चीनी राखी का बहिष्कार, कोरोना सुरक्षा के साथ


चीनी राखी का बहिष्कार, कोरोना सुरक्षा के साथ

चीनी राखी का बहिष्कार, कोरोना सुरक्षा के साथ





स्वच्छ हवा, कल-कल बहती मेरे गांव की नदी का पानी, चहचाते पशु पक्षियों की कर्णप्रिय आवाज से गुंजयमान होता मेरा आंगन कितना सुखद आन्नद देता है, इसे तो केवल अन्तर्मन से महसूस किया जा सकता है। त्योहारों पर पूरे गांव का मिलजुल कर खुशियॉ बाटंनें का सिलसिला यहॉ बहुत पुराना है, पुश्तैनी रिश्ते परिवारों को जोड़े है, परन्तु फिर भी शहरी आवों हवा तो अपना दम खम्भ दिखा ही देती है, नतीजन अब चार पैसे कमानें की कहकर बच्चों के साथ शहर में बस जाना, और गॉव में अपने पुश्तैनी मकान को बेचनें का कारोबार तो शुरू हो ही गया है। अपनी- अपनी सम्पत्ति है अपना- अपना मत है, किसी को शहर ही भानें लगे तो फिर भलां कोई गांव में कैसे टिकेगा।

अरे, मौसी लोगो की अपनी मर्जी है, हमारा उसमें कोई जोर थोड़े ही है। रघुनाथ नें बीच में ही मौसी की बात को अलग रूप देनें की कोशिश की। दरअरसल मौसी गॉव के ही प्राइमरी स्कूल मे हेड मास्टर के पद से सेवानिवृत्त हुय़ी थी, और गांव में सबसे ज्यादा उम्र के साथ- साथ पढ़ी लिखी वुजुर्ग महिला है। इसी वजह से गांव वाले उन्हे सम्मान से मौसी कहकर पुकारते है और बहुत आदर भी करतें है। हर तीज त्यौहार पर मौसी कोई न कोई रचनात्मक कार्य गांव की खुशहाली और एकता के लिए करवाती रहती है। तथा हर सुख-दुख में लोगो की यथा सम्भव मदद भी करतीं है।

मौसी, किशन भईया इस रक्षाबन्धन पर गांव तो आ रहे है ना। रघुनाथ नें मौसी के एकलौते लड़के किशन के बारें में पूछा- जो कि शहर में अपना एक बड़ा व्यवसाय करता है। और लगभग त्यौहारों पर ही गांव में आ पाता है।
अरे रघुनाथ, कुछ ना पूछों, इस बार तो कोरोना नाम की बीमारी नें आफत में जान डाल रक्खी है, कल ही किशन से फोन पर बात हुयी थी कह रहा था कि कोरोना के चलते इस बार रक्षाबन्धन पर घर आ पाना मुश्किल लग रहा है। तो मैने भी ज्यादा जोर जबरदस्ती नही की, यहीं कह दिया कि अपनें हिसाब से देख लेना।

मौसी तुमनें बिल्कुल ठीक किया। लेकिन मौसी इस बार रक्षाबन्धन पर कैसे क्या तैयारी करनी है आपनें कुछ बताया भी नही, अरे बेटा रघुनाथ इस बार कोरोना के कारण बहुत सर्तकता बरतनी है, अपना त्यौहार भी खुशी- खुशी निपट जाये और किसी प्रकार का संक्रमण भी न हो, इस बात का विशेष ध्यान रखना है। हॉ मौसी इस बार के लिए अपनी रुपरेखा बतायें तभी मास्क लगायें प्रधान जी भी आ गये, मौसी प्रणाम, जीते रहो बेटा...
अरे रघु तुमनें सावन उत्सव के लिए मौसी से बात नही की, प्रधान नें रघुनाथ से उत्सुकतावश पूछा।
नही नही प्रधान जी, उसी विषय पर चर्चा हो रही थी, आप बिल्कुल सही समय पर आयें है।
ठीक – ठीक मौसी बतायें...

हॉ तो मैं बोल रही थी कि गांव की नदी की साफ- सफाई करनी है और नदी में किसी भी प्रकार के कूड़े करकट को नही डालना है और गांव के प्रत्येक परिवार के लिए रक्षाबन्धन के दिन नदी पर भुजरियॉ सिरानें का समय बांध देना जिससें अनावश्यक भीड़ न जुट पायें और बाद में शाम को भी इस बार मेल मिलाप के लिए एक दूसरे के घर जानें के बजायें आपस में फोन पर ही बात करना है। और हॉ इस बार तो चीन को भी सबक सिखाना है, इसके लिए तो मैनें शुरूआत भी कर ली है।

क्या मौसी जल्द बताऔ, हम लोग भी समय रहते इसकी भी तैयारी कर ले। अरे कुछ नही इस बार हम सबकों अपनें घर पर धागा से ही राखी बनानी है और बाजार में बिकती चाइना राखी को किसी भी कीमत पर नही खरीदना है। इससें घर का पैसा घर पर रहेगा और चीनी सामान का बहिष्कार भी हो सकेगा।

और हॉ इस बार उपहार स्वरूप मैं अभी से ही तुम सबके घरों पर अपनी बनी राखियॉ और मास्क भेजने लगी हूं। इस बार का त्यौहार के साथ-साथ कोरोना और चाइना के साथ अपनी लड़ाई भी है। हम सभी को मिलकर इन दोनों को ही हराना है।

ठीक- ठीक, मौसी बिल्कुल सही विचार है। हम सबकी भी इस बार त्यौहार मनानें के पीछे कुछ ऐसे ही विचार थे, परन्तु सही रूपरेखा नही बन पा रही थी। वो क्या है कि हम लोग थोड़ा कम पढ़े लिखे है ना।
अरे कोई बात नही तुम लोग त्यौहार की तैयारी करों।

और इस प्रकार प्रधान जी औऱ रघुनाथ दोनो मौसी के बताये तरीके से रक्षाबन्धन की तैयारी के लिए निकल पड़े।
और मौसी जी की घर की बनी राखियों औऱ मास्क ने पूरे गॉव में जो सन्देश दिया है वह अपनें आप में अनूठा है, गॉव के सभी परिवार की महिलायें अपनें घर पर ही रक्षाबन्धन पर्व के लिए राखी और मास्क तैयार कर रही है। जो महिलायें कोरोना के कारण अपनें मायके नही जा पा रही है वह डाक द्वारा अपनी घर पर बनी राखियॉ भाइयों को भेंज रही है। जिससें स्वदेशी वस्तुऔं के प्रति लोगो का रूझान बढ़ा है और वहीं दूसरी और चीनी उत्पादों का बहिष्कार भी हो रहा है।

लेखक
गौरव सक्सेना



Gaurav Saxena

Author & Editor

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