फिर बस रोना ही होगा

 


फिर बस रोना ही होगा


फिर बस रोना ही होगा

 

हलचल मेरे शहर में फिर से बढ़ी इसबार।

नेता जी घर- घर घूमके करते फिरे प्रचार।।

करते फिरे प्रचाररास सिर्फ चुनाव ही आता।

वोटर है अंचभितसमझ न कुछ भी पाता।।

कौन हितैसी कौन भला है, कैसे करे पहचान।

चुनावी वादों की होड़ मेंमतदाता है परेशान।।

हो सतर्क मतदातातनिक कोई भूल न हो पाये।

वादो निभाये जो जीतकरवही सरकार बनायी जाये।।

वही सरकार बनायी जायेनही तो पछताना होगा।

गया समय जो हाथ सेतब फिर बस रोना ही होगा।।

 

कवि

गौरव सक्सेना

उक्त चुनावी काव्य को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें दिनांक 13 फरवरी 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 


Gaurav Saxena

Author & Editor

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