ईयरफोन की महिमा

 

ईयरफोन की महिमा


ईयरफोन की महिमा


वह व्यस्त है अपनी एक अलग दुनियां में, किसी से कोई मतलब नही, अपनी ही धुन में मस्त है, न किसी की सुनना न किसी से कुछ कहना। यह स्थिति तो बैरागियो की होती है, क्या वह बाबा बैरागी हो चला है या फिर हो सकता है कि दीवाना हो गया हो। क्योकि दीवानापन भी व्यक्ति को इस स्थिति में ला सकता है।

नही- नही वह तो आधुनिकता का मारा और तकनीकी का शिकार है। इसी के चलते उसने अपने कानों में ईयरफोन रुपी यंत्र लगा रखा है। जब से उसनें इस यंत्र को अपनी दिनचर्या में शामिल किया है तब से मानों उसकी जिन्दगी ही बदल गयी हो। जहॉ पहले घर और मौहल्लें में उसकी कहा-सुनी को लेकर महाभारत हो जाया करती थी वहीं इस यंत्र की व्यस्तता के चलते हर तरफ शांति ही शांति है। बाजार में जाता है तो भी मधुर संगीत कानों में इस यंत्र के माध्यम से निरन्तर बहता रहता है। संगीत में रमा मन कहां मोल-भाव करता है नतीजन दुकनदारों का समय बचता है और उनको भी मुंह मांगे दाम बिना किसी अतिरिक्त परिश्रम के मिल जाते है। वहीं कल शाम को वह मन्दिर की मुड़ेर पर बैठा संगीत में सराबोर हो रहा था, संगीत में समय का पता ही नही चला कि कब मन्दिर के पट बन्द होने का समय हो चला। शाम के अन्धेरे में इस संगीत प्रेमी में किसी को कोई भिखारी नजर आया तो किसी को कोई बूढ़ा अपाहिज नजर आया, और फिर क्या था बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख वाली बात को प्रत्यक्ष प्रमाण मिल गया। कनचप्पें की झोली रूपयों और फलों से भर गयी। घर पहुंचा तो पत्नी और बच्चे खुश। उनकी खुशी का कारण कोई और नही यहीं कान से चिपका यंत्र है जो कनचप्पा को हर शाम मन्दिर की मुड़ेर पर बरबस ही खींच ला रहा है।

इस यंत्र में कुछ तो खास है तो घास को भी खास बना देता है। निठल्लों को भी काम का बना देता है। इन छोटे से दो बटन रूपी यंत्र की अपनी अलग ही महिमा है जो देखन में छोटे लगे और घाव करे गम्भीर। गांव से जब प्रधान जी के अत्याचारों की शिकायत लेकर कनचप्पा शहर गया तो बड़े बाबू भी कनचप्पा की तरह अपनी मस्ती में मशगूल थें, सिर्फ गर्दन हिला रहे थें, शायद मधुर संगीत के साथ- साथ मुख में पान रस का भी स्वाद ले रहे थे। बेचारा कनचप्पा वापिस गांव को यह सोचकर लोट चला कि चलो शिकायत तो हो गयी, शहरी बाबू है इनका काम करनें का अलग ही स्टायल होता है। गर्दन हिली मतलब अब प्रधान की गद्दी हिल ही जायेगी।

वापसी में बाजार से होता हुआ घर जा रहा था कि घोड़ा गाड़ी वाले का घोड़ा भड़क गया क्योकि कनचप्पा की तरह घोड़ा गाड़ी वाला भी कान में यंत्र लगाकर संगीत में बह रहा था, अन्दाजा नही मिला और घोड़े को चाबुक कुछ जोर से लगा दिया, नतीजन बाजार में अफरा- तफरी मच गयी और लोगो का शोर कनचप्पा के कानों को स्पर्श न कर सका। घोड़े नें कनचप्पा को लतिया दिया और जब आंख खुली तो कनचप्पा नें स्वंय को अस्पताल में पाया, पास में बच्चे और पत्नी खड़ी थी। कनचप्पा दर्द से कराह रहा था। नर्स कानों में यंत्र लगा कर अन्य मरीजों के इन्जेक्शन लगानें में मशगूल थी। उधर प्रधान जी भी कानों में यंत्र लगाकर मधुर संगीत सुनते हुये कनचप्पा का हाल जाननें के लिए अस्पताल में कनचप्पा को खोज रहे थें।

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" ने अपनें राष्ट्रीय संस्करण में दिनांक 10 अप्रैल 2023 को प्रकाशित किया है। 

ईयरफोन की महिमा


Gaurav Saxena

Author & Editor

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