कुत्तों की करूण कथा - व्यंग्य लेख

 कुत्तों की करूण कथा -  व्यंग्य लेख


कुत्तापुर के सभी कुत्तें अब आन्दोलन के मूढ़ में है। आखिर बेचारे कब तक घुट- घुट कर घरों की जूठन खाते रहेगे। एक दिन तो घूरे के दिन भी फिर जाते है। उसे भी एक नया स्थान मिल जाता है। तो क्या कुत्तापुर के कुत्ते इतनें बदनसीब हो गये है कि उनके दिन – दिशा नही बदल रहे है। अरे, जब कभी किसी नेता जी की पार्टी के बाद एक दो हड्डी चबाने को मिल भी गयी तो इससे भला क्या होता है। यह कोई दिन फिरनें वाली बात थोड़े हुयी।

बहुत हो गया, अब और सहन नही होता। कुत्तों के सरदार कल्लन नें एक जोर दार आवाज में दहाड़ते शेर की तरह हुंकार भरी। जो कि एक कुत्तों की एक बड़ी सभा को सम्बोधित कर रहा था। सभी कुत्तों नें कल्लन की हां में हां मिलायी। कल्लन बोला कि हम लोगो का समाज में अब कोई वजूद ही नही रह गया है। एक जमाना हुआ करता था जब हमारा सिक्का घूमता था। मौहल्लें के मौहल्लें बटे हुआ करते थें। मजाल है कि कोई तू तड़ाक भी कर दे। लेकिन अब क्या कहे हर कोई लतियाकर चला जाता है। इसका कारण कुछ और नही हमारी कौम में एकता की कमी और हमारा निकम्मापन है जिसकी वजह से ही हम आज दर–दर जूठन के लिए भटक रहे है। विदेशी नस्ले भी हमारी ही कौम से निकली है जिन्होनें केवल अपना हित देखा और हम चुपचाप निठल्लें हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे। जिसका नतीजा यह हुआ कि विदेशी कुत्तें कोठियों की शान होते गयें और हम दिनो-दिन लोगो की अपेक्षा के शिकार होते गये।

आज विदेशी नस्ल के कुत्तें कारो में घूम रहे है, मैम साहब की गोद में खेल रहे है। एयरकन्डीशन कमरों में आराम फरमा रहे है और हम सड़को पर धक्के खा रहे है। लेकिन अब यह सब नही चलेगा। इन्सानों को फिर से हमारी तरफ मुड़ना होगा। क्योकि रखवाली के मामलें में हम अब भी विदेशी कुत्तों से कहीं आगे है। माना कि हम रंग रूप और आकार में उनसे कम है तो क्या हुआ हमारे पास पुराना तजुर्बा है। यही तजुर्बा हमें हमारी खोयी हुयी पुरानी पहचान दिलवायेंगा। सभी कुत्ते ध्यान से कल्लन की बाते सुन रहे थें।

तभी अचानक कुत्तों के युवा कटखनें नेता छुट्टन को उसके चेले लटकाकर सभा के बीच में लायें। उसकी यह हालत देखकर सभा में अफरा तफरी मच गयी। कल्लन नें सभी से शांति व्यवस्था बनायें रखनें की अपील की तथा कल्लन नें उसके चेलों से छुट्टन की इस मरणासन्न स्थिति के बारे में पूछा ? चेले कुछ बोलते उससे पहले ही छुट्टन दबे सुर में बोला–अरे दादा, कुछ न पूछों शार्टकट के चक्कर में मात खा गया। तो कल्लन नें उससे साफ- साफ बात बतानें को कहा। तो छुट्टन बोला कि पिछले हफ्ते विदेशी कुत्तों की प्रदर्शनी लगी थी मैनें सोचा कि कब तक जूठन से गुजारा करेगे, मेहनत भी अब होती नही है तो सोचा कि विदेशी कुत्तों की शक्ल की बिग (बालों का बनावटी आवरण) पूरे शरीर में लगवा ले तो कोई मैमसाहब विदेशी नस्ल का कुत्ता समझकर खरीद लेगी और फिर मौज की जिन्दगी कटेगी।

लेकिन फिर यह हालत कैसे हुयी– बीच में ही कल्लन नें पूछा ?

अरे दादा, एक सुन्दर मैडम को मैं पसन्द आ गया। उनका मैं प्यारा पम्मी बन गया और उनकी गोद में खेलता कूदता घर पहुंचा। तथा शाम को जैसे ही मेरे लिए मसालेदार खाना आया तो मेरी जीभ लपलपा गयी। मुझसे रहा नही गया और मैं मैडम की गोद से उछलकर मसालेदार खानें पर टूट पड़ा। और जल्दबाजी के चक्कर में मेरी बिग(बालों का बनावटी आवरण) मैडम के हाथों में ही रह गयी। और मेरा असली चेहरा मैडम के सामनें आ गया फिर क्या था मैडम नाराज हो गयी और बोली यह तो कोई बाजारी लंफगा कुत्ता है। मारो इसको...... फिर क्या था उनके गार्डो नें मेरी मार- मार कर खाल उधेड़ दी। ऐसी मार से तो अच्छी जूठन ही थी। कम से कम हड्डी पसली तो न टूटती।  

यह सुनकर कल्लन जोर- जोर से ठहाके मारकर हसनें लगा और बोला ठीक रहा। तुम निठल्ले कुत्तो के साथ यही होना चाहियें जो चेहरा बदलकर भेड़ियें के रूप में समाज को नित्य खोखला कर रहे है। यही सब कारणों के कारण आज समाज पिछड़ता जा रहा है।

कल्लन की डांट सुनकर छुट्टन लंगडाते हुयें धीमें से मैदान से बाहर निकलनें लगा औऱ पीछे- पीछे अन्य सभी सभा के सम्मानित सदस्यगण (कुत्ते) भी जानें लगें क्योकि पुलिस को इस आम सभा की भनक लग चुकी थी। और बस कुछ ही देर में पुलिसियां लठ्ठ चलनें ही वाला था।
 
 
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 17 अप्रैल 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 


 

कुत्तों की करूण कथा


लेखक
गौरव सक्सेना


Gaurav Saxena

Author & Editor

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