मौन की महिमा - व्यंग्य लेख
स्वयं को व्यस्त दिखाना भी एक कला है जो इसमें पारंगत है सच्चे अर्थो में वही जिन्दगी के मजे ले रहा है। बाकी तो सब मोह माया है। सरकारी दफतर में तो व्यस्तता इतनी दिखायी पड़ती कि लगता है कि बाबू जी लघुशंका के लिए भी नही जाते होगे। उनसे कुछ भी पूछो तो जबाब ही नही देते है। शायद मुख में भरे पानरस को समय से पूर्व मुक्त नही करना चांहते होगे या फिर अस्त व्यस्त रहकर व्यस्तता का सर्टीफिकेट नि:शुल्क प्राप्त कर रहे होगे। आपको बताते चले कि अब इस व्यस्तता का एक नया रूप भी दिखायी दे रहा है जो कि मौन रूप है। जिसमें मौन रहा जाता है। या ज्यादा जरूरत होनें पर केवल गर्दन और हाथ हिलाकर सांकेतिक भाषा के द्वारा ही दूसरे व्यक्ति को जबाब दिया जाता है। सरल शब्दों में हम कह सकते है कि व्यस्तता ही मौन की जननी है।
अब यह मौन रूपी नवीन गुण सरकारी दफतरों से होता हुआ बाजार, सब्जी मण्डी औऱ ऑटो चालकों तक पहुंच गया है। इसमें कोई बुरायी भी नही है नया गुण है तो प्रचार प्रसार तो लाजमी है। पुष्टि करनें के लिए अबकी बार जब आप सब्जी मण्डी जायें तो देखना कि व्यस्त न होते हुये भी आपके कितनी बार आलू का भाव पूछनें के बाद भी दुकानदार नें आपको जबाब नही दिया होगा और आप गुस्से में आगे बढ़ गये होगे। यही हाल तो बाजार का है कई बार सामान का मूल्य पूंछने के बाद जाकर कहीं आपको मूल्य बताया जाता है। कुछ जागरूक ग्राहको नें जब दुकानदारों से उनके इस प्रकार के नये व्यवहार के बारे में पूछा तो पहले तो कुछ दुकानदारों नें इस गूढ़ रहस्य को उदघाटित करनें से मना कर दिया तो कुछ नें सिर्फ इतना बताया कि व्यस्त रूपी मौन व्यवहार ट्रेंड में चल रहा है। इसलिए हम सभी इसे अपना रहे है। लेकिन छुट्टन टैक्सी ड्राईवर जो कि नया – नया टैक्सी मालिक बना है, बेचारा कल ही इस ट्रेंड के चक्कर में मात खा गया। एक सवारी नें ऑटो इधर आना की आवाज रेलवे स्टेशन के गेट से लगायी, लेकिन छुट्टन अपनी व्यस्तता दिखानें के चक्कर में आभासी व्यस्तता का चोला ओढ़े था। उसनें आवाज को जानबूझ कर अनसुना कर दिया और दोबारा ग्राहक द्वारा बुलाये जानें की प्रतीक्षा करनें लगा। लेकिन आवाज दोबारा नही आयी औऱ जब उसनें पलटकर सवारी की ओर देखा तो पाया कि सवारी उसके गुरू कल्लन के ऑटों में बैठ चुकी थी। तब से बेचारा छुट्टन बार – बार रेलवे पूछताक्ष खिड़की पर जाकर अन्य गाड़ियों के आनें के समय को पूछ रहा है। लेकिन गाड़ियां या तो रवाना हो चुकी है या फिर कई घन्टो की देरी से आयेगी। बेचारा गर्मी में सवारियों के इन्तजार में झुलसा जा रहा है।
यह मौन की महिमा महान है जो मौन है वह महान है। इस मौन महिमा से जो सुख प्राप्त होता है उसका बखान मेरे जैसा साधारण मानव तो कर नही सकता है, इसका बखान तो सिर्फ मौनी बाबा ही कर सकते है।
लेखक
गौरव सक्सेना
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "वेलकम इंडिया" नें अपनें 30 मई 2022 के अंक में प्रकाशित किया है।
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