सौतन की प्रतीक्षा में - व्यंग्य लेख


सौतन की प्रतीक्षा में - व्यंग्य लेख

 

सौतन की प्रतीक्षा में


लेखक बाबू नें अपने दरवाजे पर लिखा रखा है कि भूतपूर्व लेखक। कारण यह है कि अब लेखन कार्य छोड़ दिया है। एक जमानें में अखबारों के लिए लिखा करते थें। लेकिन समय बदला और नयें लेखको की होड़ में पुराना सिक्का दिनो-दिन खोटा होता चला गया, नतीजन अखबारों से मिलनें वाली आय समाप्त हो गई। इसलिए लिखना भी छोड़ दिया है।


समय बलबान होता है। कौन कब पुराना हो जायें कोई नही जानता। शादी के कार्ड के लिए कुछ नया लिखवाना हो तो मौहल्ले वाले दौड़े – दौड़े लेखक बाबू के घर जाते थे। किसी को कोई प्रभावशाली सरकारी पत्र लिखवाना हो तो लेखक बाबू से अच्छा विकल्प कोई नही होता था। देर रात तक उनके घर पर लोगो का आना- जाना लगा रहता था। उनके पाठक हर रविवार को उनके विशेष व्यंग्य लेख के प्रकाशित होनें का बेसब्री से इन्तजार करते थें। लेकिन समय के साथ-साथ कब क्या बदल गया स्वंय लेखक बाबू भी नही जानते है।


अब तो केवल शहर के पेन्टर ही लेखक बाबू की आय का एक मात्र साधन रह गयें है। अब आप कहेगे कि पेन्टरों से भला क्या आय होगी। तो बताते चले कि ट्रको औऱ अन्य गाड़ियों के पीछे जो स्लोगन लिखे होते है वह लेखक बाबू की ही देन है। तेरा मेरा साथ, 56 के फूल 72 की माला - बुरी नजर बाले तेरा मुंह काला, आये दिन बहार के, हस मत पगली प्यार हो जायेगा जैसे सैकड़ो एक से बढ़कर एक स्लोगन देनें का श्रेय लेखक बाबू को ही जाता है। भला मजाल है कि उनके बताये स्लोगन को राहगीर पलट कर न देखे। यहीं कारण है कि शहर के पेन्टर आये दिन नये – नये स्लोगन उनसे खरीदनें के लिए आते रहते है। औऱ लेखक बाबू को तो लिखनें का वर्षो पुराना तजुर्बा है, इसलिए हर बार पेन्टरों को एक दम नया माल मिलता रहता है। लेकिन पता चला है कि पिछले सप्ताह एक पेन्टर नें उन्हे एक बड़ा पेमेन्ट देकर कई सारे स्लोगन एक साथ ही खरीद लिए है। लेकिन पेन्टर जल्दबाजी में स्लोगन को सही से कागज पर लिखना भूल गया।

दअरसल लेखक बाबू नें लिखनें को एक स्लोगन बताया था कि-  बाबू जी सौतन मत लाना..... तथा एक स्लोगन बताया था कि साईड की प्रतीक्षा में। लेकिन पेन्टर दुकान पर जाते- जाते रास्ते में कुछ का कुछ समझ बैठा औऱ स्लोगन के कुछ शब्द पेन्टर की स्मृति से औझल हो गये। नतीजन उसनें एक ट्रक के पीछे लिख दिया – सौतन की प्रतीक्षा में.....

ट्रक ड्राईवर जब अपनें घर पहुंचा तो पत्नी नें उसके लिखे नये स्लोगन को पढ़ लिया तब से ड्राईवर अस्पताल में भर्ती है। ट्रक ड्राईवर की पत्नी इस पेन्टर को खोज रही है, लेकिन यह पेन्टर शहर छोड़ चुका है। लगता है कि निकट भविष्य में पेन्टर भी लेखक बाबू की तरह अपना व्यवसाय बदल देगा।    

लेखक

गौरव सक्सेना

354 – करमगंज, इटावा


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 29 मई 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 

सौतन की प्रतीक्षा में - व्यंग्य लेख


Gaurav Saxena

Author & Editor

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