बुढ़ापे को अपनों को सहारा
कमला के पति की मृत्यु के बाद तो उसकी जिन्दगी अभिशाप ही बन गयी थी, बहू और बेटा दोनों सरकारी अच्छे ओहदे पर तैनात थें। घर के एक कोनें में कमला पड़ी रहती है, नौकरानी खाना दे जाती है और बहू बेटे शाम को तानें दे जाते है। बहू – बेटा को छोड़ियें अब तो नातिन भी शिष्टाचार भूलती जा रही है। ऐसी जिन्दगी से तो अच्छा है कि वृदाआश्रम में ही जिन्दगी गुजर बसर कर लेती। बहू – बेटे के साथ तो बस यह है कि दुनियां को घर के अत्याचार की भनक नही लगती है। लोग सोचते है कि बहू – बेटे अपनी मॉ की कितनी देख रेख करते है। सच में वृदाआश्रम अब घर में बननें लगे है। अब तो कमला की पेन्सिन पर भी उसके बेटे का कब्जा हो गया। लेकिन मजाल है कि कमला अपने बहू- बेटे के अत्याचारों की शिकायत किसी से करे। शायद इसे ही मॉ की ममता कहते है।
कल रात को बहू- बेटे के आनें के बाद तो अचानक से कमरे में पता नही दोनों के बीच क्या बातचीत हुयी। दोनों बाहर आते ही कमला से लड़नें लगे। कमला को बार – बार यातनायें दी जा रही थी, कि उसके मायकेवाले खराब है जो कि उसकी कभी खैर – खबर तक नही लेते है। यातनाओँ की श्रृखंला इतनी बढ़ गयी कि कमला नें अपना बैग उठाया और अपनें बेटे के आलीशान महल को छोड़कर अपनें पुरानें घर में रहनें के लिए चल दी। जहॉ कभी वह बहू बनकर आयी थी। नही चाहियें बेटे का राजमहल, नही चाहियें कोई आराम। कमला तकरीबन 2 माह से अपनें पुरानें घर में अकेली रह रही है। खुद खाना बनाती और कभी – कभी तो भूखी ही सो जाती है। मौहल्ले वालो से नित्य नये बहानें बना कर अपने बहू- बेटे के अत्याचारों पर पर्दा डालती रहती। कोई कुछ ज्यादा पूछंताछ न करें इसलिए घर के बाहर भी कम ही जाती है। रिश्तेदारों से भी फोन नही करती है। क्योकि वह नही चाहंती कि उसके बेटे की समाज में छवि खराब हो।
सर्दी से राहत पानें के लिए कमला का ज्यादा समय अब घर की छत पर धूप में ही बीतता है। भजन और आध्यत्म में ही अब जीवन व्यतीत कर रही है। कहनें को तो बहू- बेटे है लेकिन जीवन अब एकांकी ही जीना पड़ रहा है। लेकिन अब कमला की एक सखी बन चुकी है जो पड़ोस की छत से चोरी छिपे उसकी खैर खबर लेती रहती है। औऱ अपनें माता-पिता से छिपकर कमला को खानें का सामान भी छत से देती रहती है। सहली हम उम्र तो नही है लेकिन प्यार उम्र के बन्धन में कब बंधा है। उसकी सखी की उम्र महज 9 वर्ष है। जो कमला को दादी कहकर पुकारती है। और समय मिलते ही छत पर अपनें घर की दीवार से चिपककर कमला से ढ़ेर सारी बाते करनें लगती है। कभी – कभी कमला सोचती है कि घर की दीवारे ही खराब होती है जो दिलों को नही मिलनें देती है।
आज उसकी सहेली का जन्म दिन है उसके घर पर एक बड़ी पार्टी है। सुबह से ही शोर शराबे के बीच कमला व्यथित है और सोच रही है कि आज व्यस्तता के कारण शायद उसकी सहेली छत पर उससे मिलनें नही आ पायेगी। लेकिन फिर भी वह उसके इन्तजार में छत पर बैठी है। शाम ढल रही है, सूरज भी अस्त हो चुका है। अब अपनी सखी से न मिल पानें की मायूसी लेकर कमला नें जीनें से नीचे उतरना शुरू ही किया था तभी एक पीछें से एक पतली आवाज – दादी आपका केक, आज मेरा जन्मदिन है........
और दूसरी तरफ नीचे बच्ची के घर वालें परेशान है कि बच्ची अचानक से कहॉ गायब हो गयी। खोजते हुयें परिवारी जन छत पर आ गयें। बेटी और कमला की बाते सुननें लगे। बेटी परिवारीजनों के साथ छत से नीचे उतर आयी, कमला भी नीचे उतर आयी थी। रिश्तेदारों नें बच्ची से कमला के बारे में पूछा तो बच्ची नें कमला की कहानी सुनायी। सभी लोग दुखी हो गयें और बिना कमला की आज्ञा के ही पास के थानें में शिकायत दर्ज करायी। थानेंदार नें अपनी ड्यूटी निभायी और बहू – बेटे को कमला के घर पर तुरन्त बुलाया गया। खुद थानेंदार कमला के घर पर आयें और पुलिस नें बहू- बेटे को खूब डांट लगायी और थानें ले चलनें के लिए कहा। तो तुरन्त कमला थानेंदार से बहू- बेटे को मांफ करनें को कहनें लगी। मॉ की ममता को देखकर सभी लोग भाव विभोर हो गयें। थानेदार नें बहू- बेटे को कड़ी चेतावनी दी और मॉ को अपनें साथ रखनें के लिए आदेश दिया। सभी लोगो नें भी बहू – बेटे को खूब खरी खोटी सुनायी। बहू- बेटे को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। दोनो नें मॉ से क्षमा मांगी और अपनें साथ मॉ को लेकर चल दियें। पीछें से कमला की सहेली हाथ हिलाकर कमला का अभिवादन कर रही थी। इस तरह से नरक हो चली जिन्दगी को एकबार फिर जीवन मिल गया। और बुढ़ापे को अपनों को सहारा.....
लेखक
गौरव सक्सेना
उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म" नें अपनें 19 सितम्बर 2021 के अंक में प्रकाशित किया है।
0 Comments:
Post a Comment
Please do not enter any spam link in comment Box