महामारी का बहाना......................

 महामारी का बहाना......................

महामारी का बहाना......................

 

साहब, वेतन मिल जाता तो ठीक था, पिछले कई माह से वेतन नही मिला, घर पर भेजना था। पिता जी बीमार चल रहे है। रामेन्द्र ने अपनें सेठ से कहा।
सेठ नें हमेशा की तरह इस बार भी यह कहकर बात टाल दी कि अभी हाथ तंग है। और इस बार अपनें पुरानें वाक्य में एक बात औऱ जोड़ दी कि लॉकडाउन के कारण वह बहुत परेशान है। अब वह वेतन देनें में असमर्थ है।
लेकिन साहब, बिना वेतन के मेरा और मेरे परिवार का क्या होगा। मुझे इस समय पैसों की सख्त आवश्यकता है।
तुम्हारी आवश्यकता की पूर्ति मैं नही कर सकता और अब तुम अपनें गॉव वापस चले जाओ, क्योकि अब मुझे काम पर रखनें हेतु कुछ कर्मचारियों की छटनी करनी होगी।


ठीक है साहब, मैं अपनें गॉव जा रहा हूं। यह कहकर रामेंन्द्र चल दिया। तभी पीछे से सेठ नें आवाज लगायी कि दरवाजें पर गार्ड से अपना थैला चेक करवा लेना तभी जाना क्या पता चलते – चलते तुम कुछ सामान न चुरा ले जाऔ। और हॉ अगर तुम्हारी जरूरत पड़ी तो तुम्हारे पास फोन करवा दूंगा तो वापस काम पर आ जाना।
रामेंन्द्र एक ईमानदार और कुशल नौकर है जो पूरे मन के साथ अपनें मालिक का सभी कार्य करता है तथा अन्य सभी कर्मचारियों में सबसे पुराना है, लेकिन मालिक के इस प्रकार के व्यवहार से वह बहुत परेशान है।
अपनें आप को सम्हालते हुयें रामेन्द्र अपनें गॉव को रवाना हो गया। 


बिना पैसे के बड़े संकोच के साथ जैसे ही उसनें अपनें घर में प्रवेश किया। बीमार पिता नें पूछा “आ गये बेटा, तबियत ठीक नही है मेरी, चलो तुम आ गये तो तबियत भी ठीक हो जायेगी”  जी बाबू जी..... सब ठीक हो जायेगा।
अरे बेटा तुम्हारा रूका हुआ वेतन मिला कि नही...... और सेठ नें तुम्हारा वेतन क्यों रोक लिया था। क्या तुम ईमानदारी से काम नही करते हो।
हॉ शायद, पिता जी मेरी ईमानदारी में ही कुछ कमी रही होगी।
क्या मतलब बेटा ... मैं कुछ समझा नही, 


रामेन्द्र नें सारी बात अपनें पिता जी को बतायी। तो पिता जी नें कहा कोई बात नही बेटा दिल छोटा मत करों, अभी कोरोना महामारी संकटकाल चल रहा है, इस समय धैर्य से काम लो। नौकरी छूट गयी, पैसा मारा गया इसे भी एक काला स्वप्न समझ कर भूल जाओं। तुम सकुशल घर आ गये यहीं बड़ी बात है। जी है तो जहान है... जिन्दगी रही तो खूब कमा लेना। 


लेकिन पिता जी आपकी बीमारी का इलाज बिन पैसे के कैसे हो पायेगा। अरे कोई बात नही, मुझे कोई बीमारी थोड़े ही है बस बुढ़ापे का शरीर है तो कुछ न कुछ शारीरिक समस्या बनी रहती है। और मुझे पहले से आराम भी है। मैं योग और प्राणायाम के जरियें जल्द पूर्णतया सही हो जाऊगा। तुम चिन्ता मत करों।  


लेकिन पिता जी मेरी मेहनत का पैसा मारा गया इसलिए दुख तो लगता ही है। अरें क्या हुआ जो तुम्हारा पैसा मारा गया यहॉ तो बीमारी से लोग मर रहे है। और कुछ ही लोग होते है जो महामारी में दूसरों का सहारा बनते है वरना तो महामारी वेतन न देनें के अनगिनत बहानें लेकर हम गरीबों पर कहर तो बरपाती ही है। 


यह सुनते ही पूरे घर में सन्नाटा छा गया...............................  और बाबू जी नें लम्बी गहरी सांस लेते हुयें योग करना प्रारम्भ कर दिया।

 

लेखक

गौरव सक्सेना




Gaurav Saxena

Author & Editor

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