लालच और झूठ की सजा.. बाल दिवस पर विशेष कहानी


लालच और झूठ की सजा.. बाल दिवस पर विशेष कहानी

 

 

 एक राजा अपनी प्रजा का खूब ध्यान रखता है। और अपनी प्रजा का हाल जाननें के लिए भेष बदल कर राज्य में घूमा करता था। एक दिन भ्रमण के दौरान उसनें देखा कि एक छोटा बालक एक बगीचे में अकेला बैठा रो रहा है। राजा नें पास आकर बालक से रोनें का कारण पूछा तो बालक नें कहा कि बाबा मैं बहुत परेशान हूं। मेरी मॉ बीमार रहती है। बीमारी के इलाज में अब तो मेरी जमा पूंजी तक खत्म होने लगी है। लेकिन मॉ की बीमारी है कि ठीक होनें का नाम ही नही ले रही। तो भेष बदले बाबा के रूप में राजा नें बालक से कहा कि तुम अपनें राजा के पास मदद के लिए क्यो नही जाते, वह बहुत अच्छा राजा है। वह अपनी प्रजा की हर तरह से मदद करते है तो वह तुम्हारी भी मदद अवश्य करेगे। तो उस बालक नें अपनी नजरे झुका ली और बोला कि मेरी मॉ बहुत स्वाभिमानी है वह मुफ्त में किसी से कुछ भी नही लेती है। तो राजा नें कहा कि मैं तुम्हारी कुछ मदद करूं.... तो बालक तैयार हो गया। राजा के मन में एक युक्ति सूझी और उसनें एक बालक से कहा कि तुम एक काम करों तो तुम्हारी मॉ जल्द बिल्कुल ठीक हो जायेगी। 

बालक तुरन्त तैयार हो गया और बोला बताओ बाबा मुझे क्या करना होगा। तो राजा नें कहा कि तुम्हे कभी भी लालच नही करना होगा और मेरी एक तरकीब है उसके बारे में किसी को भी नही बताना है, यहॉ तक कि अपनी मॉ को भी नही। लड़का तैयार हो गया । तब राजा बोला कि तुम्हे कल से रोज इस बगीचे में आना है और केवल एक घंटे के लिए काम करना होगा। क्या काम करना होगा बाबा.... लड़के नें पूछा... तो राजा नें कहा कि तुम्हे सिर्फ बगीचे में पौधो को पानी देना होगा। तो इससे मेरी मॉ की बीमारी कैसे ठीक होगी। राजा बोला यह तुम ईश्वर पर छोड़ दो। लेकिन हॉ जब तुम्हारी मॉ की तबियत ठीक हो जायें तो मुझे अवश्य बताना। जी अवश्य... बालक नें कहा। और अगले दिन से वह बालक बगीचे में ठीक एक घंटे कि लिए जाता और बगीचे में पानी देकर वापस घर चला आता।

 कुछ दिन बाद घर लौटनें पर वह देखता कि उसके दरवाजे पर एक सोनें की मोहर पड़ी है। बालक उसे पाकर खुश हो गया और अपनी मॉ से सोने की मोहर के बारे में पूछनें ही वाला था कि उसे बाबा की बात याद आ गयी कि किसी को कुछ भी नही बताना है औऱ लालच नही करना है। बालक को दो- तीन दिनों के बाद फिर से एक नयी मोहर मिल गयी और मोहक मिलनें का यह सिलसिला चल पड़ा। धीरे- धीरे मॉ को अच्छा इलाज होनें लगा और मॉ बिल्कुल ठीक हो गयी। और फिर एक दिन उस बालक को फिर से वही बाबा मिले और बाबा नें बालक से मॉ की बीमारी के बारे में पूछा तो बालक झूठ बोल गया और कहनें लगा कि अरे बाबा आपकी तरकीब से तो मेरी मॉ की तबियत और खराब हो गयी। तो राजा बोला क्या तुम्हारी मॉ की तबियत में बिल्कुल भी सुधार नही हुआ तो बालक के मन में मोहरो को पानें के प्रति लालच पनप आया उसनें सोचा कि कहीं राजा को कुछ बतानें से कहीं मोहर मिलनें का सिलसिला बन्द न हो जायें। लेकिन अब उसे कुछ दिनों से मोहरे मिलना बन्द हो गया क्योकि राजा को बालक के बारे में सब पता था और राजा ही चुपके से उसके दरबाजे पर वह मोहरे रखता था। 

कुछ दिन बाद बालक औऱ उसकी मॉ पास के ही एक रिश्तेदार के घर गये और राज रोज की तरह उसके घर गया और घर के पीछे की दीवार से उसके बन्द अकेले घर में घुस गया और बालक के सन्दूक में छिपी रखी मोहरे से भरी थैली को वापस उठा लाया। अगले दिन फिर से उसे वहीं बाबा मिल गये तो लड़का फिर रोता दिखायी दिया। तो बाबा नें रोनें का कारण पूछा- तो लड़के नें अपने घर पर चोरी की बात बतायी तो राजा बोला मैनें पहले ही कहा था कि तुम्हे लालच नही करना है। तुम्हारे यहॉ चोरी का कारण केवल लालच और तुम्हारा झूठ बोलना ही है। इन्सान को कभी भी लालच नही करना चाहियें और न ही झूठ बोलना चाहियें। बालक को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। बालक बिना कुछ बोले चुपचाप अपनें घर को चल दिया।

 लेखक

 गौरव सक्सेना

 उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म" नें अपनें 14 नवम्बर 2021 के अंक में प्रकाशित किया है। 

लालच और झूठ की सजा.. बाल दिवस पर विशेष कहानी

 

Gaurav Saxena

Author & Editor

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