व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को अपने नयें कार्यालय के लिए ठलुआ, निकम्में व्यक्तियों की आवश्यकता है। पूर्व में एडमिन रह चुके युवक – युवतियों को वरियता दी जायेगी। वेतन योग्यतानुसार न होकर अनुभव के आधार पर होगा। अनुभव के तौर पर पूर्व में अफवाह फैलानें वाले, भ्रामक सन्देश भेजनें वाले, दंगे भड़कानें वाले, अमर्यादित सन्देश वालों के अनुभवों को वरीयता के आधार पर विशेष मान्यता दी जायेगी।
जैसे ही अखबार में यह खबर पंगुलाल नें पढ़ी तो वह खुशी से झूम उठा, उसका मन मयूर नृत्य करनें लगा। खबर की कटिंग को पर्स में दबाकर अपनें गुरू चंगुलाल के पास पहुंचा तो चंगूलाल आराम से धूप में बैठा अलसिया रहा था और बीच- बीच में व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में अपनें अनुभव साझा भी करता जा रहा था।
गुरूदेव चरण स्पर्श.....
आयुष्मान भव वत्स, कैसे आना हुआ। सब खैरियत तो है ना।
जी गुरूदेव, यह आपकी कृपा और दीक्षा के बल का ही प्रभाव है कि जो जीवन कुशल मंगल से व्यतीत हो रहा है। गुरूदेव आप यह अखबार की कटिंग देखे और इस विज्ञप्ति में मेरे पद की दावेदारी पर अपना आर्शीवाद प्रदान करें।
गुरुदेव नें अपनें अन्धे हो चुके चश्में से नजर गढ़ाकर कटिंग को गौर से पढ़ा औऱ बोले कि बेटा - काम तो अच्छा है नाम औऱ इज्जत भी खूब है। लेकिन ..........
लेकिन क्या गुरूदेव, जल्द बताइयें।
देखो बेटा पंगु वैसे तो आजकल उल्टा सीधा, काला- सफेद सब कुछ चल रहा है या कहे कि दौड़ रहा है। लेकिन समाज में एक वर्ग व्यंग्य लेखकों का है जो समाज में घटित होनें वाली हर एक खबर पर अपनी पैनी नजर रखते है। यदि जरा सी भी ऊंच-नीच हुयी तो समझों कि गयी भैस पानी में। नौकरी छोड़ो जेल भी जा सकते हो। हम जैसे लोगो को सबसे ज्यादा खतरा इन व्यंग्य लेखकों से ही है जिनके व्यंग्य वाण से बच पाना नामुकिंन है।
तो फिर गुरूदेव क्या करें, क्या निठल्ले बैठ कर गप्पे लड़ायें। मैं तो बहुत उम्मीद के साथ आपके पास आया था, और आपने तो भयभीत कर दिया।
नही बेटा, भयभीत नही होना है निर्भीक होकर काम करना है। जब इतनी विसंगतियों के बीच व्यंग्य लेखक निर्भीक होकर लिख रहे है, नित्य नयें विषयों से समाज को आईना दिखा रहे है तो फिर हमें भी निर्भीक होकर अपना काम करते जाना है। यदि हमनें अपना काम छोड़ दिया तो फिर इस व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को कौन पूछेगा, इसके लिए आखिर हमें ही तो काम करना होगा। समाज में नफरत, भ्रमजाल, अफवाहे हम नही फैलायेगे तो कौन फैलायेगा। अखिर इन्ही नफरतो की आंच में तो हम अपनी रोटी सेंकते है और इसी से अपना पेट पलता है। तुम निडर हो इस पद के लिए आवेदन करों और नौकरी पाकर मेरा भी ध्यान रखना।
आपका ध्यान कुछ समझा नही गुरूदेव...
ध्यान से अभिप्राय यहीं है कि अगली बार जब इस यूनिवर्सिटी में कुलपति के लिए भर्ती निकले तो मुझे तुरन्त बताना क्योकि मेरे लिए यहीं पद सबसे उपयुक्त होगा और इसीं पद पर आसीन होकर मैं ज्ञान की अविरल गंगा प्रवाहित कर सकूंगा।
बिल्कुल गुरूदेव, मैं अवश्य ध्यान रखूंगा। इतना कहकर पंगु चल दिया और आवेदनकर्ताओं की सूची में प्रथम स्थान पाकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में नौकरी पा गया।
फिर क्या था दिन-रात नफरत, अफवाह, भ्रम फैलानें का काम धड़ल्लें से चल निकला, देखते ही देखते पंगु व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का चहेता प्रोफेसर बन गया।
लेकिन एक दिन उसकी पोस्ट एक व्यंग्य लेखक से जा टकरायी, व्यंग्य लेखक नें सुधरनें की हिदायत दी लेकिन पंगु कहॉ माननें वाले नतीजन भड़काऊ पोस्ट आगे सफर तय करती रही और एक दिन सरकार तक जा पहुंची और बेचारे पंगु आज भड़काऊ पोस्ट के चक्कर में जेल में चक्की पीस रहे है। औऱ उधर उसके गुरूदेव पहचान छिपाकर भागे – भागे घूम रहे है।
व्यंग्यकार
गौरव सक्सेना
उक्त लेख को राष्ट्रीय समाचार पत्र "अमर उजाला" नें 14 मई 2023 के अंक में प्रकाशित किया है।
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