जल है तो कल है........................




जल है तो कल है........................

जल है तो कल है........................


            मनुष्य के साथ- साथ प्रकृति भी अपना आनन्दोत्सव मनाती है, फर्क इतना है कि मनुष्य केवल लीक पीटता है और प्रकृति वातावरणीय सन्तुलन बनाती है। अभी प्रकृति का उत्सव अर्थात वर्षाकाल हमारे चौबारें को भिंगो रहा है, यह वह सुखद और मनोहारी समय है जब मेघों से अमृतरूपी जल धरती पर बरसता है और सम्पूर्ण धरा को सिचिंत करता है। मनुष्यों के साथ- साथ अन्य समस्त जीवधारी इस वर्षा में अपनें आप को भिगोनें की एक चाहं रखते है। लेकिन अन्य समस्त जीवधारियों में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ और बुद्धिमान है जो अपने वर्तमान और भविष्य को भलीभांति समझता है। 


            लेकिन अफसोस है कि मनुष्य इस अमूल्य जल के महत्व को निरन्तर अनदेखा करता चला जा रहा है। जैसे जिम्मेदारियों से दूर भागकर भविष्य में जल संकट को झुठलाया जा सकता हो, यह एक बेहद कटु सत्य है कि धरती पर पीनें योग्य जल क्षेत्र निरन्तर सिकुड़ते जा रहे है और विकास के नाम पर अन्धाधुंध प्राकृतिक दोहनकारियों के लिए यह कड़ी चेतावनी है कि जल एक सीमित प्राकृतिक संसाधन है और इसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती है। तकनीकी के बढ़ते कदम भी आज जल निर्माण नही कर सकते है। अत: हर हाल में हमें जल की बर्बादी रोकनी होगी, प्रकृति से स्वार्थवश नही अपितु जीवन दायिनी मॉ के रूप में जुड़ना होगा। 


            आज और अतीत में अगर जल की महत्ता के सन्दर्भ में विश्लेषण करें तो पायेगे कि कैसे हमारे पूर्वज जल को देवता के रूप में मानते थे, जल संसाधनों का समाज में हर कोई सम्मान करता था, जल श्रोत्रो के निरन्तर संरक्षण औऱ संवर्धन के लिए समाज में एक जन भागीदारी दिखाई देती थी, जो कि आज समाज से नदारत हो गयी है। पर्यावरण प्रेमियों औऱ सरकारी तंत्र के जल संरक्षण के सराहनीय कार्य बढ़ते जल प्रदूर्षण को रोकनें के लिए तब तक सफल नही हो पायेगे जब तक हर एक नागरिक जल संरक्षण की सौगन्ध न खायें, और अपनें जीवन में संकल्पवद्ध न हो।


जल है तो कल है........................




           जरा सोचिये, कि हम घरों में कैसे जल की निरन्तर बर्बादी करते चले जा रहे है, जितना पानी इस्तेमाल होता है उसका कई फीसदी गंदा होकर नाली में बह जाता है। अपने आप से प्रश्न करनें का समय आ गया है कि इस प्रकार से यदि जल की बर्बादी हम करते गये तो आगे आनें वाली पीढ़ियों को हम क्या देकर जायेगे, जो कि हमें भी अपनें पूर्वजों से विरासत में मिली थी। कम से कम जल को ही विरासत के रूप में संरक्षित कर लीजिए। 
आईयें मिलकर के अपनी धरा पर जल संरक्षण को नैतिक कर्तव्य के रूप में आत्मसार करें तथा जल संरक्षण और इसकी निरन्तर बेतरतीब बर्बादी पर रोक लगायें। तथा समाज में जल के महत्व के प्रति जन- जागरूकता फैलायें।



जल है तो कल है........................


लेखक
गौरव सक्सेना

Gaurav Saxena

Author & Editor

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