नुमाइश की रंग – बिरंगी दुनियां

नुमाइश की रंग – बिरंगी दुनियां


मेलों का आम जीवन में बहुत महत्व रहा है। कभी किसी शहर का मेला तो कहीं किसी शहर की नुमाइश । मेला जब बाल्यावस्था से बड़ा हो जाये तो उसे नुमाइश या प्रदर्शनी जैसे शब्दों में बांध दिया जाता है। मेलों का अपना एक अलग रंग और ढ़ग होता है, इसी कारण से लोग मेलों के आयोजन के लिए बेसब्री से इन्तजार करते रहते है। हर एक मेला अपनी किसी खास चीज या फिर कोई खास कारण के लिए प्रसिद्ध होते है। नुमाइश जहॉ अन्य शहरों से दुकानदार अपने हुनर को दिखानें के लिए आते है, कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करनें के लिए आते है। यह नुमाइश प्रशासन के द्वारा निर्धारित समय के लिए एक बड़े स्थान पर लगती है और तब तक नही हटती जब तक कि पुलिस अपना बल न दिखायें। खरीददार भी साहब उठती नुमाइश का इन्तजार बड़ी बेसब्री से करते है क्योकि यहीं उपयुक्त समय होता है जब हर माल 5 रू बिकता है। माल कितना बिकता है या फिर धीमें से भीड़ की आड़ में चुरता है यह तो ऊपरवाला ही जानता है। सामान का भाव तो इतना गिर जाता है जितना कि सेन्सेंक्स भी नही गिरता है। लोग थैला भर- भरकर घर ले जाते है।

नुमाइश की छटा में विविध रंग भरे होते है, कहीं जलेबी वाला नई- नई उपमायें दे रहा है तो कोई इशारे ही इशारो में बच्चों से खिलौनें की जिद्द करनें के लिए उकसा रहा है तांकि बच्चा रोये और दुकनदार का खिलौना बिक सकें। बच्चा भी इशारे पर रोता है और बेचारे मॉ – बाप को जिद्द पूरी करनी पड़ती है। और उधर खोये – पाये बच्चों के लिए लाउडस्पीकर पर विज्ञापन और संगीत के बीच- बीच में सूचनायें दी जाती है कि अपनें बच्चे को आकर ले जायें यह लाल रंग के कपड़े पहनें है। अब आपके लिए यह भले ही हास्यापद लगे कि कुछ लोग तो जानबूझ कर बच्चों को नुमाइश में खो देते है कि देख रेख के लिए खोया – पाया विभाग बना ही है, घर चलते समय वहॉ से बच्चों को ले लेगें। नुमाइश देखनें के दौरान हर चीज पर मचलते बच्चों को डमी रूप में खोकर आराम से नुमाइश देखनें का अपना एक अलग ही अनुभव होता है। बीच – बीच में फरमाईशी गीत, मोलभाव करते लोग, तरह – तरह के जायकों का लुफ्त, हर साल कुछ न कुछ नया मिलना अपनें आप में अदभुत है। वहीं मेदे से खास तरीके से बना हुआ “खाजा” जिसे हर दुकानदार आपकों इस उद्देश्य से चखाना चाहंता है कि आप उसकी दुकान से खाजा खरीदें। लेकिन लोग भी है जो केवल फ्री में हर दुकान से स्वाद चखकर मन और पेट दोनों भरना चाहंते है। तब दुकानदार भी करे तो क्या करें वह भी तैयार बैठा तेल में से तिली निकालनें के लिए...... आपमें से कोई तो स्वाद के साथ- साथ खरीददारी भी करेगा। हमारे गॉव का छुट्टन हर साल गॉव वालों को शहर में लाकर के नुमाइश दिखाता है, सॉफ्टी की दुकान पर सभी लोगों को बैठा जाता है और दुकानदार से कहता है कि सभी लोगो को सॉफ्टी खिलाओ और पेमेन्ट के समय पर दबे पैर खिसक जाता है। दुकनदार हर साल छुट्टन को ढूढ़ता रहता है।

क्या बच्चा, क्या जवान और वृद्ध सभी खुश है इस नुमाइश की चकाचौध दुनियां में। आप भी लुफ्त लीजियें सर्द रातों में मूगफली चबते हुयें नुमाइश का दीदार करनें का।

 लेखक

गौरव सक्सेना 


उक्त लेख को समाचार पत्र देशधर्म नेें अपनें 2 जनवरी 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 

नुमाइश की रंग – बिरंगी दुनियां


Gaurav Saxena

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