मंहगाई बनी बीमारी – व्यंग्य लेख

  मंहगाई बनी बीमारी – व्यंग्य लेख

मंहगाई बनी बीमारी – व्यंग्य लेख



वो वरिष्ठ है क्योकि उन्होनें हम सभी लेखको में सबसे पहले लिखना शुरू किया था। हमारी कौम में वरिष्ठ होना भी अपनें आप में एक बड़ी उपलब्धि है। हम लेखन मंडली उनसे नये विषय प्राप्त करनें के लिए निरन्तर वार्तालाप करते रहते है। आज मैं उनके घर पहुंचा तो वह देखते ही बोले... अरे बेटा कैसे हो ... कैसे आना हुआ। तुम तो मंडी के नीबू हो गये। उनके श्रीमुख से कब क्या निकलकर शिलालेख बन जाये या कहे कि वायरल हो जाये कोई नही जानता। मैने इस नये मुहावरे को आज से पूर्व तो कभी सुना नही था सोचा कि कोई लेखन का नया अपग्रेटेड टर्म होगा, बाद में इसका अर्थ स्पष्ट्र होगा।


लेकिन तभी अन्दर से भाभी जी की आवाज आयी की अब कौन सा नया मुहावरा निजाद कर दिया है। बस बैठे – बैठे शब्दों की ही फसल उगाना। भाभी जी का बड़बड़ाना थोड़ा मन्द हुआ तो मैं साष्टांग प्रणाम करके गुरूदेव के चरणों में बैठ गया। उन्होनें मुझे उठाया और अपनें पास सोफे पर बैठाया और मेरे आगमन का कारण पूछा तो मैनें कहा गुरूदेव मैं सभी लेखको की तरफ से आपके पास आया हूं। हम सभी लेखक परेशान है बढ़ती मंहगाई नें तो जीना मुश्किल कर दिया है। अब आप ही कृपा करके कोई उपाय बतायें जिससे कि हमारी रोजी रोटी चल सकें। ना तो कोई आयोजक बुलाता है और न ही कोई अखबार हमें फूटी कोड़ी देता है। चाय पानी तक के लिए लाले पड़े है।

चाय पानी की बात सुनते ही भाभी जी दो गिलास पानी लेकर आयी। भाभी जी की तनी भृकुटी से स्पष्ट्र था कि मुझे इस सादा पानी को ही नीबू पानी मानना होगा। और माननें में तो हम लेखको का कोई सानी थोड़े ही है। न जानें हमनें अपनें आपको को अब तक क्या- क्या मान रक्खा है।


तभी गुरूवर नें कहा कि बेटा हमारी कौम में भी कुछ कमियां है वरना इतना मुश्किल समय नही है कि हम मंड़ी – मंडी भटके। माना कि समय बदला है, नयी चुनौतियां सामनें आयी है लेकिन इन सभी के साथ-साथ हमें नयें विकल्प भी खोजनें होगे। गुरूवर कुछ स्पष्ट्र नही हुआ और आपको क्या हो गया है यह मंडी और नीबू यह नयें- नयें मुहावरे क्या है। गुरूवर ......

देखो बेटा इन मुहावरों से ही तुम सबसे बड़ी सीख ले सकते हो। समय के साथ – साथ जब ईद का चॉद होना मंडी के नीबू हो सकता है। तो तुम इस मंहगाई में नीबू के नीबू बक्कल के दाम क्यो नही हो सकते हो। लेकिन तुम लोगो को तो एक दिन में ही नीबूपती बनना है। तुम सबके सामनें तो बस भैस के आगे नीबू खानें जैसा है।

मैं समझ चुका था कि मंहगाई से बचनें का कोई उपाय गुरूवर के पास नही है। क्योकि मेरे गुरूवर कोई सरकार थोड़े ही है वह भी तो एक नीबू ही है अरे.... एक इन्सान है।

तभी भाभी जी से पता चला कि मंहगाई के चलते मंडी से नीबू गायब हो गया और कई हफ्तों सें गुरूदेव नें नीबू पानी नही पिया है इसलिए दिमाग पर गर्मी का असर है और गुरूवर निबुरिया नामक बीमारी से ग्रस्त है।

मैं कुछ बोल पाता कि भाभी जी बोल पड़ी कि यह एक नयी बीमारी है और बहुत तेजी से फैल रही है और नित्य इसके नयें वैरियन्ट सामनें आ रहे है।

यह बीमारी मुझें कहीं लगती इससे पहले ही मैं उनके घर से नौ दो ग्यारह हो गया कि कहीं इसका मंहगरिया नामक नया वैरियन्ट मुझे न लग जायें।



लेखक

गौरव सक्सेना

354 – करमगंज, इटावा


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 15 मई 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 

मंहगाई बनी बीमारी – व्यंग्य लेख


Gaurav Saxena

Author & Editor

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