भारतीय संस्कृति की ओर पुन: लौटती जिन्दगी

भारतीय संस्कृति की ओर पुन: लौटती जिन्दगी

 

 भारतीय संस्कृति की ओर पुन: लौटती जिन्दगी


बाबू दीनानाथ की एकलौती पुत्री शिखा अब विवाह योग्य हो गयी है। दीनानाथ नें बाल्यकाल से ही बच्ची की परवरिश में कोई कसर नही छोड़ी। कारण भी कष्ट्रकारी ही था, कि बच्ची के जन्म के कुछ माह बाद ही उसके सिर से मॉ (सरिता) का साया छिन गया था। किसी नें इस संकट की घड़ी में दीनानाथ की सहायता नही की थी। दीनानाथ के ससुराल वालों नें तो एक बार भी दुधमुंही बच्ची के बारें में नही सोचा, बल्कि दीनानाथ से ही नाता तोड़ दिया। दीनानाथ गॉव के ही एक प्राइमरी पाठशाला में अध्यापक रहे। ताउम्र बच्चों को पढ़ाते रहे। उनके पढ़ाये बच्चे आज ऊचें औहदों पर कार्यरत है।

अपनी बेटी शिखा की शिक्षा में दीनानाथ नें कोई कसर नही छोड़ी। शिखा संस्कृत से परास्नातक के साथ-साथ संगीत, कम्प्यूटर डिप्लोमा  एवं बी. एड. डिग्री धारक है। संस्कारी और शिक्षित लड़की के लिए योग्य वर का चुनाव दीनानाथ के लिए एक बड़ा चुनौतीभरा प्रश्न था। तभी उनका वर की खोज के लिए आयें दिन कई शहरों में आना- जाना लगा रहता था और वह समय रहते अपनी बेटी के हाथ पीले करना चाहंता था।

दीनानाथ की मेहनत रंग लायी और उनके योग्य लड़का मिल गया जो शहर में एक बैक में कैशियर है। लड़का मिलनसार, सुन्दर और शिक्षित होनें के साथ- साथ संस्कारी भी है। अच्छा लड़का हाथ से चला न जायें यह सोचकर दीनानाथ नें जल्द शिखा का विवाह उस लड़के (रोहित) से कर दिया। शिखा का वैवाहिक जीवन खुशी – खुशी चल रहा था। लेकिन कब मनुष्य गलत संगत में पड़ जायें कोई नही जानता। कुछ ऐसा ही शिखा के साथ हुआ। शिखा की दोस्ती दिन- प्रतिदिन अपनी नौकरानी रुचि से बढ़ती जाती। पति रोहित के नौकरी पर जानें के बाद शिखा और रूचि ही घर पर रहते थें। रुचि जैसी नौकरानी कब एक संस्कारी बेटी को गलत दिशा में ले जा सकती है, विश्वास करना नि: सन्देह कठिन था। बैंक के काम से रोहित को कई – कई दिनों के लिए शहर से बाहर भी जाना पड़ता था। उसके पति का बाहर जाना उसके लिए उपयुक्त अवसर हुआ करता था।

गलत संगत में पड़कर शिखा शराब का सेवन भी करनें लगी और चोरी छिपे क्लब में भी जानें लगी। अब वह पाश्चात सभ्यता में पूरी तरह से रम गयी थी। उसका रहन- सहन सब कुछ मॉर्डन हो गया था या कहे कि अशोभनीय और फूहड़ हो गया था। लेकिन चोरी ज्यादा दिन छुपकर कहॉ रहती है। सारी बाते तो नही लेकिन थोड़ी बहुत तो उसके पति को पता चल ही गयी। रोहित की सख्त हिदायत के बाद भी शिखा नें गलत रास्ता नही छोड़ा। परिणाम साफ था कि पति – पत्नी के बीच सम्बन्धों में दरार आ गयी। और सम्बन्ध विच्छेंद की नौबत आ गयी। शिखा का अपनें अतीत में लौट पाना अब मुश्किल हो गया था।

एक दिन बैंक के काम से रोहित बाहर गया और हमेशा की तरह नशें में चूर शिखा देर रात क्लब से वापस अपनी कार से घर आ रही थी। तभी शिखा का अपनी कार से सन्तुलन बिगड़ गया और कार रास्ते में पड़े एक बड़े पत्थर से टकरा गयी। कार की तेज रफ्तार होनें के कारण शिखा के सर पर चोट आ गयी। काफी देर अकेले कार में वह फसी रही और फिर रात में गस्त पर निकले पुलिस के एक सिपाही को वह दुर्घटनाग्रस्त कार दिखायी पड़ी। उस सिपाही और कुछ राहगीरों की सूझबूझ काम आयी और शिखा को कार से बाहर निकालकर अस्पताल में भर्ती कराया गया। होश में आनें पर शिखा नें चिकित्सक से उसके अस्पताल में भर्ती होनें के बारे में पूछा तो चिकित्सक नें बताया कि तुम शराब पीकर कार चला रही थी, जिससे तुम्हारी कार अनियन्त्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त हो गयी । वो तो सिपाही का धन्यवाद कहो जो सही समय पर  तुम्हे अस्पताल में भर्ती करवा दिया वरना तुम्हे बचा पाना मुश्किल था।

पास खड़े सिपाही से शिखा नजरे नही मिला पा रही थी। बड़ी मुश्किल से शिखा नें उस सिपाही को धन्यवाद दिया। सिपाही नें कहा लोगो की सहायता करना तो मेरा फर्ज है लेकिन जानबूझ कर अपनी जान जोखिम में डालना तो सरासर मूर्खता है। और एक शिक्षित नारी को यह शोभा नही देता है। शिखा को अपनी गलती पर अफसोस था। उसनें पास खड़े सभी लोगो से क्षमा मांगी। तब तक रोहित को भी शिखा के अस्पताल में भर्ती होनें की खबर मिल चुकी थी। रोहित भी अस्पताल में शिखा के बेड के पास पहुंच गया। लेकिन रोहित को देखकर शिखा नें नजरे झुका ली। उस पुलिस वाले नें रोहित को सब बाते बता दी। रोहित को भी अपनी पत्नी की बुरी आदतों की वजह से शर्मिन्दा होना पड़ रहा था। तथा रोहित नें उस पुलिस वाले को धन्यवाद दिया और उसे पुरस्कार स्वरूप अपनें कोट की जेब से चेकबुक निकालकर 10 हजार रुपयें की चेक देकर सम्मानित किया। तभी पुलिस वाले नें सम्मान के लिए धन्यवाद कहा और रोहित तथा शिखा दोनो को थाने में आनें को कहा। लेकिन थानें में किस लिए .... दबे स्वर में शिखा नें पूछा।

जी, नशे की हालत में कार चलानें के अपराध में कानूनी कार्यवाही हेतु। स्वस्थ्य होनें पर शिखा अपनें पति के साथ थाने पहुंची तो बड़े अधिकारी नें शिखा से पूरी घटना के बारे में पूछा तो शिखा नें बताया कि उसे अब शराब की लत लग चुकी है और वह पूरी तरह से पाश्चात्य सभ्यता में रम चुकी है। और वह चाह कर भी इसे नही छोड़ सकती। अधिकारी नें पाश्चात्य सभ्यता में रमी शिखा को वापस भारतीय संस्कृति में लोटनें के लिए कहा तो शिखा नें कहा यह मैं कैसे कर पाऊंगी। तब अधिकारी नें कहा कि यदि वह अपनें आप को बदल लेनें के लिए दृण निश्चय कर ले तो यह कोई कठिन कार्य नही है। अधिकारी नें शिखा को शहर के कई खूखांर अपराधियों के बारे में बताया जिन्होनें दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर गलत रास्ते को छोड़कर सही मार्ग को चुन लिया और उनके उजड़ते परिवार बच गयें। अधिकारी की थोड़ी सी शिक्षाप्रद सीख शिखा के हदय परिर्वतन के लिए पर्याप्त थी।

अब शिखा को अपनी करनी पर पश्चाताप हो रहा था। उस अधिकारी की दी गयी सीख शिखा के हद्य में बैठ गयी। और उसनें थानें में पाश्चात्य सभ्यता से भारतीय संस्कृति में पुन: लौटनें हेतु प्रण लिया। तभी वहीं सिपाही भी आ गया जिसकी वजह से शिखा की जान बच पायी थी। शिखा नें सभी से अभिवादन किया तब उस सिपाही नें सिखा से कहा कि सुबह का भूला शाम को घर आ जायें तो उसे भूला नही कहते। अधिकारी नें शिखा को दण्डात्मक कार्यवाही से सशर्त माफ कर दिया। शिखा और रोहित वापस घर को चल दिये।

अब शिखा फिर से अपनी भारतीय संस्कृति की ओर लौट चुकी थी। उसका घर टूटनें से बच गया। उसके घर में उम्मीदों का रोज नया सवेरा होता है जहॉ परिवार का अपनापन होता है। दायित्वों के निर्वाहन की जिजीविषा होती है।

 

लेखक

गौरव सक्सेना

 

उक्त कहानी को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म " नें दिनांक 23 मई 2021 के अंक में प्रकाशित किया है। 

भारतीय संस्कृति की ओर पुन: लौटती जिन्दगी

 

Gaurav Saxena

Author & Editor

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