अब राम मेरे घर आ जाओ........................

अब राम मेरे घर आ जाओ........................

 

 अब राम मेरे घर आ जाओ........................

आसुरी सुरसा दिनो-दिन बढ़ रही, मानवता निश-दिन शर्मशार हो चली।
सभ्यता बेहया- बेसुरी हो रही, गंगा पाप धोते-धोते रो चली।।
                       अब राम मेरे घर आ जाओ.......................


दशरथ व्याकुल हो उठे, मंथरा निशदिन परिवार तोड़ रही।
गुरूओं का सम्मान धूमिल हो रहा, गुरूगृह परम्परा तोड़ रही।।
                       अब राम मेरे घर आ जाओ.......................


सम्मान नही मिलता वैदेही को, आज बेटियां गर्भ में मर रही।
तार- तार होती मनुष्यता, दहेज में सीता निश-दिन झुलस रही।।
                       अब राम मेरे घर आ जाओ.......................


संस्कृति पलायन कर रही, बिन राम के केवट अकेला नांव खेम रहा।
खग मृग तक व्याकुल हुयें, जटायूं आज भी रावणों से संघर्ष कर रहा।।
                       अब राम मेरे घर आ जाओ.......................


स्वाद कसेला हो चला, आज भी शबरी तपस्वनी राह राम की देख रही।
भाईचारे की प्रथा नदारत हो रही,आसुरी कुकर्मों से धरा विषैली हो रही।।  
                      अब राम मेरे घर आ जाओ.......................


लेखक
गौरव सक्सेना
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र देश धर्म नें 18 अप्रैल 2021 को प्रकाशित किया है। 

अब राम मेरे घर आ जाओ........................



Gaurav Saxena

Author & Editor

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