लपकलाल का सपना
शार्टकट में लांग जंप लगाने की तमन्ना हर किसी को सूट नहीं
करती है। किसी को शार्टकट रातो-रात करोड़पति बना देता है तो किसी को रोड़पति।
लेकिन हमारे लपकलाल जी को कौन समझाये कि शार्टकट हानिकारक भी हो सकता है। नहीं
माने और पहुंच गये अपने गुरू घंटाल के पास-
गुरू – क्या हुआ वत्स, परेशान नजर आ रहे हो, सबकुछ
खैरियत तो है ना।
लपकलाल – जी कुछ भी सही नही चल रहा है मैं
अत्यन्त परेशान हूं। इसी के समाधान के लिए आपकी शरण में आया हूं।
गुरू – लेकिन तुम्हारा तो चोरी चकारी काम सही चल
रहा था फिर अचानक से क्या भूचाल आ गया।
लपकलाल – अरे गुरूदेव, चोरी चकारी के चलते कई बार
जेल के दर्शन कर चुका हूं और पुलिसियां लठ्ठ भी खा चुका हूं। बड़ी जुगाड़ लगवाकर
जेल से छूटा हूं। अब गुरूदेव कोई अन्य काम बताओ जिसमें जेल-वेल का चक्कर न हो।
सिर्फ आराम ही आराम हो, फ्री का खाना- पीना हो और मौज-मस्ती भी खूब करने को मिले।
गुरू घंटाल ने देर तक अपने बिना धुले बाल खुजलाये
और दिमाग पर जोर दिया। बहुत देर बाद गुरूदेव बोलने की मुद्रा में आये।
गुरू – देख बेटा लपकलाल तेरे लिए मेरे दिमाग में एक
काम है जिसमे आराम के साथ-साथ पैसा ही पैसा है।
लपकलाल – जल्द बताये गुरूवर विलम्ब कैसा ....
गुरू – देख लपकलाल तुम्हारा रूप, कद काठी और बोल-चाल
का लहजा सब कुछ बहरूपिया है। बस इसी बहरूपिया रूप को अवसर में तब्दील कर लो। इसी
रूप को अपने जीवन में उतार कर आराम से जीवन यापन करो।
लपकलाल – मैं कुछ समझा नही गुरूवर.......
अब कान लगाकर मेरी बात ध्यान से सुनो। तुम किसी दूर
गॉव में जाकर एक झोपड़ी बनाओ और उसमे बहरूपिया बाबा बनकर रहने लगो। अपनी असली पहचान
छुपाकर रखना। लोगो की भावनाओ से खेलना शुरू करो, व्यक्ति के अनुरूप घिसे- पिटे
शब्दो का प्रयोग करके उनका भविष्य बताने लगो। धीरे- धीरे इस व्यवसाय में पैर जमाओ
फिर देखो कमाल, इतनी गुरूदक्षिणा मिलेगी कि लेखा- जोखा रखने के लिए भी एकाउन्टेंट रखने
पड़ेगे।
लपकलाल – लेकिन मैं किसी का भविष्य कैसे बता
पाऊंगा, मुझे तो अपना ही भविष्य नही दिख रहा है।
गुरू – इसके लिए चन्द वाक्यो को रटना होगा। जैसे
किसी भी व्यक्ति को देखकर कह सकते हो कि उसका जीवन संघर्षों में बीता है, उसने सभी
के साथ भला ही किया है, उसे धोखा ही दिया है इस सन्सार ने, आप मेहनत की रोजी –रोटी
खाने वाले व्यक्ति है, वगैरह – वगैरह..
इस तरह के वाक्य सभी पर फिट बैठ जायेगे और लोग
खुश होकर दक्षिणा देगे, खाना फल मेवा भी देगे। धीरे- धीरे प्रवचन फिर कथा और अपनी
मेहनत के हिसाब से आगे का सफर तय करते जाना।
ठीक है गुरूदेव, मैं समझ गया कहकर लपकलाल चल दिया
और दूर गॉव में बाबा बन बैठा। देखते ही देखते उसका नाम फैल गया। भविष्य जानने के
लिए दूर-दूर से भक्त आने लगे, किसी एक- दो व्यक्ति के काम बन भी गये तो उन भक्तो
की फोटो मय फोन नम्बर के कुटियां में प्रमाण हेतु लटका दी गयी। चन्द श्लोक भी सीख
लिए जिससे प्रवचन गूढ़ ज्ञान और अधिक प्रभावी लगने लगा।
एक दिन नगर के एक बड़े व्यापारी के यहॉ से सत्यनारायण
कथा का बुलावा आया तो लपकलाल नें जल्दी- जल्दी में गलती से अपनी पोटली में कथा की
किताब की जगह गरूण पुराण की पुस्तक रख ली जो कि किसी कि मृत्यु के बाद आत्मा को
शांति प्रदान करनें के उद्देश्य से पढ़ी जाती है।
कथा कहने के लिए लपकलाल नें थैले में हाथ डाला तो
किताब बदली दिखी, यह देख उसका दिमाग चकरा गया, फिर सोचा कि अब तो वह अनुभवी हो
चुका है और फिर यह व्यापारी तो स्वयं अनपढ़ है खुद इसके कर्मचारी इसको रात-दिन
चूना लगा रहे है। वह भला क्या जान पायेगा कि मैं कौन सी कथा की पुस्तक लाया हूं।
शांति - शांति के शब्दों की भरमार के साथ जब कथा
समाप्त हुयी तो व्यापारी बोला कि इसमें लीलावती और कलावती तो आयी नहीं वह कहां चली
गयी।
तो लपकलाल बोला कि वे दोनों ही अपने मायके गयी
है, लेकिन व्यापारी की शिक्षित पत्नी कथा के अन्तिम चरणो में मायके से लौट आयी थी,
और लपकलाल के हाथों में गरूण पुराण की पुस्तक देखकर बौखला उठी।
फिर क्या था दे दना दन – दे दना दन कार्यक्रम
प्रसाद वितरण समारोह का हिस्सा बन चुका था। लपकलाल अस्पताल में दर्द से कराह रहा
था, लपकलाल का शोर्टकट में करोड़पति बनने का सपना अधूरा ही रह गया। उधर गुरू घंटाल
के पास भी बात पहुंच चुकी थी और वह भी अपनी पहचान और स्थान बदलते घूम रहे थें।
व्यंग्यकार
गौरव
सक्सेना
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र दैनिक जागरण नें अपनें 15 मई 2023 के राष्ट्रीय अंक में प्रकाशित किया है।
0 Comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in comment Box