पश्चाताप के आंसू

 पश्चाताप के आंसू

पश्चाताप के आंसू


रामगढ़ में एक प्रसिद्ध राजा राज्य करता था वह बहुत ही धर्मात्मा और न्यायप्रिय था। उसके राजदरबार में एक महान प्रकाण्ड ज्योतिषी था। राजा जी प्रत्येक दिन अपनें जीवन की गृहदशा तथा आनें वाले समय के बारे में उससे पूछते रहते थें और ज्योतिषी को काफी इनाम देकर खुश करते थें यह क्रम काफी दिनों से निरन्तर चला आ रहा था फिर एक दिन राजा नें अपनें जीवनकाल के ग्रह दशा के बारे में पूछा तो पंडित जी नें बताया कि अब आपके दिन बहुत ही खराब आनें वाले है और दो दिन के अन्दर आपकी सर्पदंश से मृत्यु हो जायेगी, यह एक अटल सत्य है क्योकि पूर्व जन्म में आपनें एक नागिन का वध कर दिया था, उसी का नाग आपसे बदला लेना चांह रहा है लेकिन आपकी विशेष सुरक्षा के कारण वह बदला नही ले पा रहा है तथा वह सर्प आपके बाग की एक बामी में निवास करता है। जो कि उपयुक्त अवसर की तलाश में निरन्तर प्रयासशील है। लेकिन अब वह अवश्य ही बदला लेकर रहेगा। 


राजा जी कुछ चिन्तित तो हुये परन्तु उन्होनें धैर्य नही खोया। राजा जी नें अपनें दरबार में आकर सभी सैनिको को सचेत कर दिया और अपनें सैनिको के साथ बाग में सर्प की बामी को देखने गये जिसमें सर्प सो रहा था। राजा नें अपनें सैनिको को तुरन्त आदेश दिया कि सर्प के बामी से लेकर राज सिंहासन तक गुलाब के फूलों को बिछा दिया जाये तथा प्रत्येक 4 फुट पर एक सोनें के कटोरो में दूध रखा जाये। राजा की आज्ञा का पालन किया गया। नियत समय पर सर्प राजा को डसनें के लिए फूलों के बीच से होता हुआ तथा रास्ते में पड़नें वाले कटोरो का दूध पीता हुआ राजा के पास तक पहुंचा। तो राजा नें तुरन्त अपना हाथ सर्प की तरफ बढ़ाकर कहा कि मैं आपका दोषी हूं क्योकि मैनें पूर्व जन्म में आपकी नागिन को मारा था, जो कि किसी भी प्रकार से दोषी नही थी। आप मेरे हाथ को डस ले जिससें मेरी मृत्यु हो जायेगी और इस प्रकार से आपका बदला भी पूरा हो जायेगा।


राजा की बात सुनकर सर्प भावुक हो गया और बोला कि मैं आपके कृत्य से अत्यधिक प्रभावित हुआ हूं। आपनें मेरे सम्मान में जिस प्रकार से पुष्प वर्षा करवायी तथा दूध पिलाया। उससे मैं बहुत खुश हूं और आपको अब मांफ कर रहा हूं। आप दीर्घायु हो।

इतना कहकर सर्प राजा को बिना डसे ही वापस चला गया लेकिन बेचारा राजा पश्चाताप के आसुओं से स्वयं को रोक नही पाया और फूट-फूट कर रोनें लगा। अपनें पूर्व जन्म के अपराध को सोच- सोचकर बहुत दुखी था। लेकिन उसे इस बात की खुशी थी कि सर्प नें उसे माफ कर दिया।


राजा नें सर्प के सम्मान में उस बाग को आम जनता के लिए बन्द करवाकर केवल सर्प के निवास हेतु ही संरक्षित करवा दिया। जिससे कि सर्प बिना किसी व्यवधान के आराम से उस बाग में जीवन यापन कर सकें। हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि राजा के प्रति सर्प एक शत्रु के रूप में था, लेकिन राजा नें उससे घृणा न करके प्रेम किया और प्रेम के कारण ही राजा का जीवन बच सका।  

 

लेखक

जगत बाबू सक्सेना

सह सम्पादक प्रज्ञा कुंभ



उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म " नें अपनें 01 मई 2022 के अंक में प्रकाशित भी किया है। 


पश्चाताप के आंसू



Gaurav Saxena

Author & Editor

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