स्वाति बूंद कवि सम्मान - व्यंग्य लेख


स्वाति बूंद कवि सम्मान - व्यंग्य लेख


 स्वाति बूंद कवि सम्मान

सम्मान एक ऐसा शब्द है जो सभी को सुख देता है और यह शब्द तो हम कवियों के लिए कोई स्वाति बूंद से कम नही होता है। अब आप कहेगे कि कविवर यह स्वाति बूंद क्या है बचपन में इस शब्द से आपका कभी परिचय हुआ होगा लेकिन जिन्दगी की भागदौड़ में तो न जानें क्या – क्या पीछे छूट जाता है फिर तो यह केवल शब्द है। अब सरल भाषा में आपको समझा दे कि चातक नाम का पक्षी होता है जो वर्ष भर प्यासा रहता है वर्षा के रुप में सिर्फ एक स्वाति बूंद पीनें के लिए। इसी स्वाति बूंद के लिए वह पूरे वर्ष भर आकाश को निहारता रहता है। ठीक ऐसी ही कुछ स्थिति मेरी है जो कि साहित्यिक सम्मान रूपी वर्षा के लिए वर्ष भर आयोजकों की ओर निहारता रहता हूं कि कब पुरुस्कार रूपी स्वाति बूंद मेरे कर कमलों को सुशोभित कर कंठ को शीतल करेगी। लेकिन इन्तजार भी समाप्त हो चला है साहित्य सम्मेलन के लिए बुलावा आ गया है आंमत्रण पत्र में लिखा भी है कि कवियों को पुरूस्कृत भी किया जायेगा। तो पुरूस्कार की इस उम्मीद में मैनें अपनी पत्नी को बताया कि कल सुबह ही जयपुर साहित्य सम्मेलन के लिए निकलना है तैयारी करवा देना। श्रीमती जी नें तुरन्त पूछा कुछ मिलेगा भी या फिर वाह वांही में ही अपना फ्री का चन्दन घिसकर चले आयोगे। बात बढ़ती इससे पूर्व ही मैनें यह कह कर बात समाप्त कर दी कि फ्री का चन्दन भला मैं क्यों घिसूंगा। 


सुबह अलार्म घड़ी के जगनें से पूर्व स्वयं ही जाग गया। श्रीमती जी से रास्ते के लिए भोजन बनवाया और एक लम्बे खादी आश्रम के झोलें में अपनी किताबों को समेटकर मैं निकल पड़ा सम्मेलन में भाग लेनें। 

तय समय से पूर्व ही एक बड़े सभागार में प्रथम कुर्सी पर स्वंय को आसीन किया। औपचारिकताओं के साथ पुरूस्कार वितरण प्रारम्भ हुआ तो सोचा कि एक दो कवियों के बाद मेरा नाम आयेगा। अब नाम बोला जायेगा, बस अब तो निश्चित ही बोला जायेगा .....

घन्टेभर के इन्तजार के बाद संचालक नें माईक से घोषणा कि अब अन्तिम पुरुस्कार का वितरण होगा जो कि सबसे बड़ा पुरूस्कार होगा। इसके लिए आप सभी को थोड़ा सा इन्तजार करना होगा। 


मैनें तय किया कि मानों या ना मानों यह पुरुस्कार निश्चित ही मुझे मिलेगा। आखिर समाज को जाग्रत करनें वाली सर्वश्रेष्ठ कवितायें तो मैने ही दी है। लेकिन यह क्या सारा खेल ही पलट गया अन्तिम पुरुस्कार भी कवि चंगू लाल को मिल गया। मैं क्रोध से भरा हुआ चुपचाप से आयोजक के पास पहुंचा तो पूछा कि मुझे पुरूस्कार क्यो नही मिला, क्या मेरा साहित्यिक योगदान कम था। तो वह बोला कि आजकल कविवर साहित्यिक योगदान से कहीं ज्यादा आर्थिक योगदान महत्वपूर्ण होता है जो कि आपनें इस संस्था को कभी नही किया। यदि यही हाल रहा तो हमें अगले वर्षो में आंमत्रण पत्र भी सोच समझकर भेजनें पड़ेगे। मैं आयोजक के शब्दों का अर्थ भली प्रकार से समझ चुका था। अपना झोला उठाया और निकल पड़ा बाजार में, स्वयं ही एक सफेद मखमली शॉल खरीदी और एक स्मृति चिन्ह आखिर श्रीमती जी को तो कुछ दिखाना ही पड़ेगा नही तो ....... तभी दुकनदार बोला कि कविवर स्मृति चिन्ह पर क्या लिख दूं तो मैनें कहा सुनहरे अक्षरों में लिख दो - स्वाति बूंद कवि सम्मान


उक्त व्यंग्य लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 24 अप्रैल 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 



लेखक 

गौरव सक्सेना

354 – करमगंज, इटावा


Gaurav Saxena

Author & Editor

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