पिता है तो बाजार के सारे खिलौनें अपने है ...............


 

पिता है तो बाजार के सारे खिलौनें अपने है ...............

पिता है तो बाजार के सारे खिलौनें अपने है ...............

 

(पितृ – दिवस को समर्पित)

 

रामलाल नें शहर के बड़े – बड़े घरों, बिल्डिंग और शॉपिंग मॉल को बनाया है लेकिन खुद के लिए अपनी टूटी झोपड़ी को भी पक्का नही बना सका, उसकी गरीबी हर बरसात में झोपड़ी से टपकते पानी से अपना बचाव खोजती है। अपनी पत्नी और 4 साल के पुत्र के साथ जाड़े की सर्द हवायें ठिठुरन से उसे रूलाती है। लेकिन आंधी के थपेडों को सहते – सहते वह शायद अभ्यस्त हो चला था। रोज -रात को अपने पुत्र को जिन्दगी से लड़नें का नया हौसला देता है कोई एक नई प्रेरणादायक कहानी सुनकर ही उसके पुत्र राहुल को नींद आती है। पत्नी भी अपनें पति का सदैव साथ देती है। इतने अभाव के बीच भी बिना किसी शिकवा शिकायत के अपनें पति के साथ जिन्दगी गुजर वसर करती थी, और सोचती है कि शायद किसी दिन उसके भी दिन घूरे के ढ़ेर की तरह अपना स्थान बदलेगे और एक दिन नया सवेरा होगा। और एक नई किरण खुशियां बिखेरेगी।

हर सुबह मेहनत मजदूरी के लिए रामलाल चल देता है फिर किसी के लिए सपनों का घर बनाने के लिए। आज तो जल्दी ही मजदूरी के लिए जाने को कहने लगा तो पत्नी नें जल्दी जाने का कारण पूछां तो बताया कि शहर में कोई बड़ा अस्पताल बन रहा है वहॉ मजदूरी का काम मिल गया है और यह काम कई महीनों तक चलेगा। इसीलिए ठेकेदार नें काम समझानें के लिए जल्दी बुलाया है। ठीक है चले जाना मैं तुम्हारे लिए कलेऊ बांध देती हूं, समय से खा लेना पत्नी ने कहा।

ठीक है ठीक है ....

पत्नी जल्दी – जल्दी चूल्हे को तपा कर गीली लकड़ियों से आग जलानें की पूरी कोशिश करती है, जैसे तैसे खाना बना पा रही है लेकिन किसी भी प्रकार की कोई शिकन उसके मस्तिस्क पर दिखायी नही दे रही है।

रामलाल खाना खाकर तथा कलेऊ लेकर चल पड़ा। तभी पीछे से पुत्र राहुल नें कहा पापा- पापा शाम को रिमोट वाली कार लाना। मुझे रिमोट वाली कार चाहियें। शायद राहुल को उसकी कीमत और अपनें पिता की आमदनी का आभास नही था। लेकिन पिता रामलाल की आंखो में एक विवशता जरूर झलक रही थी। ठीक है मेरे बच्चे जरूर लाऊंगा कह कर चल दिया। रास्तें में खिलौने की दुकान से उस रिमोट कार का मूल्य पूछा, तो पाया कि उसकी आज की दिहाड़ी (मजदूरी) से कहीं ज्यादा कीमत है उस रिमोट कार की। लेकिन पुत्र प्रेम में विवश पिता क्या करे और क्या न करे। वश चले तो शायद आसमान के तारे भी तोड़ लाये।

बच्चे की फरमाईश कैसे पूरी हो इसी उधेड़बुन के बीच काम पर पहुंचा और ठेकेदार से बात होनें के बाद उसे आज ईटे ढ़ोने का काम मिला। पूरी निष्ठा के साथ अपने काम को कर रहा था लेकिन बार- बार अपने पुत्र की मांग को कैसे पूरा किया जाये यह सोच रहा था। काम करते – करते पूरी तरह से थक चुका था। काम समाप्ति का समय हुआ सभी मजदूर अपनी – अपनी दिहाड़ी (मजदूरी) लेने के लिए एक लम्बी लाइन में लगे थे। रामलाल भी अपनी प्रतीक्षा कर रहा था। सब मजदूर घरों को लौट रहे थे। अपनी मजदूरी लेनें के बाद भी रामलाल एक किनारे खड़ा ठेकेदार से कुछ कहना चाहंता था। धीरे – धीरे मजदूरों की भीड़ छट गयी। तो ठेकेदार रामलाल की ओर देखकर बोला तुम क्यो खड़े हो क्या दिक्कत है काम में मन नही लगा क्या।

नही साहब, ऐसा कुछ नही ...

मुझे कुछ काम और दे दो मैं देर रात तक काम करूंगा। लेकिन क्यो ?  ठेकेदार ने पूछा ?

साहब मेरे बेटे नें आज एक खिलौनें की फरमाईश की है और मेरे पास उसे खरीदनें लायक पैसे नही है, वो बेचारा बेसब्री से मेरा इन्तजार कर रहा होगा। यदि बिना खिलौना लिए खाली हाथ घर जाऊंगा तो बेचारे का दिल टूट जायेगा। बच्चा ही तो है साहब...... रामलाल की आंखो में नमी साफ देखी जा सकती थी। और वह इस नमी को आंखो से बाहर आनें से रोकनें का भरकस प्रयास भी कर रहा था।

लेकिन तुम पहले से ही इतने थके लग रहे हो अब और अधिक काम कैसे कर पाओगे। मैं तुमसे और अधिक काम नही करा सकता हूं।

नही – नही साहब मेरी विवशता समझो, मुझे कोई काम दे दो साहब...

जब आपका काम पूरा कर लूं, आप तभी मुझे रूपये देना। 

ठीक है – ठीक है, तुम नही मानते तो यह ईटे भी ऊपर ले जाकर किनारे से लगा दो। ठीक है साहब, यह कह कर रामलाल जरूरत से ज्यादा काम करनें लगा। सर पर ईटों का बढ़ता बोझ, लड़खड़ाते पैर भी उसे रोक नही पा रहे थें। कुछ घन्टो की कड़ी मेहनत रंग लायी और सारी ईटे बताये स्थान पर पहुंच चुकी थी। शायद ईटे भी अपनें भाग्य पर ईठला रही होगी।

ठेकेदार ने जब रामलाल के काम को देखा तो वह भी आश्चर्यचकित हो गया । दो मजदूरों के काम को सिर्फ अकेले रामलाल नें कर दिखाया। रामलाल अपनें पैसे लेकर दोड़कर खिलौने वाले की दुकान पर पहुंचा तो दुकान बन्द होनें का समय हो चला था। लेकिन दुकनदार नें शायद उसके माथे पर बहते पसीने को पढ़ लिया होगा तभी उसने भी बिना देर लगाये वह रिमोट वाली कार रामलाल को दे दी।

रामलाल खुशी- खुशी दोड़ता हुआ घर आया तो इन्तजार कर रही पत्नी नें पूछा कि आज इतनी देर क्यो लगा दी। तो रामलाल नें अपने ओवर टाईम की बात पत्नी से छुपा ली और बोला कुछ नही रास्ते में मेरा दोस्त किशन मिल गया था, वह अपनें घर ले गया था। वहीं देर लग गयी।

देखो राहुल आपका इन्तजार करते – करते सो गया। पत्नी नें रामलाल से कहा....

अरे मेरा प्यारा बेटा राहुल उठो... मैं तुम्हारे लिए देखो क्या लाया हूं... रामलाल नें उसे प्यार से उठाया वह आंखे मलते हुये उठा तो देखा उसके सामनें वही रिमोट वाली कार थी जिसका सपना वह कई दिनों से देख रहा था लेकिन अपनें पिता से मांग नही कर पा रहा था। कार पाकर राहुल अपनें पिता से लिपट गया और कार को घूर – घूर कर निहारनें लगा। कार को सीने से चिपकाये राहुल फिर से सो गया सपनों की दुनियां में। अपनें पुत्र की मांग पूरी करनें की खुशी रामलाल में साफ झलक रही थी। रामलाल और पत्नी भी खाना खाकर सो गये।

सच में पिता है तो बाजार के सारे खिलौनें अपनें है। पिता है तो बचपन है, पिता है तो जीवन है, सम्बल है शक्ति है। जीवन में हर खुशी अपनी है। जीवन में रोटी है कपड़ा है और प्यारा आशियाना है।

यह कहानी नही हकीकत है रामलाल जैसे पिता की।

 

लेखक

गौरव सक्सेना

 

नोट - उक्त कहानी को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म" ने दिनांक 20 जून 2021 के अंक में प्रकाशित किया है।  

पिता है तो बाजार के सारे खिलौनें अपने है ...............


Gaurav Saxena

Author & Editor

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