व्यंग्य लेख – बड़ी बातों की सजा

 व्यंग्य लेख – बड़ी बातों की सजा



मैं रविवार की सुनहरी दोपहर का आनन्द अपनी बालकनी में बैठकर ले रहा था। कड़ाके की सर्दी नें कई दिनों से आम जनमानस की हालत खराब कर रक्खी थी। हालत तो हम कवियों की भी खराब ही चल रही है। क्योकि इस वर्ष भी कोरोना नें अपना खूब दमखम दिखाया जिसका असर प्रतिवर्ष सर्दियों में आयोजित होनें वाले कवि सम्मेलनों पर भी पड़ा। इस बार की सर्दियॉ में तो मुझे एक भी कवि सम्मेलन में जानें का मौका ही नही मिला। मैं पुरानें कवि सम्मेलन की सर्द राते और गर्म कुल्लहड़ वाली चाय औऱ समापन समारोह में मिलने वाली गर्म शॉल की यादों में भीग ही रहा था कि अचानक से पीछे से एक आवाज आयी – गुरूदेव चरण स्पर्श.... 


पलट कर देखा तो मेरा पुराना चेला कनचप्पा आ धमका। 

मैनें कहा – कहो कनचप्पा इस सर्दी में कैसे आना हुआ। अरे गुरूवर, कुछ नही बड़ा विकराल संकट आ पड़ा। 

कैसा संकट कनचप्पा मुझे बताओ... 



तो कनचप्पा नें कहा कि गुरूवर मेरी शादी वाले आ रहे है। औऱ आप तो जानते ही है कि मैं जोड़ – तोड़ औऱ ले देकर तो डिग्रीधारक बन पाया हूं, आपके सिखायें शार्टकट से काम निकाल कर वन –टू का फोर कर पा रहा हूं। कहीं लड़की वालों नें मुझसे कुछ पूछ लिया तो भला मैं उनकी परीक्षा में कैसे सफल हो पाऊंगा। 


देख बेटा कनचप्पा – तुम्हे भयभीत होनें की आवश्यकता नही है। तुमे यहॉ पर भी मेरा फारमूला अपनाना होगा। 

बतायें गुरूदेव बतायें जल्द बतायें....................... 


देखो बेटा, तुम्हे लड़की वालों के सामनें कम बोलना है या कहे कि मौन ही रहकर सारे सवालों के जबाब सिर हिलाकर देनें है। और जब तुम्हारी परीक्षा समाप्त हो जायें और जब लड़की वालें अपनें घर को प्रस्थान करनें वाले हो तो मौके पर चौका लगानें से मत चूकना। 


वो कैसे गुरूवर ..... बताता हूं.....

उस समय तुम्हे अपनें परिवारीजनों से लम्बी- लम्बी बाते इस प्रकार से करनी है कि जिससें उन्हे लगे कि तुम बहुत पढ़े लिखे हो और बहुत अधिक धनवान भी हो। 


इस प्रकार तुम कभी भी नही फसोगे और तुम्हारा विवाह भी हो जायेगा। लेकिन यह प्रयोग अपनें रिस्क पर ही करना क्योकि इसके परिणाम घातक भी हो सकतें है। यह मेरी तरफ से तुम्हारे लिए वैधानिक चेतावनी भी है। 


ठीक है गुरूदेव समझ गया आप चिन्ता मत करियें अब तो मैं दूल्हा बनकर ही रहूंगा। लेकिन गुरूदेव अगले रविवार को आपको मेरे घर पर आना होगा, क्योकि लड़की वाले उसी दिन मेरी परीक्षा लेनें के लिए आ रहे है। आप साथ रहेगे तो यह विवाह मेरे लिए यादगार बन जायेगा। ठीक है मैं अवश्य आऊगा..... 


उधर अगले रविवार को मैं कनचप्पा के घर पहुचा औऱ कुछ ही देर में लड़की वाले आ धमके, मैं एक कोनें मैं बैठकर अपने दियें गुरूज्ञान को सफल होते लाईव देखना चांह रहा था। 


लड़की वालो नें प्रश्न पूछनें प्रारम्भ कर दियें थे और कनचप्पा सिर हिला- हिलाकर जबाब दे रहा था। तभी प्रश्न मंडली में से एक नें कहा कि लड़का बार- बार हर बात का सिर हिला कर जबाब क्यो दे रहा, कुछ बोल क्यो नही रहा है। 


तो सभी चुप हो गयें लेकिन तभी मैनें कहा कि लड़का गम्भीर है और सामान्य जन से कही अधिक बुद्धिमान है जिस कारण से मौन रहकर जबाब दे रहा है क्योकि मौन की अपनी एक अलग महिमा होती है। तो सभी लोगो नें कहा – हॉ भाई हॉ सही बात है.... मैं मन ही मन खुश हो रहा था। 


लड़की वालों के चलनें का समय हुआ तभी कनचप्पा अचानक से उठ खड़ा हुआ औऱ अपनें पिता जी से बोला कि पापा जरा चाबी देना, अपनें एयरोप्लेन को अन्दर खड़ा करना अभी धूप में खड़ा है। 


मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गया कि कनचप्पा यह तूनें क्या किया.... तू तो मेरा भी गुरू निकला इतनी भी लम्बी चौड़ी बाते बोलनें को नही कहा था। 


तो चलते – चलते लड़की वाले भी कह गयें कि हम लोग भी शादी मंगल ग्रह पर ही चलकर करेगे। क्योकि पृथ्वीलोक पर सभी गेस्ट हाउस बुक हो चुके है। 


मैं चुपचाप दबे पांव उधर से खिसक गया और बेचारा कनचप्पा इस बार भी कुआंरा ही रह गया।



लेखक 

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 19 दिसम्बर 2021 के अंक में प्रकाशित किया है। 

व्यंग्य लेख – बड़ी बातों की सजा


Gaurav Saxena

Author & Editor

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