जनता के कोरे- कोरे सपनें...............


जनता के कोरे- कोरे सपनें...............

 

जनता के कोरे- कोरे सपनें...............

मैं आज आश्चर्यचकित और अत्यन्त प्रसन्न हूं। मेरा रोम- रोम पुलकित हो रहा है, मेरा मन कर रहा है कि मैं नागिन डांस करूं, फिर सोचता हूं कि मेरे जैसे लेखक को इस तरह का डांस करते देखकर लोग क्या कहेगे। फिर सोचा चलो बिना नृत्य के ही सभी से अपनी खुशी का इजहार कर दूं। मेरे लिए आज खुशी डबल डोज बूस्टर के रूप में आयी है, कारण यह है कि एक तो नव वर्ष का आगमन और दूसरा यह कि चुनाव जीतनें के बाद नव वर्ष के प्रथम दिन ही नेता जी का मेरे गरीबखानें में आगमन। यह कोई चमत्कार से कम नही है और शायद इतिहास में पहली बार ही ऐसा होगा जब कोई नेता चुनाव जीतनें के बाद जनता का दुख- दर्द जाननें के लिए उसकी झोपड़ी में आयें। फिर सोचा कि शायद मेरे जैसे लेखक के लिए कोई पद खाली रह गया होगा सो उसके लिए मुझे निमंत्रण देनें आ रहे होगे। खैर, मैं श्रीमती जी के साथ नेता जी के स्वागत के लिए जोर – शोर से तैयारी मैं जुट गया। बैठक में से अन्य लेखकों की पुस्तकों को हटाकर केवल अपनी ही लिखी पुस्तके अलमारी में सजाकर रक्खी है, खानें पीनें के लिए कल्लू हलवाई से मिष्ठान उधारी पर इस शर्त के साथ खरीदा है कि यदि कोई पद या बड़ा लाभ हुआ तो ही उसकी उधारी चुकता होगी अन्यथा पूर्व की भांति कोरोना का कहर समझकर उधारी भूल जाना।


आखिरकार नेता जी का का आगमन मेरे गरीबखानें में हो ही गया। मैं नेता जी के साथ आराम से बैठकर चाय नाश्ता कर रहा था और नेता जी के चेले भी सपासट प्लेटे साफ करनें में लगे थें। मैनें सोचा कि कोई बात नही आजकल लक्ष्मी को बुलानें के लिए भी लक्ष्मी खर्च करनी पड़ती है। लेकिन नेता जी नें अपनें पिटारे में से मेरे लिए न कोई उपहार और न ही कोई पद का सिंहासन निकाला। वह कह रहे थे कि अब सब तरफ विकास की ही गंगा बहेगी, लोगो को काम धन्धा मिलेगा, स्वास्थ्य सेवायें चुस्त दुरूस्त होगी। सभी को हर माह मुफ्त अनाज के साथ- साथ एक – एक सिलेण्डर भी मुफ्त दिया जायेगा। आवागमन के लिए सभी को प्रतिमाह 05 ली0 पेट्रोल मुफ्त दिया जायेगा। लोगो को सड़के, बच्चों को कपड़े, रोगी को फल, घरों को नल, किसानों को हल सब कुछ मुफ्त दिया जायेगा।


नेता जी के इस प्रकार के वचनों से मैं भींगता ही जा रहा था और अपना पद और लाभ सब कुछ भुलाकर बस विकास की गंगा में नहाता जा रहा था। गंगाजल निरन्तर मेरे तन को भिगो रहा था कि अचानक ऑख खुल गयी तो देखा कि श्रीमती जी मेरे ऊपर पानी डालकर मुझे जगा रही थी, कह रही थी कि लेखक महोदय उठते हो कि पूरे ड्रम का पानी ही उड़ेल दूं।

मैं इस भयंकर सर्दी में नववर्ष की सुबह ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त कर चुका था और सोच रहा था कि काश सपने का कुछ अंश ही सत्य हो जाता लेकिन सपनें कहॉ सत्य होते है। नेता जी को हम गरीबों की याद तो चुनाव के पूर्व ही आती है. चुनाव के बाद तो सिर्फ कोरे- कोरे सपनें ही रह जाते है।

 

युवा व्यंगकार

गौरव सक्सेना


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 01 जनवरी 2023 के अंक में प्रकाशित किया है। 

जनता के कोरे- कोरे सपनें...............



Gaurav Saxena

Author & Editor

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