संवारे अपना कल

 संवारे अपना कल

संवारे अपना कल


मनुष्यों को पूर्वकाल से सजने और सवरनें का शौक रहा है। जिसके लिए वह निरन्तर प्रयासरत भी है। ठीक ऐसे ही प्रयास हमे धरनी को सजानें औऱ सवारनें के लिए करना चाहियें। धरती का श्रृंगार उसकी हरितिमा होती है। हरे भरे वृक्ष, स्वच्छ एवं प्रदूषण रहित वातावरण, वन्य सम्पदा का सरंक्षण और संवर्धन ही धरती का श्रृंगार होता है। परन्तु अफसोस है कि मानव पर्यावरण के प्रति गम्भीर नही है। वनों का अन्धाधुन्ध कटान, हरे भरे वृक्षों का दोहन, वन्य जीवों का शिकार, विलुप्त हो रही प्रजातियों के प्रति उदासीनता और फैलता प्रदूषण आज के समय की एक बड़ी चुनौती बनी हुयी है। जिस पर यदि समय रहते हमनें ध्यान नही दिया तो नि:सन्देह इसके दूरगामी परिणाम बहुत घातक सिद्ध होगे। और फिर हमारे पास केवल अफसोस करनें के अतिरिक्त कुछ भी शेष नही रहेगा। 

निरन्तर हरितिमा कम होनें से शुद्ध प्राणवायु का मिलना भी दुर्लभ होगा। और वह दिन भी दूर नही रहेगा जब हम अपनी पीठ पर प्राणवायु हेतु ऑक्सीजन का सिलेण्डर लेकर चलेगे। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की एक भारी सजा मनुष्यों को चुकानी पड़ेगी। बताते चले कि चेन्नई देश का एक ऐसा शहर बन चुका है जहॉ भूमिगत जल पूर्णतया समाप्त हो चुका। बिन जल के जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। एक समय ऐसा था जब चेन्नई में जल के पर्याप्त संसाधन थें लेकिन अन्धाधुन्ध वृक्षों के कटान और कंक्रीट से पटते जंगल नें आज चेन्नई को इस स्थिति पर लाकर खड़ा कर दिया है। 


शहर दर शहर हम पर्यावरण असन्तुलन की ओर बढ़ते ही जा रहे है। लेकिन समय रहते चेतना भी नितान्त आवश्यक है। क्योकि प्रकृति को संरक्षित कर ही हम अगली पीढ़ी तक ले जा सकते है। हमारी आगे आनें वाली पीढ़ियां तभी सुरक्षित हो पायेगी जब हम अपनें आज को संरक्षित करेगे। पर्यावरण सन्तुलन की दिशा में हमें अत्याधिक पौधारोपण को अपनाना होगा तथा पौधारोपण के बाद उनकी देखभाल औऱ सुरक्षा पर अधिक ध्यान देना होगा। स्वच्छ वातावरण के लिए बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगानी होगी।




युवा लेखक एंव सामाजिक कार्यकर्ता

गौरव सक्सेना

354 – करमगंज,इटावा


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "वेलकम इंडिया" व "दैनिक जागरण" नें अपनें 06 जून 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 

संवारे अपना कल


Gaurav Saxena

Author & Editor

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