बाबू जी का हद्य परिवर्तन - हास्य व्यंग्य

 बाबू जी का हद्य परिवर्तन

बाबू जी का हद्य परिवर्तन - हास्य व्यंग्य



बड़े बाबू आज कल बहुत दयालु हो चले है और अत्यधिक धर्मात्मा भी। जो कहते थे कि मुझे मरनें तक की फुरसत नही है वह आज समय निकाल कर अन्य महिला कर्मचारियों के साथ काम में हाथ बटा रहे है। औऱ सारे दिन धर्म-कर्म की बाते करनें लगे है। कोई कुछ पूछें तो कहते है सब मोह माया हैसब यहीं का यहीं रह जायेगा। यदि इतना ज्ञान बाबू जी को पहले से था कि सब यहीं का यहीं रह जाना है तो फिर वेतन से गुजारा करनें में क्या हर्ज था। वेतन के अतिरिक्त आय के नित्य नये श्रोतों की खोज करनें का श्रेय हमारे प्रिय बड़े बाबू जी को ही जाता है। मुझे उनके रूखड़ और अभिमानी स्वभाव में अचानक से इस तरह का परिवर्तन देखकर हैरानी होनें लगी है। हर बात- बात पर सभी पर झल्लानें वाले बाबू जीसुविधा शुल्क के बिना काम न करनें वाले बाबू जीसदैव चुगलखोरी और ऑफिस राजनीति में आग का काम करनें वाले बाबू जीपान की पीक से दफ्तर की दीवालों को रंगीन बनानें वाले बाबू जी को आखिर हो क्या गया है। इतना बड़ा बदलाव तो मैनें आज तक कभी नही देखा। आज कल पूरे दफ्तर में सिर्फ बड़े बाबू जी के ही चर्चे है। सभी कर्मचारी आखिर जानना चांह रहे है कि बाबू जी ने कौन सी बूंटी का सेवन कर लिया है जो एकाएक स्वभाव में इतना बड़ा परिवर्तन आ गया है। काश बाबू जी को यह बूंटी पहले मिल गयी होती तो न जानें कितनें कर्मचारियों को मानसिक सुख मिल गया होता।


एक दिन मैनें उनसे पूंछ ही लिया – कि बाबू जी आपके स्वभाव में अचानक से यह परिवर्तन कैसे हुआ। तो बाबू जी बोले कि मैं कुछ ही दिनों में सेवानिवृत्त हो जाऊंगा। तो सोचा कि अन्तिम चन्द दिनों में लोगो का प्यार बटोर लूं ताकि रिटायरमेंन्ट के बाद लोग मुझे याद कर सकें। क्योकि अन्त भला तो सब भला। यदि मैं सभी से प्यार से नही बोलूंगा तो विदाई समारोह में मिलनें वाले सम्मान औऱ पुरूस्कार में कमी आ जायेगी। जो कि मैं किसी भी कीमत पर आनें नही देना चाहंता हूं।

परिवर्तित बाबू जी के स्वभाव में मैं अभी भी उनके पुरानें स्वभाव के प्रत्यक्ष दर्शन कर रहा था। मैनें कहा - नही बाबू जीआपका विदाई समारोह ऐतिहासिक होगा। आप इस बात की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दे।


देखते ही देखते माह की अन्तिम तिथि अर्थात विदाई समारोह का दिन भी आ गया। पूरे दफ्तर में साफ सफाई का काम चल रहा था। पूरे कार्यकाल में बाबू जी के द्वारा मुख से निकाली गयी रंगीन पिचकारी से दीवालो पर जो चित्रकारी की गयी थीउसको भी ढ़कनें का बन्दोबस्त किया जा रहा था तांकि कैमरे को एक अच्छा बैंकग्राउन्ड मिल सकें। सभी कर्मचारी बाबू जी को भेट करनें के लिए उपहार खरीदकर ला रहे थे। मैं भी बाबू जी के लिए एक कीमती उपहार की खोज में था।


दोपहर का वक्त हो चला विदाई समारोह का प्रारम्भ बस कुछ ही घन्टों में प्रारम्भ होनें वाला था। बाबू जी का अकस्मात ही मन मचल गया। वे चपरासी से बोले कि जाओं ठन्डी शिकंजी बनाकर लाओं। शिकंजी के लिए नीबू की जरूरत औऱ नीबू की बढ़ी हुयी कीमत तथा धूप में बाजार न जानें की चाहत में चपरासी नें भी शार्टकट में छलांग लगायी औऱ नीबू के स्थान पर चीनी घुले पानी में थोड़ी टाटरी मिलाकर बाबू जी को पिला दी। बाबू जी आग बबूला हो गये और जाते – जाते चपरासी को श्राप दे गये कि तेरी कभी भी तरक्की नही हो सकती। मैनें बाबू जी के क्रोध को कोल्डड्रिंक के छीटों से शांत किया और जैसे तैसे कार्यक्रम को प्रारम्भ करवाया। बाबू जी नें दुखी मन से सभी से मिलजुल कर निरन्तर कार्य करते रहनें की सीख दी। सभी कर्मचारियों नें बाबू जी को उपहार देनें प्रारम्भ कर दियें। मेरी बारी आनें पर मैने उन्हे नीबू से भरा एक थैला उपहार दिया जो कि एक आजकल का सबसे महंगा उपहार भी हैऔर मैनें कान में बाबू जी से कहा कि आप नीबू पानी पीकर अपनें मन मस्तिष्क को सदैव शांति प्रदान करते रहना। जिससे कि आपके परिवार में सदैव सुख शांति बनी रहें। बाबू जी धीरे – धीरे कदम बढ़ाकर दफ्तर से विदा ले रहे थें। उनके पीछे चपरासी और उनका लड़का - बहू साथ – साथ चल रहे थें।


दफ्तर के गेट से बाबू जी नें सभी का अभिवादन किया । बाबू जी के चेहरे पर आत्मग्लानि व किसी अपराधबोध की भावना को बखूबी पढ़ा जा सकता था। मैं सोच रहा था कि काश बाबू जी को यह स्वभाव परिवर्तक बूंटी शुरूआती दौर में ही मिल गयी होती जिससें कि दफ्तर के अन्य अधीनस्थ कर्मचारी और जनता का निरन्तर भला होता रहता।  

 

लेखक

गौरव सक्सेना

354 – करमगंजइटावा


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म " नें अपनें 01 मई 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 

बाबू जी का हद्य परिवर्तन - हास्य व्यंग्य


Gaurav Saxena

Author & Editor

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