दीपों के बिकनें की उम्मीद में दीपावली

 

दीपों के बिकनें की उम्मीद में दीपावली

 

दीपों के बिकनें की उम्मीद में दीपावली

 

दीपावली पर्व नजदीक आ रहा है। बाजार खरीददारों की भीड़ से गुलजार है। मानों हर कोई सारा बाजार ही खरीदना चांह रहा हो। लेकिन कमला दुखी है क्योकि हर साल उसका एकलौता बच्चा मौहल्ले के अन्य बच्चों की तरह दीपावली मनाने की जिद्द करता है। लेकिन बेचारी कमला हर बार कुछ न कुछ नया बहाना बनाकर अपनी गरीबी पर परदा डालनें की असफल कोशिश करती रहती है। लेकिन इस वर्ष भी उसनें अपनी उम्मीद को नही छोड़ा है। तभी तो वह कड़ी मेहनत कर रही है और मिट्टी के तरह- तरह के दीपक बना रही है। दिन भर मिट्टी में सनें हाथों से दीपक बनाकर और उनमें रंग भरना फिर बाजार में खरीददार ढूढ़ना, और शाम होते उन्ही दीपों को वापस झोले में भरकर अगले दिन खरीददार मिलनें की उम्मीद में जीना । नि:सन्देह यह सब कर पाना अकेली कमला के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

मॉ – मॉ ...... कमला के एकलौते बेटे नें कमला के घर लोटनें पर उसे पुकारते हुयें कहा—

क्या मॉ आज भी तेरे दीपक नही बिके, अब तो कुछ ही दिन शेष रह गयें है दीपावली में.....

 

तेरे दीपक मॉ कोई क्यों नही खरीदता...... क्या इस बार भी हमारी दीपावली पर मिठाईयां नही बन पायेगी, क्या इस बार भी हम पकवान के लिए दूसरे बच्चों का मुंह ताकेगे। बता न मॉ तेरे दीपों में क्या कमी है जो इन्हे कोई नही खरीदता। 

 

बेटा दीपों में कोई कमी नही है। कमी तो सिर्फ लोगो की सोच में है। लोग नकली चमक – धमक में सजे विदेशी दीपों को खरीदनें में अपनी शान समझते है। और अपने देश की मिट्टी से बनें दीपक खरीदना उन्हे अच्छा नही लगता है। तो मॉ आप भी विदेशी दीपक बेचनें का काम क्यो नही करती हो। यह अपना पुराना काम बदल क्यो नही लेती। 

 

नही- नही बेटा, यह हमारा पुश्तैनी काम है, माटी में हम पैदा हुयें है तो उस माटी के साथ कभी भी दगा नही कर सकतें। भले ही हमारे दीपक कम बिके ..... हम बिना मिठाई के दीपावली मना लेगे। लेकिन हम विदेशी दीपों को बेचनें का काम नही कर सकते। इस देश की माटी में अपनेंपन की सौधी खुशबू भरी है, हमारे पूर्वजों की मेहनत बसी है। इसे हम गुमनाम नही होनें देगे।

 

लेकिन बेटा तू चिन्ता मत कर भगवान हमारी भी दीपावली खुशियों से भरेगा। इस बार हमारे सारे दीपक बिक जायेगे। और हम ढ़ेर सारी मिठाईयां और खिलौने खरीदेगे। 

 

तू सो जा बेटा.... कोई चिन्ता मत कर ।

कमला अपनें बेटे को गले से लगाकर सुबकते – सुबकते पता ही नही चला कब सो गयी। सपनों में अपनें सारे दीपों के बिक जानें की उम्मीद में...

 

यह कहानी नही सच्चाई है बाजार के एक कोनें में बैठी कमला की ..... हाईवे किनारे दीपों को बेचती कमला की ......

 

आप भी विदेशी दीपों को खरीदनें की बजाय कमला के हाथों से बनें दीपक खरीदियें... तभी कोई कमला दीपावली मना पायेगी। और उसके चौबारे में भी खुशियों के दीप प्रज्वलित हो सकेगे।

 

सह लेखिका

मानसी सक्सेना

प्रज्ञा कुंभ

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र वैलकम इंडिया नें 30 अक्टूबर 2021 के अंक में तथा देशधर्म समाचार पत्र नें 31 अक्टूबर 2021 के अंक में प्रकाशित किया है।  


दीपों के बिकनें की उम्मीद में दीपावली


Gaurav Saxena

Author & Editor

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