हुजूर, आपके तबज्जों का इन्तजार है .........................


                    हुजूर, आपके तबज्जों का इन्तजार है .........................




हुजूर, आपके तबज्जों का इन्तजार है .........................




              मैं दुबला पतला ठन्ड में ठिठुरता और अपनें फटे पुरानें वस्त्रों में तन को ढ़कनें की असफल कोशिश करता आपकों हर एक गली मौहल्ले, चौराहे पर खड़ा मिल जाऊगा। आपकी दौड़ती भागती जिन्दगी को हर पल निहारता रहता हूं । मेरी कभी किसी से कोई शिकायत नही रही है। मैं खुश हूं हर हाल में और हाथी के समान मस्त चाल में हर दिन के नये उगते सूरज को प्रणाम करता हूं। कभी – कभी सोचता हूं कि मैं कितना खुशनसीब हूं और शायद मैं ही अकेला खुशनसीब हूं। मैं बिना किसी चिन्ता के निर्भीक होकर पैर पसार कर सोता हूं क्योकि मेरे पास धन नही है, मै स्वस्थ हूं क्योकि मेरे पास फास्ट फूड खाने के लिए पैसे नही है और शायद मैं इस लिए भी स्वस्थ हूं क्योकि मैं प्रकृति के अत्यधिक करीब भी हूं। 


            बर्फीली सर्द हवायें हर रात को मेरी परीक्षा लेती है लेकिन मैं अडग हो बर्फीली हवाओं का सामना करता रहता हूं यह सोच कर कि कल का गर्म जोशीला सूरज मेरा स्वागत करेंगा, मैं आशाओं के दीप हर रात जला कर सो जाता हूं और मेरे साथ होते है आवारा कुत्ते जो बर्फीली रातों में मुझे बार – बार जगाते रहते हैं शायद अपना भ्रम दूर करते होगे कि कहीं मैं सर्द रातों में मृत्यु को तो प्राप्त नही हो गया। इन्सानों से ज्यादा जानवरों को मेरी चिन्ता है। मैं ठन्ड का निडर हो सामना करता हूं। 


            लेकिन आज मेरी कठिन परीक्षा की घड़ी है, आज की रात तो मानों मुझे बर्फीली सर्दी मार ही डालेगी, मैं फटे पुरानें कम्बल में शायद आज रात ठन्ड की कठिन परीक्षा में सफल नही हो पाऊगा। चलो,चलकर किसी चौराहे पर धधकते अलॉव में ही अपने जम चुके शरीर को कुछ आराम भरी गर्मी दे पाऊ। शायद आज मृत्यु निश्चित ही है क्योकि चौराहे पर भी धधकते अलांव नें भी रात के इस पहर में अपनी डयूटी पूरी कर ली अब शेष है तो सिर्फ चन्द सुलगते कोयले और राख। मैं यह दृश्य देखकर दुख से कराह उठा और लाचार हो रोने लगा अपने हालात पर। सोच रहा था कि लोग कितने स्वार्थी हो गये है, मेरे जैसे लोगो की अब कोई चिन्ता ही नही करता है।


           क्या गुमनामी सी जिन्दगी है मेरी। काश मेरे हालात को भी मुंशी प्रेंम चन्द्र जी की लेखनी मिल गयी होती, मेरी भी हालत को हामिद और हल्कू के रूप में पहचान मिल जाती तो मुझे भी कम से कम लोगो की सहानभूति ही प्राप्त हो जाती । यह सब सोंच ही रहा था तभी अचानक से एक बड़ी कार का शीसा मेरे सामने खुलता है और एक बैग मेरी तरफ दिया जाता है शायद कुछ खाने – पीने की चीजे होगी, तभी मेरी दृष्ट्रि उसी कार में गर्म मखमली कम्बल में लिपटे कुत्ते पर पड़ी जो कार की खिड़की से बाहर आकर मेरी हालत पर सहानभूति दिखाना चाहंता होगा। लेकिन कार जल्द ही अपनें गन्तव्य को चली गयी । मैं उस कुत्ते की स्थिति को देखकर निराश नही हूं न ही मैं उसके जीवन को अपने जीवन के तराजू मे तौलना चांह रहा हूं । शायद इसे ही प्रारब्ध कहते होगे। 


हुजूर, आपके तबज्जों का इन्तजार है .........................



          परन्तु मेरे कुछ प्रश्न है जो मैं अधिकार के साथ समाज से पूछना चाहंता हूं । अधिकार इसलिए समझता हूं क्योकि यह मेंरा भी हिन्दुस्तान है और मुझे अपनी बात कहने का हक है। मेरे कोई विशेष प्रश्न नही है न ही कोई विशेष मांग है। मुझे कुछ नही चाहिये सिर्फ आपकी तवज्जों चाहिये, आपका प्यार चाहिये। आपके थोड़े से प्रयास से मेरा भी गुजर वसर होता रहेगा। मेरे लिए अपनी भागदौड़ भरी जिन्दगी से कुछ पल निकालिए, और हो सके तो इस सर्दी में कुछ समय निकाल कर अपनें घर के पुराने गर्म कपड़े एकत्र करके हम लोगो में बांट दिया करिये हम लोग आपकों हर गली और चौराहे पर खड़े आपकी मदद का इन्तजार करते रहते है, पर स्वाभिमान के चलते आपसे कुछ मांगते नही है। इस बहाने आपके घर की सफाई भी हो जायेगी और मेरी सर्दी भी आराम से कट जायेगी। यकीन मानिए, हमारी दुआंए कभी खाली नही जाती है। जिसका फल निश्चय ही मिलता है। 


                                 लेखक गौरव सक्सेना

Gaurav Saxena

Author & Editor

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