हर दिन ‘ मदर डे ’ क्यों नहीं

 

हर दिन ‘ मदर डे ’ क्यों नहीं


हर दिन मदर डे क्यों नहीं

मॉ एक पवित्र शब्द है, जिसे अलंकारो और परिभाषाओ में नही बांधा जा सकता है। इन सभी शब्दो से परे है मॉ की महिमा। मॉ वह है जो इस धरती पर साक्षात ईश्वर के रूप में मौजूद है। बस आवश्यकता है उसकी महत्ता को समझनें की और उसे हद्य से सम्मान देनें की।

मॉ संस्कारों की वह भूमिजा है जो अपनें बच्चे को गर्भ से ही संस्कारों से सिंचित करती है। मॉ बाल्यकाल से ही अपने बच्चो की बिना किसी लोभ लालच के पालन- पोषण करती है। यहीं मॉ ही तो है जो बच्चे का प्रथम गुरू होती है। सच्चे अर्थो में मॉ ही गुरू के रुप में एक समाज के निमार्ण में अपना पहला बीजारोपण करती है।

हर एक कामयाब इन्सान के पीछे उसकी मॉ की एक अलग भूमिका होती है। मॉ है तो मुन्सी प्रेमचन्द्र की लेखनी है, निराला की प्रार्थना है, गॉधी का सत्याग्रह है, स्वामी विवेकानन्द जी का उदघोषण है।

हमें अपनी या किसी भी मॉ को कभी भी किसी भी हाल में दुख नही देना चाहियें, हमें अपनें प्रति उसके निस्वार्थ प्रेम को विस्मृत नही करना चाहियें, हम पाश्चात्य सभ्यता की आधुनिक दौड़ में मॉ को भूल जाते है उसके जीवन भर के उपकारों को चन्द सिक्कों की खनक के आगे धूमिल कर देते है। यहीं उपेक्षा ही समाज में वृद्धाश्रमों का निर्माण करती है जिसमें एक मॉ अपनें बच्चों के होते हुये भी अलग- थलग रह कर अपनें जीवन के शेष दिन इस उम्मीद में बिता देती है कि उसका बेटा किसी न किसी दिन उसे वापस लेनें वृद्धाश्रम आयेगा। कुछ के तो प्राण पखेरू भी इसी उम्मीद में उड़ जाते है।

धिक्कार है सन्तानों के इस प्रकार के कृत्य पर औऱ एक जोरदार तमाचा है उस समाज पर जो किसी मॉ को उसका सम्मान न दिला सके।

किसी एक दिन को मॉ के लिए मदर डे के रूप में मना लेनें भर से मॉ की ममता, त्याग को तौला नही जा सकता है। यह सिर्फ एक दिखावा हो सकता है, सोशल मीडिया पर वाहवाही हो सकती है, एक दिन की फुर्सत हो सकती है, मनोरंजन का उत्सव हो सकता है।

जरूरत है तो हर एक दिन मॉ को हदय से सम्मान देनें की न कि किसी विशेष दिन उसे उपहार देनें की।

सोचिए भला जिसनें हमें जीवन दिया उसे हम क्या दे सकते है। मॉ तो वह है जिसनें ईश्वर को भी जन्मा है और ईश्वर भी मॉ के सामनें उसका आर्शीवाद लेनें के लिए नतमस्तक है।

 

गौरव सक्सेना

युवा व्यंग्यकार


(उक्त लेख को राष्ट्रीय समाचार पत्र 'अमर उजाला' ने 12 मई 2024 को अपनें अंक में प्रकाशित किया है)

 


Gaurav Saxena

Author & Editor

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