मच्छरों की आम सभा – व्यंग्य लेख

मच्छरों की आम सभा – व्यंग लेख



 मच्छरों की आम सभा – व्यंग्य लेख

चारो तरफ हाहाकार मचा है, हर कोई बीमार पड़ा है। अभी कोरोना राक्षस का वध पूरी तरह से हुआ भी नही था और छोटे- छोटे दलों नें मोर्चा सम्हाल लिया। लग रहा है दलो में गठबन्धन हो गया है। तभी तो मच्छरो के नेता छुट्टन ने एक बड़ी आम सभा का आयोजन किया है जिसमें आस-पास के जिलों तक से मच्छरों को आमंत्रित किया गया है। बड़े – बड़े कटखनें और महारथी मच्छर इस सभा में आ रहे है इन्हे महारथी होनें का तमगा पिछली सभा में दिया गया था। इसका कारण यह है कि इन्होनें विषम परिस्थितियों में भी अपनें आप को जीवित रखनें की कला को इजाद किया है इन्होनें अपनी बॉडी को इतना पावरफुल बना लिया है कि इन पर कोई भी कुकरनाईट, टैक्सो आया, कोर्टीन और धुआं छोड अगरबत्ती का कोई असर नही होता है। आज मच्छर समुदाय की समस्याओ पर तो विस्तार से चर्चा होगी ही साथ में ऐसे महारथियों से भी गुप्त ज्ञान लिया जायेगा। गुप्त इसलिए जिससे कुकरनाईट बनानें वाली कम्पनियां इनकी कमजोरी न पकड़ ले और इनके खात्में के लिए कोई नया प्रोडक्ट न लॉच कर दे। 

अब वो समय आ गया जब भारी भरकम मच्छरों की भीड़ एक मैदान में जमा हो गयी। और सभा प्रारम्भ हो गयी नतीजन मैदान में क्रिकेट खेलते बच्चो को घर भागना पड़ा। सभा को सम्बोधित करते हुयें सरदार छुट्टन नें कहा कि मच्छर समुदाय घोर संकट से गुजर रहा है उसे वह सम्मान नही मिल रहा है जो उसे मिलना चाहियें। कल से आयी कोरोना अपना दम खम दिखा रही है और खूब नाम कमा रही है लेकिन मच्छर दिनो-दिन कमजोर होता जा रहा है। यदि हम एक जुट नही हुयें और समय रहते हमारी समस्याओ पर ध्यान नही दिया गया तो वो दिन दूर नही जब हमारा नामोंनिशान तक नही होगा। सभी नें जोर – जोर से छुट्टन के जयकारे लगायें। छुट्टन नें महारथी कल्लन को मंच पर आंमत्रित किया और उनसे अपने विचार प्रस्तुत करनें को कहा। तो कल्लन नें कहा कि हम सभी का अपना एक नियत स्थान होना चाहियें, सभी का अपना – अपना स्थान होता है मसलन साबुन का साबुनदानी, चूहो का चूहेदानी लेकिन हमारे स्थान का नाम मच्छरदानी दिया तो गया है लेकिन उसमें हमारा वास नही होता है उसमें तो इन्सान घर्राटे भरता रहता है। हम सभी को अपनें स्थान की मांग के लिए धरनें पर बैठना होगा। और तब तक डटे रहना होगा जबतक कि हमे सम्मान सहित स्थान न मिल जायें। हॉ हॉ हॉ..... सभी नें एक स्वर में हुक्कार भरी।   

फिर महा कटखनें महारथी गब्बू दादा की बारी आयी। गब्बू दादा नें बताया कि हम सभी को नियमित व्यायाम करना होगा और रोज दण्ड पेलना होगा जिससें हम शक्तिशाली बन सके तभी हमारी नस्ले जीवित रह पायेगी। औऱ हमें यह याद रखना होगा कि हमें बिना मास्क के किसी भी घर में प्रवेश नही करना है क्योकि अब समय बदल गया है हर घर में हमारी मौत के लिए कुछ न कुछ सुलगता अवश्य मिलेगा। ठीक – ठीक है हम समझ गयें, मंच के नीचे से सभी नें दादा की बात पर अपनी स्वीकृति दी। 

मच्छरों की सभा को गति मिल चुकी थी और छुट्टन नें मंच पर आकर सभी से कहा कि हम सभी इसी मंच पर डटे रहे और आगे एक महा धरना पर चलनें की रूपरेखा बनायें। धरनें की रूपरेखा बनानें से पूर्व एक स्वीकृति हस्ताक्षर पत्र भरवाया जा रहा था जिसमें सभी से सपरिवार धरनें पर बैठनें की स्वीकृति मांगी जा रही थी। 

और तभी मच्छरों की लम्बी चलती सभा और भीड़ की खबर नगर पालिका को लग गयी। और देखते ही देखते पूरे मैदान को सरकारी फांगिग मशीन नें धुयें से भर दिया। सभा में अफरा तफरी मच गयी। मच्छर एक दूसरे के ऊपर चढ़ गयें कोई कहीं से भागता तो कोई कहीं से रास्ता ढूढ़ता । छुट्टन भी कल्लन उस्ताद के साथ खांस्ता हुआ मैदान से भांग ही रहा था कि अचानक से उसकी सास फूल गयी। और वह वीर गति को प्राप्त हुआ...  

कुछ शेष रह पायें मच्छर और महारथी अपनें प्राण बचाकर घरो में दुबक गयें और कसम खाकर बोले कि अब कभी भी सभा नही करेगे और न ही कभी धरनें पर बैठगे।


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र देशधर्म नें अपने 28 नवम्बर 2021 के अंक में प्रकाशित किया है। 



लेखक 

गौरव सक्सेना
मच्छरों की आम सभा – व्यंग लेख




Gaurav Saxena

Author & Editor

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