कुत्तों के हिस्से का खाना

 कुत्तों के हिस्से का खाना

कुत्तों के हिस्से का खाना


रामलाल के भी चौबारे में मंगल घड़ियों के सजनें सवरनें का समय आ गया था। आखिर कब से अपनी बिटिया राधा के लिए कोई अच्छा रिश्ता खोज रहा था। अब तो राधा की सभी सखियों की भी शादी हो चुकी थी। पूरे मौहल्ले में केवल राधा ही तो शेष रह गयी थी जिसका अभी तक विवाह न हो सका था। जिसका कारण था कि लड़के वालो की दहेज की मंहगी मांग, जो शायद रामलाल के लिए पूर्ण कर पाना असम्भव था। लेकिन देर से ही सही लड़का तो अच्छा मिल गया, घर परिवार भी ठीक है। वैसे तो दहेज के बिना अब शादी का होना केवल एक सपना ही रह गया है। आखिर कब तक रामलाल अपनी बेटी का विवाह रोककर रखता। हर कोई तो है जो रोज उसे तानें मारता है कि रामलाल इस साल तो बिटियां के हाथ पीले कर ही दो।    


रामलाल नें भी भली प्रकार से समझ लिया है कि आज के जमानें में दहेज के मायनें बदल गये है जिसें उपहार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। अब लड़की वालों को मंहगे सामान खरीदकर उपहार स्वरूप लड़के वालों को देनें होते है। रामलाल नें लड़के वालों की मांग पूरी करने और उनके स्वागत सत्कार, खानपान आदि की व्यवस्था पूर्ण करनें के लिए न जाने कितने लोगो से उधार पैसा ले लिया है। अब शादी के कुछ ही दिवस शेष बचे है और रामलाल अपनें परिवार के सभी सदस्यो के साथ मिलकर शादी की तैयारी पूरी करने मे जी जान से जुटा है। बेचारा रामलाल दिनभर की थकान लेकर बिस्तर पर लेटा ही था कि पत्नी शारदा ने आकर बताया कि आज लड़के वालो के यहॉ से सूचना आयी है कि हमें शादी में खानें – पीनें के व्यंजनों की संख्या और अधिक बढ़ानी होगी जिसमें हमें कई तरह के पकवान और बनवानें होगे। तथा कॉफी, गर्म मेवा दूध जैसे काउन्टर और लगवानें होगे।


रामलाल नें नयी फरमाईश सुनकर एक गहरी सांस ली और बोला करेगे पूरी फरमाईश आखिर हम बिटियां वाले जो है। अब नयी फरमाईश कैसे पूरी होगी इसी सोच विचार में रामलाल कब सो गया पता ही नही चला। अगली सुबह उठकर चल दिया कोई नया देनदार खोजने, जो उसे इस नयी फरमाईश को पूर्ण करनें के लिए धन उधार दे सके।


आखिर शादी का दिन भी आ गया। रामलाल बारातियों के स्वागत में कोई भी कसर नही छोड़ना चाहता था। अपनी सामर्थ्य से कई गुना अधिक खर्च करके बेटी की शादी कर रहा था। कि उसे ससुराल में कोई परेशानी न हो। या यूं कहे कि उधार के पैसो से बेटी के लिए खुशियां खरीद रहा था। सब कुछ व्यवस्थित रूप से चल रहा था। बाराती मस्त हाथी की तरह खानें के काउन्टरो पर खाने पीने का लुफ्त उठा रहे थें। थाली में भूख से कहीं ज्यादा व्यंजनों को परोस रहे थें। जितना खा पाते उतना खाते बाकी फेक देते। तभी रामलाल के बड़े बेटे नें बताया कि पापा खाना कम पड़ रहा है। आनन-फानन में रामलाल नें अपनें रिश्तेदारों से पैसा उधार लिया और जल्द बाजार से अतिरिक्त सामान मगांकर दावत को सुचारू रूप से चलाया। किसी भी प्रकार की कोई कमी नही होने दी और न ही किसी प्रकार की कोई व्यवस्था को भंग होने दिया।


सब कुछ अच्छे से निपट गया बेटी को खुशी – खुशी विदा करके बैठा ही था कि मैरिज होम वाले नें आकर कहा कि रामलाल मैरिज होम की सफाई करवानें के लिए तुम्हे अतिरिक्त रूपया हमारे लड़को को देना होगा। चूंकि रामलाल अतिरिक्त खर्चे के नाम से परेशान हो चुका था। वह तुरन्त बोला कि अब तुम्हारे लड़को को अतिरिक्त पैसा क्यो चाहियें। तो वह रामलाल को कूड़े के ढ़ेर के पास ले जाकर बोला - देखो रामलाल कितना खाना बारातियों नें बर्बाद किया है। रामलाल नें देखा कि कैसे बारातियों नें खानें को बर्बाद करके उसका ढ़ेर लगा दिया जिसमें कुत्ते घुस कर अपनी भूख मिटा रहे थें। रामलाल सोच रहा था कि आज के लोग कैसे हो चले है जो खाने को इस कदर बर्बाद करते है। जिसके लिए कोई रामलाल अपनी जिन्दगी भर की दौलत लगा देता है।


रामलाल अपना सिर पकड़ कर बैठ गया तभी हलवाई, टैन्ट, सजावट वाला, फोटोग्राफर औऱ अन्य सभी अपने – अपनें भुगतान के लिए बिल लेकर आ गयें।

बेचारा रामलाल सभी को आश्वासन दे रहा था कि वह सभी का पेमेन्ट जल्द पूरा अदा कर देगा। और कुत्तो की संख्या बढ़ती ही जा रही थी क्योकि इन्सान के द्वारा बर्बाद कियें गये खानें पर उनके अलावा किसी और का हक नही था। और न ही उन्हे कोई रोकनें वाला था।

 

लेखक

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें दिनांक 27 फरवरी 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 

कुत्तों के हिस्से का खाना



Gaurav Saxena

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