मेरे शहर को .................

 

 मेरे शहर को ..................

 

मेरे शहर को लहराती हवा दे दो।
पंतगों का मौसम है थोड़ी सी ढील दे दो।।
हमें बैमौसम उड़ने का शौक तो है।
लेकिन परिन्दों के साथ रहनें की फितरत दे दो।



मेरे शहर को कोई रोशनी दे दो।
बच्चे काबिल बन जायें, लालटेन में तेल दे दो।।
रोजी रोटी कमाकर खाते तो सब हैं।
लेकिन दिलों में प्यार जिन्दा रहे ऐसी फुर्सत दे दो।।



मेरे शहर को कोई दरिया दे दो।
बिगड़ती हवा में थोड़ी सी नरमी दे दो।
सांसे लेनें में कोई मशक्कत न करनी पड़े।
हमें बिना रोकथाम के ही ऑक्सीजन दे दो।


गौरव सक्सेना 

उक्त पंक्तियों को अमर उजाला नें अपनें काव्य स्तम्भ में शामिल किया है। जिसका लिंक निम्न है। 

https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/pragya-kumbh

तथा दैनिक समाचार पत्र देशधर्म नें दिनांक 19 दिसम्बर 2021 के अंक में प्रकाशित किया है। 


मेरे शहर को .................


Gaurav Saxena

Author & Editor

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