मॉ तेरी शीतल छाया
..................
मॉ, शब्द की महत्ता को तो केवल अन्तर्मन से महसूस किया जा सकता है। मॉ, जन्मदायिनी
है और इस जीवन रूपी युद्ध को जीतने के योग्य बनाने वाली एक गुरू भी है, जो बालक की
प्रथम पाठशाला में ही संस्कारों का बीजारोपण कर एक सच्चा इन्सान औऱ एक सभ्य समाज
बनाने का जिम्मा लेती है। इसके ह्दय में विराट सागर रूपी करूणा, मस्तिष्क में
संस्कार रूपी विचारो की अग्नि औऱ भुजाऔ में अथक परिश्रम की जिजीविषा सदैव
प्रज्जवलित रहती है, जो निरन्तर अपनी सन्तानों को बिना किसी भेदभाव और कामना के
अविरल पोषित करती रहती है। वह मॉ ही है जिसनें इस सुन्दरतम् संसार को रचा है। धन्य
है मॉ तू जिसनें नारी के हर रूप को सार्थकता दी और जिसके आंचल में स्वंय ईश्वर
ब्रम्हा, विष्णु महेश भी खेले।
मेरी मॉ वह अमूल्य
सुकून भरी छांव है जिसकी गोद मेरे हर एक कष्ट्र का निवारण अपनी थपकी से कर देती
है। वह मेरे लिए अध्यात्म की उपजा है, विचारों और संस्कारों की भूमिजा है, वह धरती
पर ईश्वर का जीवन्त रूप है।
इस मातृ दिवस पर
मेरी मॉ नें मेरे मन में उथल-पुथल से सराबोर विचारों को अतिशीघ्र पढ़ लिया। मेरे
विचार इस लॉक-डाउन काल में मॉ के लिए किसी उपहार का न खरीद पानें की एक पीड़ा के
रूप में मुझे व्यथित कर रहे थे। तभी मॉ ने कहा कि इस लॉक-डाउन का पूर्णतया पालन
करना ही मेरा उनके लिए सच्चा उपहार होगा और सच्चे अर्थों में भारत माता के लिए भी एक
अमूल्य उपहार होगा। और यही हम सभी की मातृ-भक्ति और देशभक्ति भी होगी।
लेखक
गौरव सक्सेना
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
ReplyDeleteयाद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ काट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ
Thanks for your lovely reply
Delete