जनरल डिब्बे की अदभुत यात्रा

 

जनरल डिब्बे की अदभुत यात्रा


जनरल डिब्बे की अदभुत यात्रा


पत्नी की जिद्द पूरी करना वैसे ही है जैसे किसी सरकारी नियम को अनिवार्य रूप से पूर्ण करना। जिसका पालन करना नितान्त आवश्यक होता है। अत: मैं भी सरकारी नियम के पालन की तर्ज पर पत्नी को साथ लेकर अपनी ससुराल जानें के लिए ट्रेन के जनरल डिब्बें में सवार हो गया। जनरल डिब्बे की हालत तो जग जाहिर ही है वहीं इसकी सीटों की अपनी अलग ही महिमा है। अनारक्षित डिब्बा होनें के बाबजूद भी कुछ सीटों पर लोग चादर तानकर दिन में ही सो रहे थें, सम्भवत: सोनें का नाटक कर रहे होगे। मैनें उन चद्दर में लिपटी आत्माओं के पैर हिलाकर अपनें और पत्नी के बैठनें की जगह बनानें की कोशिश की, लेकिन आत्माएं टस से मस न हुयीं। कुछ लोगो नें बैठनें की सीटों पर अपनें बैंग को भी साथ में बैठा रक्खा था, कुछ दबंग लोग पन्थी मारकर बैठे थें मानों जैसे कोई सतसंग या कथा कर रहे हो। ट्रेन को स्टेशन छोड़े तकरीबन आधा घन्टा से ऊपर हो चुका था, लेकिन हम दोनो को सीट पानें में अभी तक सफलता नही मिली थी। इन सीटों में कुछ तो बात है तभी तो लोगो की चांह इनके प्रति कम नही होती है। चांहे कोई वृद्ध महिला हो या कोई नवजात को गोद लिए नवयुवती हो, जनरल डिब्बें में तो सीट केवल किस्मत से या फिर दबंगयाई से ही मिलती है। आपकी किस्मत अच्छी है या फिर दबंगयाई शरीर और दबंगयाई भाषा के आप धनी है तो फिर आपका स्वागत है श्रीमान इस सीट पर,  नही तो फिर आप टोयलेट के आसपास ही कहीं जगह बनाकर अपनी यात्रा मंगलमय बनाईयें।


सीट न मिलनें की निराशा और थकन साथ लेकर मैं भी अपनी तरह के कुछ अन्य यात्रियों के साथ डिब्बे के गेट के पास जगह बनाकर खड़ा होकर यात्रा करनें लगा। समय बीतता जा रहा था, ट्रेन के अन्दर और बाहर का नजारा लोगो की भीड़ में से कम ही दिखायी पड़ रहा था। तभी मैनें देखा कि चद्दर में लिपटी कुछ आत्माएं उठ खड़ी हुयी तो मैनें सोचा शायद यह आत्माएं सोते–सोते थक गयी होगी इसलिए उठ बैठी है अब शायद हम जैसे लोगो को सीट पर बैठनें की अनुमति मिल सकती है लेकिन मेरी यह सोच गलतफहमी में तब बदलती दिखी जब इन्ही आत्माओं में से एक मेरे पास आकर बोली – बाबू जी खड़े–खड़े थक जाओगे, लम्बा सफर है सीट खरीद लो। इससे पहले मैनें सीट का रिजर्वेशन अर्थात रेलवे द्वारा आरक्षण तो सुना था लेकिन जनरल डिब्बे में सीट का इस तरह से खरीदना अर्थात आरक्षण वो भी इन आत्माओं द्वारा पहली बार ही सुना था। पूंछताछ पर पता चला कि जिसकी लाठी उसकी भैस की तर्ज पर यह दबंग आत्माएं ट्रेन की सीटों पर कब्जा कर लेती है और इनकी नींद तब जागती है जब मेरे जैसे लोगो के पैर खड़े–खड़े जबाब देनें लगते है तब मजबूरन लोग इनकी कब्जे वाली सीट इनसे खरीदते है। खैर मैं इनकी मंहगी सीट नही खरीद सका नतीजन खड़े होकर ही यात्रा मंगलमय बना रहा था।


ट्रेन स्टेशनों को तेज गति से पार करती जा रही थी, तभी एक स्टेशन पर ट्रेन ने अपनें पहियों को थाम लिया, इस स्टेशन पर ट्रेन का ठहराव न होनें के बाबजूद इसका इस प्रकार से रूकना सभी के लिए चौकानें वाला था। तभी आनन फानन में पूरी ट्रेन को रेलवे पुलिस बल नें घेर लिया और देखते ही देखते सभी डिब्बों में अफरा- तफरी मच गयी। पता चला कि रेलवे की मजिस्ट्रेट चेकिंग है और बिना टिकट यात्रियों को पकड़ा जा रहा है। कोई टायलेट में छिपनें की कोशिश करता तो कोई सीट के नीचे, लेकिन सभी की कोशिश विफल होती जा रही थी, पुलिस बल बिना टिकट यात्रियों को पकड़ कर स्टेशन पर उतार रही थी। जो बेटिकट यात्री जुर्माना भरनें में समर्थ थें वे सख्त हिदायत के साथ बरी कियें जा रहे थें और जो जुर्माना अदा नही कर पा रहे थें वे सभी स्टेशन के बाहर खड़ी पुलिस की बसों में आगे की दण्ड प्रक्रिया के लिए बैठायें जा रहे थे। खैर इस अफरा- तफरी का मुझे लाभ मिला और मैं अपनी पत्नी सहित आराम से सीट पर विराजमान हो सका, दबंगो की दबंगयाई पुलिस के सामनें घुटनें टेक चुकी थी। पूरे डिब्बें में केवल टिकटधारी ही रह गये थें बाकि सभी पुलिस की गिरफ्त में थे। सीट और दबंगो का तो चोली दामन का साथ रहा है वह कहॉ छूटनें वाला था, उन्हे इस बार सीट तो मिली लेकिन जनरल डिब्बे में नही बल्कि रेलवे पुलिस बल की बस में। ट्रेन अपनें गन्तव्य के लिए फिर से रवाना हो चली थी, लेकिन अब दूर – दूर तक कोई दबंगयाई दिखायी नही दे रही थी। मैनें भी मौके का फायदा उठाया और चद्दर तानकर गहरी नींद में समा गया। मेरा स्टेशन आनें ही वाला था तो श्रीमती जी नें मेरी चद्दर खींचकर जगाया और बोली कि टिकट का पैसा पूरा बसूल कर लिया हो तो सामान उतारों अपना स्टेशन आनें वाला है। मैं चादर समेट कर सामान उतारनें लगा और फिर चल दिया अपने ससुराल के लिए स्टेशन के बाहर खड़ी बस में फिर से एक नयी सीट खोजने के लिए, तब से लेकर आज तक मैं अपनें और अपनी पत्नी के लिए सीट ही खोजता चला आ रहा हूं......

 

व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

जनरल डिब्बे की अदभुत यात्रा

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र देशधर्म नें अपनें 22 जनवरी 2023 के अंक में  प्रकाशित किया है। 

Gaurav Saxena

Author & Editor

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