मत बांटो मजहब की दीवारो में, मैं हिन्दुस्तान सजानें निकला हूं।

 

मत बांटो मजहब की दीवारो में, मैं हिन्दुस्तान सजानें निकला हूं।

मत बांटो मजहब की दीवारो में, मैं हिन्दुस्तान सजानें निकला हूं।

 

मत बांटो मजहब की दीवारो में, मैं हिन्दुस्तान सजानें निकला हूं।

प्रेंम दीवाली हो हर घर में, मैं ईद सिवईयां खानें निकला हूं।।

बाजार सजे हो खुशियों से, खेत भरे हो हरियाली सें।

गली – मौहल्ले गूंजे किलकारी से, मैं तिरंगा लहरानें निकला हूं।।

अधिकारों का संरक्षण हो, प्रतिभाओं का अभिन्नदन हो।

हम सबका भरण पोषण हो, कर्तव्यों का भी निर्वाहन हो।

सभ्यताओं का संवर्धन हो, मैं संस्कार बचानें निकला हूं।

दीन दुखियों की सेवा हो, सबकी रोजी रोटी हो।

भाईचारा दिलों में फूले फले, मैं नफरत मिटानें निकला हूं।।

शिक्षित हो घर की हर बेटी, घर में नारी का सम्मान हो।

प्रतिभाएं पलायन रूकी रहे, युवा न कोई बेरोजगार हो।

प्यार मिले हर दिल मिलें, मैं इतिहास बचानें निकला हूं।।

लेखक

गौरव सक्सेना


उक्त रचना को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म" नें अपनें 27 जून 2021 के अंक में प्रकाशित किया है। 

मत बांटो मजहब की दीवारो में, मैं हिन्दुस्तान सजानें निकला हूं।


Gaurav Saxena

Author & Editor

0 Comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in comment Box