मॉब लिंचिंग ...... क्या अब भीड़ न्यायपालिका से बड़ी हो गयी है।



आज समाचारों में एक नया शब्द काफी समय से चर्चा में बना हुआ है - मॉब लिंचिंग, इस शब्द का अर्थ सरल भाषा में समझा जाये तो यह है कि किसी स्थान पर भीड़ का भड़क कर कानून विरोधी कृत्य को अन्जाम देना है। परन्तु प्रश्न अत्यन्त गंभीर और ज्वलन्त होने के कई कारण है। कि भीड़ इतनी अचानक से कहॉ से आ जाती है और भीड़ इतनी अक्रामक रूप क्यो ले लेती है कि उस पर प्रशासन का नियंत्रण भी कमजोर दिखाई पड़ता है। यह कौन सी ऐसी विषय वस्तु है जो लोगो को अक्रामक होने के लिए इस कदर भड़काती है कि लोगो को कानून का भी भय नही रहता है और लोग स्वंय ही न्याय करने लगते है। न्याय के लिए न्यायपालिका है रक्षा के लिए पुलिस है फिर आम आदमी को क्या आवश्यकता है कि कानून को अपने हाथ में ले



पिछले महीनों में देश में ऐसे कई वाक्या सुर्खियो में रहे जिसमें भीड़ ने किसी एक व्यक्ति को अपराध की श्रेणी में खड़ा कर स्वंय ही निर्णय कर लिया और उसे बेरहमी से पीटकर मौत के घाट उतार दिया। सवाल यह है कि भीड़ के पास किसी को अपराधी ठहराने का अधिकार किसने दिया, क्या भीड़ को देश की न्यायपालिका तथा कानून व्यवस्था पर विश्वास नही करना चाहिये था, और किसी के प्राण लेने का अधिकार भीड़ को कब मिला।



यह देखा गया है कि कभी अफवाहो के चलते तो कभी पशु चोरी के अपराध में, और अब तो नये नये कारण भी सामने आ रहे है जैसे बच्चा चोरी, इस तरह के अपराधों में भीड़ किसी को भी मनमर्जी सजा दे देती है चाहे वह मौत की सजा ही क्यो न हो। अब समस्या अत्यधिक गम्भीर हो जाती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे की वाल्यवस्था से मुग्ध होकर उससे बात करने लगे तो कहीं उसे ही लोग बच्चा चोर घोषित न कर दे। 


इस दिशा में समाज के लोगो को शान्त मन से स्वंय ही यह सोचना होगा कि यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसे दण्ड देने का अधिकार भीड़ को नही न्यायपालिका और कानून को है। ऐसे अपराधो की जॉच कानून को करने दीजिए। भीड़ कानून का कार्य न करे । आपस में भाईचारा और मानवीय सौहार्द से समाज में खुशियां फैलाये न कि किसी भीड़ का हिस्सा बन उग्र रूप धारण कर कानून के कार्य में बाधा पहुचायें। अपवाहों को न फैलाये और न ही उनका समर्थन करें। तथा इस सन्दर्भ में जन जागरूकता फैलाये जिससे कोई व्यक्ति उग्र भीड़ का शिकार न हो सके। 

सधन्यवाद                       
गौरव सक्सेना

                                                           
                 

Gaurav Saxena

Author & Editor

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