सम्बन्ध सजा कर जीवन को रचना में यूं ही गढ़ते जाना।


सम्बन्ध सजा कर जीवन को रचना में यूं ही गढ़ते जाना।




सम्बन्ध सजा कर जीवन को रचना में यूं ही गढ़ते जाना।


 

सम्बन्ध सजा कर जीवन को रचना में यूं ही गढ़ते जाना।
बूढ़े होते मात-पिता को भी अपनें कुछ पल देते जाना।।
जीवन की आपाधापी में उपकारों को विस्मृत मत कर देना।
यादों के सायें में रमते जीवन को यूं ही धूमिल मत कर देना।।



उनके निश्छल प्रेम के आगे अपनी कटुता का प्रदर्शन मत करना।
बुरी लगे कुछ बाते तो भी हसकर के घुलते मिलते रहना।।
दूर रहो तो भी घर पर आते रहना, उनके अनुभव के सायें में ही पलते रहना।
अरे, समय बांध कर निशदिन उनसे कुशल क्षेम तो लेते रहना।।



इस धरा पर भगवान रूप में नित्य उनका दर्शन करते रहना।
ना जा पाओं मन्दिर मस्जिद केवल सुमिरन ही करते रहना।।
सफल बनेंगा जीवन तेरा, सुधर जायेगा उनका बिगड़ा जीवन।
चौबारे में झूम उठेगी खुशियां सारी, धरती पर ही स्वर्ग बनेंगा तेरा जीवन।।  


                                      

                  सम्बन्ध सजा कर जीवन को रचना में यूं ही गढ़ते जाना।................................



लेखक
गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देश धर्म" नें दिनांक 8 नवम्बर 2020 को प्रकाशित किया । 


 

सम्बन्ध सजा कर जीवन को रचना में यूं ही गढ़ते जाना।

Gaurav Saxena

Author & Editor

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