रिटायरमेन्ट की गीता
तुम क्यो व्यर्थ चिन्ता कर रहे हो, रिटायरमेन्ट तो अटल सत्य है इसका
सुख तो भोगना ही पड़ेगा। तुमसे पहले भी लोग इसका सुख भोग चुके है और आगे भी भोगते
रहेगे। लेकिन तुम इसको लेकर इतना अधिक चिन्ताग्रस्त और भयभीत क्यों हो रहे हो। ऐसा
क्या रक्खा है इस नौकरी में जो तुम पर छोड़ते नही बन रहा है। चन्द कागज लेकर ही तो
तुमनें ज्वाइन किया था और आज मालामाल होकर सेवानिवृत्त हो रहे हो। इतना कुछ पा
जानें के बाद भी कमाई से मन नही भर रहा है जो रो रहे हो। कमाई की यह गुप्त तरकीबे
ही तो है जिनका रिटायरमेन्ट के बाद उद्घाटन से तुम्हे भय लग रहा है।
इतना प्रेम तो तुमनें आज तक ऑफिस से कभी नही किया फिर अचानक से क्या
हो चला है। यह ऑफिस किसी का नही हुआ न कभी किसी का होगा, जिसके लिए तुम इतना दुख
द्रवित हो रहे हो। सिर्फ आपका काम ही है जो आपके जानें के बाद यदा-कदा आपके
सहकर्मियों के द्वारा याद किया जायेगा। ऑफिस तो समय चक्र का एक हिस्सा है जो घूमता
रहता है, और घूम-घूमकर सभी को कमाई का मौका देता है। अब तुम्हारे बाद यहीं मौका
तुम्हारे जूनियर को मिलेगा और फिर वह किसी और को देगा।
यह ऑफिस, डेस्क, सरकारी दूरभाष और फाईले सभी जड़मात्र है चेतन तो
सिर्फ वेतन ही है, जो तुमनें भरपूर प्राप्त किया है।
अब तक ऑफिस में गीताज्ञान प्रवाहित कर रहे थें, अब घर पर रह कर गीता
पाठ करना जो कि तुम्हे विदाई समारोह में फ्री उपहार में दी जायेगी। वास्तव में यही
गीता ज्ञान तो तुम्हे भवसागर से पार करेगा। जिसको सच्चे मन से शेष बचे जीवन में
उतार लेना।
तुम्हारी हेकड़ी, रूतवा, यह नेम प्लेट, सब कुछ तो यहीं छूटनें वाला है
साथ तो केवल चन्द मीठे बोल ही जाते है जिनका प्रयोग तो शायद आपनें कभी किया ही नही
है।
अब मलाल कैसा जो हुआ उसे छोड़ दो, जो हो रहा है उसे भी छोड़ दो और जो
होगा उसे भी छोड़ ही दो। समय रहते रिटायरमेन्ट के बाद की जिन्दगी के बारे में कुछ
प्लान कर लो, यह सेविंग, फन्ड, बॉन्ड, गाड़ी, बंगला में से कुछ हिस्सा तो धर्म के
नाम संरक्षित करो, अपने कुछ पल तो गीता के लिए निकालों। कुछ नही कर सकते हो तो कम
से गीता का ज्ञान ही समाज में फैलाओं।
युवा व्यंग्यकार
गौरव सक्सेना
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 25 दिसम्बर 2022 के अंक में प्रकाशित किया है।
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