बापू को गौरव का पत्र

बापू को गौरव का पत्र


 बापू को गौरव का पत्र

प्रिय बापू, जय हिन्द ।

बापू आप अमर है और किसी न किसी रूप में आप आज भी हम सभी को जीवन जीनें की कला सिखा रहे है। आपकी यादों की सायें में हम भारतवासी पल- पल आपके सिद्धान्तों, स्वभाव, आचरण और व्यवहार को जीवन्त रूप में नित्य अनुभव करते है। बापू जिस तरह से आपनें जमीनी स्तर पर जन- आन्दोलनों में आम जनमानस के ह्दय में देश प्रेम की भावना का संचार किया, और अंहिसा के बल पर दुनियां को यह पाठ पढ़ाया कि हिंसा किसी भी समस्या का हल नही हो सकती है और उससे किसी भी राष्ट्र का उत्थान नही हो सकता है। वह अपनें आप में आज भी प्रासंगिक है। बापू, आपको याद है न जब इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री नें आपको अर्धनग्न फकीर कहा था। तब आपनें शालीनता के साथ अपनें विराट व्यक्तित्व और अथक परिश्रम से कैसे अपनी प्रतिभा का लोहा मनमाया था। और उसी प्रधानमंत्री चर्चिल नें यह समझ लिया था कि इस अर्धनग्न फकीर में ही एक युग पुरुष छिपा है। और तभी बापू आपनें हम सभी भारतीयों को वैश्विक पटल पर दुनियां में पहचान दिलवायी। बापू यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि बापू या गॉधी किसी व्यक्ति विशेष से ज्यादा किसी युग का उच्चारण है।

आज भी बापू जब आपकी प्रतिमा विदेशों में देखी जाती है तो यकीन मानिए बापू सीना गर्व से फूल जाता है। आपनें पिछड़े और अपेक्षित भारतवासियों का मान बढ़ाया जो अंग्रेजो के द्वारा सदैव अपमानित और शोषित होते रहे। आपनें किस तरह भारतवासियों को सत्य के रास्ते पर चलकर एकता का पाठ पढ़ाया, जिसका प्रतिफल आज हमें नित्य प्रतिदिन मिल रहा है। आपनें मानव जीवन के हर पहलू पर गहन मनन, चिंतन और विमर्श किया और बिना किसी संकोच के लिखा कि सत्य की खोज में मैनें बहुत से विचारों को छोड़ा है और नई बाते सीखी है। ठीक इसी प्रकार हर व्यक्ति को जीवन के प्रत्येक मोड़ पर यह महसूस होना चाहियें कि उसका अपना विकास रूका नही है, मगर अनुभव के साथ निरन्तर गतिशील है।

बापू, आपके समय में रंग भेद, जाति प्रथा जैसी कुरूतियों में समाज बुरी तरह से जकड़ा हुआ था। तब इसके खिलाफ आपनें ही विगुल फूंका और दक्षिण अफ्रीका में रंग- भेद के खिलाफ जन-आन्दोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप रंग-भेद की प्रथा का उन्मूलन होकर जनता को समाज में अपना हक मिला और अपनें देश में भी छुआ-छूत, जाति-पांत का भेदभाव मिटानें के लिए आपनें अथक परिश्रम किया और आपनें ईश्वर नाम पर शब्द हरिजन की उत्पत्ति की। आपके बाल्यकाल की वह घटना आज भी स्मृति पटल पर जीवित है जब आपनें सफाई करनें वाले बालक को अपना मित्र बनाया था और उसके साथ बिना किसी भेदभाव के खूब खेला खाया करते थे। यह सभी जाति और धर्मों को साथ लेकर चलनें की भावना तो सिर्फ आपसे ही सीखी जा सकती है।

नि:सन्देह बापू, अंग्रेजो नें यह समझ लिया था कि इस दुबले – पतले अर्धनग्न फकीर में ही सच्चे अर्थो में भारत का राष्ट्रपिता, पथ प्रदर्शक और भाग्य विधाता समाहित है। और इसके साथ ही सभी देशवासी एक सुर में आपके साथ देश की आजादी के लिए मरनें मिटनें को तैयार हो गये। जिसका परिणाम यह हुआ कि बापू हम सभी को एक लंबी गुलामी की दास्ता से मुक्ति मिल गयी।  

बापू, आपसे बात करनें को बहुत कुछ शेष रह गया है जो इस पत्र में समाहित कर पाना असम्भव है। मन करता है कि बापू आप जहॉ भी हो आपकी लाठी पकड़कर आपको पुन: भारत की धरा पर वापस बुला लाऊ और आपके सपनों के भारत का हम सभी मिलकर सृजन करें।

 

लेखक

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म" नें अपनें 3 उक्टूबर 2021 के अंक में प्रकाशित किया। तथा मेरे बापू व शास्त्री जी की जयन्ती 02 अक्टूबर 2021 पर कियें गयें कार्यक्रम को दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण" नें प्रकाशित किया। 

बापू को गौरव का पत्र

 
बापू को गौरव का पत्र


बापू को गौरव का पत्र

 

Gaurav Saxena

Author & Editor

0 Comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in comment Box