सच्चे पितृ–भोज की आवश्यकता

 सच्चे पितृ–भोज की आवश्यकता


इन्द्र देव अपनें राजभवन में बैठे है तथा पृथ्वीलोक का हाल जानने की इच्छा से अपनें मंत्री को सभागार में बुलाते है। मंत्री नें उन्हे बताया कि महाराज इस समय पृथ्वीलोक पर पितृपक्ष का समय चल रहा है। सभी प्राणी अपनें पितरों के श्राद करनें की परम्परा का निर्वाहन कर रहे है।


इन्द्र देव – लेकिन मंत्री प्राणियों के द्वारा की गयी पितृ पूजा का पता उनके पूर्वजों को कैसे पता चलता है।


महाराज इसके लिए कौआ एक ऐसा पक्षी है जो पृथ्वीलोक पर विचरण करता रहता है। और प्राणियों के द्वारा अपनें पूर्वजों के लिए पकवान, इत्यादि का जो भोजन घरों की छत पर कौओ के लिए आयोजित किया जाता है। उसे कौआ बड़े चाव के साथ खाते है और वापस स्वर्गलोक में निवास कर रहें उनके पूर्वजों को वह उनके घर परिवार की समृद्धि इत्यादि के बारे में बताते है। अपनें कुल के यश, वैभव और समृद्धि के बारे में सुनकर पूर्वज अति प्रसन्न होते है तथा अपनें परिवार को स्वर्गलोक से ही आशीष भी प्रदान करते है। यह 15 दिवस तक चलनें वाला एक प्रकार का अनुष्ठान ही होता है। प्राणि अपनें पूर्वजों के स्वर्गवासी होनें की तिथि के अनुसार कौओ के लिए भोजन का प्रबन्ध करते है। जिसे करनें से पितर खुश होते है और प्राणियों को आर्शीवाद प्राप्त होता है।     


इन्द्र देव – बहुत अच्छा, बहुत अच्छा.... तो अपनें यहॉ स्वर्ग में जो पूर्वज निवास कर रहे है। उनके बारे में भी कुछ बताओं ।


महाराज, सभी पूर्वज अपनी – अपनी मृत्यु तिथि का बेसब्री से इन्तजार कर रहे है। किसी की तिथि पर कौआ को भोजन उनके परिवारीजनों के द्वारा कराया जा चुका है तो कोई अपनी तिथि के आनें की प्रतीक्षा कर रहा है।


तभी एक बड़ा सा कौओ का झुण्ड आकाश में उड़ता हुआ नजर आया, जिसे देखकर मंत्री नें कहा – यह देखो महाराज पृथ्वीलोक से सभी कौआ भरपेट भोजन करके स्वर्गलोक में आ चुके है और बारी- बारी से यहॉ निवास कर रहे पूर्वजों को उनके परिवारीजनों का हाल बतानें के लिए कतार में लगे है।


महाराज यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं भी पूर्वजनिवास महल को प्रस्थान करुं....


अवश्य, तुम जल्द जाओ और देखो जा कर कहीं यह कौआ कोई उत्पात न करें।


ठीक है महाराज,..... यह कह मंत्री पूर्वजनिवास महल की और चल देते है।


वहीं पूर्वज निवास में कौआ बारी – बारी से पूर्वजों से मिल रहे है। तभी कमला देवी और रामलाल शास्त्री जो कि पति-पत्नी है, पहले रामलाल नें मत्यु के बाद पृथ्वीलोक छोड़ दिया था, तथा पति की मृत्यु के 6 माह बाद पत्नी कमला भी स्वर्गवासी हो गयी थी। एक कौआ आकर दोनो के पास आकर बैठता है तथा भोजन के बारें में बताता है कि शास्त्री जी आपके भोजन में तो तरह- तरह के व्यंजन थें लेकिन माता जी आपके भोजन में केवल एक सब्जी औऱ पूड़ी ही थी। भोजन को देखकर यहीं पता चलता है कि आपका ज्येष्ठ पुत्र खुशहाल है वहीं आपका छोटा पुत्र अति निर्धन है। यह सुनकर दोनो पति –पत्नी बोले... अलग- अलग तरीके का भोजन.... यह क्या ....


क्या हमारें पुत्र दोनो अलग – अलग रहनें लगे है। हॉ माता जी आप दोनो की मृत्यु के बाद आपसी विवाद इतना बढ़ गया कि दोनों अलग- अलग रहनें लगे और दोनों एक दूसरे से अत्यन्त घृणा व ईष्या भी करनें लगे है।


यह सुनकर कमला रोनें लगी और अपनें पति देव से बोली कि देखो यह कैसा पितृ भोज है जो कि आज के पावन दिन पर भी हमारे पुत्र एक न हो सके और हमें एक होकर के भोजन भी न करा सकें। जिनके लिए हमनें अपनी जिन्दगी की सारी दौलत लुटा दी। सदैव एकसाथ रहनें की ही सीख दी थी। ऐसा भोजन तो सिर्फ एक औपचारिकता और केवल दिखावा ही है। हम दोनो अपनें पुत्रों का यह भोजन किस प्रकार स्वीकार कर सकते है। यह हमें अस्वीकार ही करना पड़ेगा। लेकिन फिर भी हम लोग अपनें दोनो पुत्रों को सुखी और सम्पन्न रहनें का आशीष देते है।


लेखक

गौरव सक्सेना 

उक्त कहानी को देश धर्म समाचार पत्र ने अपने 26 सितंबर 2021 के अंक में प्रकाशित किया है।

सच्चे पितृ–भोज की आवश्यकता


Gaurav Saxena

Author & Editor

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