल्ले बैठ कर गप्पे लड़ायें। मैं तो बहुत उम्मीद के साथ आपके पास आया थाऔर आपने तो भयभीत कर दिया।
नही बेटाभयभीत नही होना है निर्भीक होकर काम करना है। जब इतनी विसंगतियों के बीच व्यंग्य लेखक निर्भीक होकर लिख रहे हैनित्य नयें विषयों से समाज को आईना दिखा रहे है तो फिर हमें भी निर्भीक होकर अपना काम करते जाना है। यदि हमनें अपना काम छोड़ दिया तो फिर इस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को कौन पूछेगाइसके लिए आखिर हमें ही तो काम करना होगा। समाज में नफरतभ्रमजालअफवाहे हम नही फैलायेगे तो कौन फैलायेगा। अखिर इन्ही नफरतो की आंच में तो हम अपनी रोटी सेंकते है और इसी से अपना पेट पलता है। तुम निडर हो इस पद के लिए आवेदन करों और नौकरी पाकर मेरा भी ध्यान रखना।
आपका ध्यान कुछ समझा नही गुरूदेव...
ध्यान से अभिप्राय यहीं है कि अगली बार जब इस यूनिवर्सिटी में कुलपति के लिए भर्ती निकले तो मुझे तुरन्त बताना क्योकि मेरे लिए यहीं पद सबसे उपयुक्त होगा और इसीं पद पर आसीन होकर मैं ज्ञान की अविरल गंगा प्रवाहित कर सकूंगा।
बिल्कुल गुरूदेवमैं अवश्य ध्यान रखूंगा। इतना कहकर पंगु चल दिया और आवेदनकर्ताओं की सूची में प्रथम स्थान पाकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में नौकरी पा गया।
फिर क्या था दिन-रात नफरतअफवाहभ्रम फैलानें का काम धड़ल्लें से चल निकलादेखते ही देखते पंगु व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का चहेता प्रोफेसर बन गया।
लेकिन एक दिन उसकी पोस्ट एक व्यंग्य लेखक से जा टकरायीव्यंग्य लेखक नें सुधरनें की हिदायत दी लेकिन पंगु कहॉ माननें वाले नतीजन भड़काऊ पोस्ट आगे सफर तय करती रही और एक दिन सरकार तक जा पहुंची और बेचारे पंगु आज भड़काऊ पोस्ट के चक्कर में जेल में चक्की पीस रहे है। औऱ उधर उसके गुरूदेव पहचान छिपाकर भागे – भागे घूम रहे है।
 
व्यंग्यकार
गौरव सक्सेना
उक्त लेख को राष्ट्रीय समाचार पत्र "अमर उजाला" नें 14 मई 2023 के अंक में प्रकाशित किया है। 



ईयरफोन की महिमा

Gaurav Saxena

 

ईयरफोन की महिमा


ईयरफोन की महिमा


वह व्यस्त है अपनी एक अलग दुनियां में, किसी से कोई मतलब नही, अपनी ही धुन में मस्त है, न किसी की सुनना न किसी से कुछ कहना। यह स्थिति तो बैरागियो की होती है, क्या वह बाबा बैरागी हो चला है या फिर हो सकता है कि दीवाना हो गया हो। क्योकि दीवानापन भी व्यक्ति को इस स्थिति में ला सकता है।

नही- नही वह तो आधुनिकता का मारा और तकनीकी का शिकार है। इसी के चलते उसने अपने कानों में ईयरफोन रुपी यंत्र लगा रखा है। जब से उसनें इस यंत्र को अपनी दिनचर्या में शामिल किया है तब से मानों उसकी जिन्दगी ही बदल गयी हो। जहॉ पहले घर और मौहल्लें में उसकी कहा-सुनी को लेकर महाभारत हो जाया करती थी वहीं इस यंत्र की व्यस्तता के चलते हर तरफ शांति ही शांति है। बाजार में जाता है तो भी मधुर संगीत कानों में इस यंत्र के माध्यम से निरन्तर बहता रहता है। संगीत में रमा मन कहां मोल-भाव करता है नतीजन दुकनदारों का समय बचता है और उनको भी मुंह मांगे दाम बिना किसी अतिरिक्त परिश्रम के मिल जाते है। वहीं कल शाम को वह मन्दिर की मुड़ेर पर बैठा संगीत में सराबोर हो रहा था, संगीत में समय का पता ही नही चला कि कब मन्दिर के पट बन्द होने का समय हो चला। शाम के अन्धेरे में इस संगीत प्रेमी में किसी को कोई भिखारी नजर आया तो किसी को कोई बूढ़ा अपाहिज नजर आया, और फिर क्या था बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख वाली बात को प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया। कनचप्पें की झोली रूपयों और फलों से भर गयी। घर पहुंचा तो पत्नी और बच्चे खुश। उनकी खुशी का कारण कोई और नही यहीं कान से चिपका यंत्र है जो कनचप्पा को हर शाम मन्दिर की मुड़ेर पर बरबस ही खींच ला रहा है।

इस यंत्र में कुछ तो खास है तो घास को भी खास बना देता है। निठल्लों को भी काम का बना देता है। इन छोटे से दो बटन रूपी यंत्र की अपनी अलग ही महिमा है जो देखन में छोटे लगे और घाव करे गम्भीर। गांव से जब प्रधान जी के अत्याचारों की शिकायत लेकर कनचप्पा शहर गया तो बड़े बाबू भी कनचप्पा की तरह अपनी मस्ती में मशगूल थें, सिर्फ गर्दन हिला रहे थें, शायद मधुर संगीत के साथ- साथ मुख में पान रस का भी स्वाद ले रहे थे। बेचारा कनचप्पा वापिस गांव को यह सोचकर लोट चला कि चलो शिकायत तो हो गयी, शहरी बाबू है इनका काम करनें का अलग ही स्टायल होता है। गर्दन हिली मतलब अब प्रधान की गद्दी हिल ही जायेगी।

वापसी में बाजार से होता हुआ घर जा रहा था कि घोड़ा गाड़ी वाले का घोड़ा भड़क गया क्योकि कनचप्पा की तरह घोड़ा गाड़ी वाला भी कान में यंत्र लगाकर संगीत में बह रहा था, अन्दाजा नही मिला और घोड़े को चाबुक कुछ जोर से लगा दिया, नतीजन बाजार में अफरा- तफरी मच गयी और लोगो का शोर कनचप्पा के कानों को स्पर्श न कर सका। घोड़े नें कनचप्पा को लतिया दिया और जब आंख खुली तो कनचप्पा नें स्वंय को अस्पताल में पाया, पास में बच्चे और पत्नी खड़ी थी। कनचप्पा दर्द से कराह रहा था। नर्स कानों में यंत्र लगा कर अन्य मरीजों के इन्जेक्शन लगानें में मशगूल थी। उधर प्रधान जी भी कानों में यंत्र लगाकर मधुर संगीत सुनते हुये कनचप्पा का हाल जाननें के लिए अस्पताल में कनचप्पा को खोज रहे थें।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" ने अपनें राष्ट्रीय संस्करण में दिनांक 10 अप्रैल 2023 को प्रकाशित किया है। 

ईयरफोन की महिमा


गहराता जल संकट

Gaurav Saxena

 

गहराता जल संकट


गहराता जल संकट


प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस इस उद्देश्य के साथ मनाया जाता है कि धरती पर स्वच्छ पीने योग्य जल बच सके और आगे आने वाली पीढ़ियों की भी प्यास बुझ सके। क्योंकि जल अमृत है और इसके बिना तो मानव जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। इसके बाबजूद जल संरक्षण की दिशा में लोगों में गंभीरता का अभाव दिखता है। कार्यक्रमो और गोष्ठियों में चर्चा तो खूब होती है, लेकिन अफसोस इस बात का है, कि लोग अपनें स्तर पर जिम्मेदारी निभाने से बचते है और इसे सिर्फ सरकार का ही विषय मानकर छोड़ देते है। यही कारण है कि वाहन साफ करनें के वैकल्पिक तरीके होनें के बावजूद भी लोग नलों के पानी से घन्टो वाहन साफ करते दिखायी पड़ते है। घरों, मौहल्लों में जल के बेतहाशा दोहन की तस्वीर अब आम बात हो गई है। नलों से बहता जल, पाइपलाइन से निरन्तर बहता पानी हमें भविष्य में भयकर जल संकट की ओर ले जा रहा है। विशेषज्ञों नें हमे यहां तक चेताया है कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के कारण ही होगा, लेकिन फिर भी जल संरक्षण के प्रति हमारी लापरवाही आखिर क्या दिन दिखाना चाहंती है। 


नीति आयोग के अनुसार भारत के 21 शहरों का भूजल प्रदूषित हो चुका है, जिसमें दिल्ली – एनसीआर भी शामिल है। नोएडा जैसे बड़े शहरों का भूजल स्तर पिछले 5 वर्षों में करीबन 1.5 मीटर तक नीचे जा चुका है। यदि इस ओर हमारी लापरवाही इसी प्रकार रही और समय रहते ठोस कदम नही उठाये गये तो वर्ष 2030 तक भारत की 40 प्रतिशत आबादी को स्वच्छ जल उपलब्ध नही हो पायेगा।

14 लाख लोग प्रतिवर्ष प्रदूषित जल और स्वच्छता की कमी के कारण हुई बीमारियों से काल के गाल में समा जाते है और 7.4 करोड़ लोगों की उम्र गंदे पानी और स्वच्छता में कमी के कारण फैली बीमारियों के कारण निरन्तर घट रही है।


यह आंकड़े इतनें भयावह है कि बिना शुद्ध जल के जीवन की कल्पना मात्र से हद्य विचलित हो उठता है। निरन्तर जल संसाधनों का घटना, प्रदूषित होता जल, बेतहाशा जल बर्बादी एक विकराल समस्या बनी हुयी है। जिसे देखकर तो यहीं लगता है कि जल संरक्षण के प्रति लोगो में दिलचस्पी नही रही है और लोग भविष्य के गहराते जल संकट के प्रति गम्भीर भी नही है।


आज जरूरत है कि जनसहभागिता के साथ जल संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाये जाये और हर एक व्यक्ति को जल संरक्षण के प्रति जागरूक किया जायें तथा इसकी शुरूआत स्वयं से ही की जाये। इस बार विश्व जल दिवस की थीम भी है – स्वयं में वह बदलाव लाएं, जो बदलाव आप दुनियां में देखना चाहंते है। वास्तव में यह थीम ही सम्पूर्ण विश्व में जल संकट को दूर करनें की राह दिखा सकती है। जब तक हम स्वयं जल संरक्षण की दिशा में पहल नही करेगे तब तक किसी सार्थक परिणाम की आशा करना केवल दिवास्वपन देखनें जैसा ही है।

 

गौरव सक्सेना

युवा व्यग्यकार


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें दिनांक 23 मार्च 2023 के अंक में तथा दैनिक जागरण समाचार पत्र ने 25 मार्च 2023 के अंक में प्रकाशित किया है।   

गहराता जल संकट

गहराता जल संकट


होली का हास्यफल

Gaurav Saxena

 

होली का हास्यफलहोली का हास्यफल



होली पावन पर्व पर आपका भविष्य कैसा रहेगा, जानियें हमारे ज्योतिषी हसौड़ादास जी सें। हसौड़ादास जी को कई वर्षों का ज्योतिष का गहन अनुभव है, इनकी कही हुई बात को कोई नही काट सकता है भले इनकी गुरू दक्षिणा के चक्कर में यजमान की जेब ही क्यो न कट जायें। हसौड़ादास जी के ज्योतिष के अनुसार होली से बदलती 12 राशियों की ग्रह दशा निम्नवत है-

मेष राशि- इस राशि वाले जातकों पर मॉ लक्ष्मी मेहरवान रहेगी, जिसके कारण उन्हे रास्ते में चलते हुयें पुरानें खोटे सिक्के मिलते रहेगे। काले धन्धों की कालिख लग सकती है, इससे बचनें के लिए काली स्याही से शरीर पर मालिश करें।

वृष राशि – गृहस्थों को उदण्डी सन्तान प्राप्त होनें का योग्य है, यही सन्तानें आगे चलकर फेसबुकियां संसार बसायेगी। मोबाइल पर सारा दिन व्यतीत करनें वालों की नेत्र ज्योति बढ़नें की प्रबल सम्भावना है।  

मिथुन राशि- इस राशि के जातको की मनोकामना चुगलखोरी से शीघ्र पूर्ण होगी, अत: कार्यक्षेत्र में चुगलखोरी करते रहे और इसके नये–नयें प्रकार सीखनें से तरक्की की अपार सम्भावनायें देखी जा सकती है। मारपीट की नौबत से बचनें के लिए हरी मिर्च नियमित घोंटकर पीते रहें।

कर्क राशि- पुरानी उधारी के मामलें सामनें आयेगे उनसे बचनें के लिए रोगग्रस्त होनें का ढ़ोग रचनें का अभ्यास करते रहे। आपसे भी कोई नया जन उधार मांग सकता है बचनें के लिए सोशल मीडियां पर स्वयं को दिवालियां घोषित कर दें।

सिंह राशि- व्हाटसअप यूनीवर्सिटी की कोई महिला आपके वैवाहिक जीवन में उठापटक करवा सकती है बचनें के लिए सब्जी मण्डी की लड़ती गायों को शान्त कराकर उन्हे ताजी सब्जी खरीदकर खिलायें, दशा व दिशा दोनों बदलेगी।

कन्या राशि- कार्यक्षेत्र में उतार- चढ़ाव का दौर शुरू हो रहा है परेशानी से बचनें के लिए सीनियर्स को प्रति सप्ताह चाय- पानी के लिए अपनें घर पर आंमत्रित करें तथा समय–समय पर उन्हे मंहगे गिफ्ट देते रहे।

तुला राशि- आपकी जुबान से बनती बात बिगड़ सकती है इसे तौलकर ही मुख के तराजू से बाहर आनें दें, पत्नी के साथ जुबान को लेकर कोई प्रयोग न करें, हो सके तो छुट्टी के दिन मौन व्रत रखें।

वृश्चिक राशि- आपके वाहन पर शातिर चोरो की निगाह है इसे बचानें के लिए घर पर कटखनें कुत्ते पाले तथा गली के आवारा कुत्तों को सप्ताह में एक बार उनकी पसन्द का भोजन करायें।

धनु राशि-  यात्रा का योग बना रहेगा लेकिन बिना टिकट यात्रा पर पकड़े जानें की प्रबल सम्भावनायें है, जेब में अधिक धन लेकर यात्रा करें अन्यथा जेल दर्शन के भी योग दिखायी पड़ सकते है।

मकर राशि- पत्नी के साथ वाद-विवाद से बचें उसके सामनें किसी भी स्त्री की भूल से भी चर्चा न करें, लेकिन ससुरालियों की तारीफ करतें रहे, महीनें में कम से कम एक बार पत्नी को मायके के दर्शन करवाते रहे तो कृपा आती रहेगी।

कुम्भ राशि- काले कारनामों का घड़ा लबालब भर चुका है इसके फूटनें से आयें भूचाल से बचनें के लिए घड़ों में घी भरकर दान करें या फिर किसी मोटी खुराकवाले व्यक्ति को नियमित पकवान खिलायें।

मीन राशि- आप बिना बुलायें किसी भी शादी में न जायें, पकड़े जानें पर आपसे पूरी साल फ्री में खाना खानें की चार गुना कीमत की बसूली के योग बन रहे है। उपाय के तौर पर अपनी रूखी – सूखी रोटी से ही गुजारा करें।  

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

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