गणतंत्र की अमर कहानी
मैं भारत का वीर सिपाही तिरंगा लेकर निकला हूं।
जात-पात और भाषा का दंश मिटानें निकला हूं।।
मजहब की बन्दिश तोड़, हर एक को गले लगानें निकला हूं।
वीर शिवाजी, लक्ष्मीबाई, भगत सिंह की याद दिलानें निकला हूं।।
मैं भारत का वीर सिपाही तिरंगा लेकर निकला हूं।
बापू के सत्य अंहिसा का पाठ पढ़ानें निकला हूं।
विदेशी सामानों का बहिष्कार कर स्वदेशी अपनानें निकला हूं।।
खूब पढ़ो और खूब बढ़ो, नारी शिक्षा की अलख जगानें निकला हूं।
गांधी तेरे चरखे की रफ्तार बढ़ानें निकला हूं।।
मैं भारत का वीर सिपाही तिरंगा लेकर निकला हूं।
सत्तावन की छिड़ी लड़ाई, जलियांवाले नरसंहार की व्यथा सुनाने निकला हूं।
यह शुभ दिन है हम सबका इसका इजहार करानें निकला हूं।।
गणतंत्र महापर्व है भारत का, इसका जश्न हर दिल में मनानें निकला हूं।
खुशहाल हो हर भारतीय, सबको अपना अधिकार दिलानें निकला हूं।।
मैं भारत का वीर सिपाही तिरंगा लेकर निकला हूं।
कवि
जगत बाबू सक्सेना
सह सम्पादक
प्रज्ञा कुु्ंभ
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र देशधर्म नें अपनें दिनांक 23 जनवरी 2022 के अंक में प्रकाशित किया है।
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