विकास की फाईल...व्यंग्य लेख

 

विकास की फाईल...व्यंग्य लेख


विकास की फाईल


साहब का शौक निराला है, शौक है खोजने का। खोजने के मामले में तो साहब का कोई सानी नही रहा है। वो तो युगों का अन्तर है वरना तो हड़प्पा संस्कृति की खोजकर्ता साहब ही होते। आज कल वह विकास के नयें – नयें अवसर खोज रहे है। सीधे तौर पर तो उनसे इस नयी खोज के बारे में पूछनें की किसी की हिम्मत नही है लेकिन घुमा फिराकर पूंछनें पर साहब बताते है कि जनता के विकास के लिए खोज जरूरी है। पता चला है कि इस समय साहब के चेम्बर का भी विकास कार्य जोरो से चल रहा है जिसमें अग्रेजी जमानें के लम्बी टांग वाले पंखे को हटाया जा रहा है  और पूरे चैम्बर को हर मौसम के लिए अनुकूलित बनानें का जिम्मा साहब के प्रिय विकास बाबू को सौपा गया है। लम्बी टांग वाला पंखा जो न जानें अब तक कितनें साहबों को शीतलता दे चुका है, और अब विकास बाबू के घर के गोदाम में फिट होकर उनके व्यापार को शीतलता देगा। इस पंखा की भी अपनी एक विशेषता रही है कि जितनी लम्बी टांग उतनी अधिक शीतलता लेकिन अब समय बदल गया है अब टांग लम्बी करनें की बजाय टांग अड़ानें और हाथ लम्बे करनें से साहब को शीतलता प्राप्त होती है।


विकास बाबू साहब के साथ मिलकर जनता का विकास जोर- शोर से कर रहे है कल ही तो उन्होनें अपनें मौहल्ले के एक छोर पर चेम्बर से निष्काषित पुरानें सामान का अलाव जलवाया है। जिसकी गर्मी से बचारे गरीबों की सर्द रात कुछ गर्म हो सकी। लेकिन विकास बाबू की जेब में भयकर सर्दी छायी है तभी तो आज अलाव के खर्चे का एक लम्बा बिल साहब की टेबल पर उनके हस्ताक्षर के लिए प्रतीक्षारत है। प्रतीक्षारत तो चेम्बर के बाहर खड़ा लकड़ी वाला भी है जिसनें अपना मुद्रित बिल साहब के विभाग के नाम से जो जारी किया है, उम्मीद है कि लकड़ी वाले को भी कुछ गर्माहट दी जायेगी।


वहीं नेत्रहीन स्कूल के विकास का जिम्मा भी साहब के पास है जिसमें स्कूल का जीर्णोद्धार होना है। जिसके लिए विकास बाबू नें फाईल आगे बढ़ा दी है। लेकिन कई माह बीत गये विकास है कि स्कूल तक पहुंच ही नही रहा है।


परेशान होकर एक दिन स्कूल के मास्टर साहब नें जब साहब के चेम्बर में आकर विकास की स्थिति जाननी चाही तो विकास नें अंग्रेजी में लिखी फाईल दिखायी औऱ आश्वासन दिया कि बस 15 दिन में स्कूल की काया पलट करवा दी जायेगी। बेचारे मास्टर साहब स्वंय नेत्रहीन थें जो कमजोर दृष्टि वाले बच्चों के सहारे चेम्बर तक बड़ी मुश्किल से विकास को खोजनें आ पाये थे। फाईल में क्या लिखा था पढ़ न सके और विकास पर विश्वास करके वापस चले गयें। काश विकास की फाईल मास्टर साहब की ब्रेल लिपि में लिखी होती।


फिर एक दिन समाचार पत्र में खबर छपी कि विकास की बाट जोहते- जोहते नैत्रहीन स्कूल की छत भर- भराकर गिर गयी, बच्चें बाल – बाल बच सके क्योकि सभी बगीचे में सर्दी से बचनें के लिए सूर्य देव की शरण में थें।


विकास की आंच अब विकास बाबू और साहब दोनों को लग चुकी थी। अंग्रेजी भाषा में लिखी विकास की फाईल को पढ़नें के लिए अब पूरा शहर खड़ा हो गया था। लेकिन इस बार भी विकास की फाईल को चूहे कुतर चुके थे। 

 

युवा व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना


उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपने 18 दिसम्बर 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 


विकास की फाईल...व्यंग्य लेख


Gaurav Saxena

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