मेरे
सावन के शिव
शिव सहज और अत्यन्त सरल स्वभाव के
है। जो भक्त द्वारा केवल जल चढ़ाये जानें मात्र से ही खुश हो जाते है और अपनें
भक्तो की समस्त मनोकामना पूर्ण करते है। बेल पत्र अर्पण से तो प्रभु भक्त के
वशीभूत हो जाते है। पुराणों में शिव को महादानी भी बताया गया है अर्थात भक्त की
भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ भक्त पर अपनी कितनी कृपा बरसा सकते है इसकी कल्पना
भी नही की जा सकती है। यहीं कारण भी रहा है कि असुर सदैव शिव को प्रसन्न करनें
हेतु शिव पूजा करते थे तथा शिव आर्शीवाद प्राप्त भी करते थे।
स्वंय लंकापति रावण भी शिव का भक्त
था और शिव को प्रसन्न करनें हेतु अपनें शीश काट-काट चढ़ाता था, उन्हे प्रसन्न करनें हेतु
नृत्य करके रिझाता था, शिव ताण्डव स्त्रोत्र की रचना स्वंय
रावण नें भगवान शिव को प्रसन्न करनें के लिए की थी। भगवान भोलेनाथ नें भी रावण की भक्ति
से प्रसन्न होकर अपनी सोने की लंका रावण को दान में दे दी थी, तभी से रावण सोनें की लंका का अधिकारी हो गया था। गोस्वामी तुलसीदास जी
नें रामचरित्रमानस के सुन्दरकाण्ड में लिखा भी है। “जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिए दस माथ,
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि
दीन्हि रघुनाथ। भावार्थशिवजी ने जो संपत्ति
रावण को दस सिरों की बलि देने पर दी
थी, वही संपत्ति श्री रघुनाथजी ने
विभीषण को बहुत सकुचाते हुए दी, जैसे
कि यह बहुत तुच्छ वस्तु दी हो।“
भोलेनाथ के लिए सभी भक्त समान
है चांहे कोई देवता हो, दानव हो या कोई मानव सभी पर अपनी अविरल कृपा बरसाते रहते है।
इस समय चातुर्मास का महीना सावन मास
चल रहा है जो कि भगवान शिव को अति प्रिय है। पौराणिक मान्यताऔं के अनुसार इन चार
माह में सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करते है, सृष्टि का संचालन भगवान शिव
करते है। इसी कारण से इन चार माह में भगवान शिव की साधना, आराधना
को अति फलदायी और श्रेष्ठ माना गया है।
भक्तो को अतिशीघ्र शिव कृपा पाने के
लिए इस काल में निरन्तर शिव अर्चना करते रहना चांहिये, तथा पंचाक्षरी मंत्र ऊं नम:
शिवाय का जप करते रहना
चाहियें।
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र दैनिक जागरण कानपुर संस्करण नेे अपनें पृष्ठ संख्या 2 पर दिनांक 09 जुलाई 2020 को स्थान दिया है।
(लेखक)
गौरव सक्सेना
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