30 जून 1911 को दरभंगा
के एक छोटे से गांव तरौनी में पैदा हुये बाबा नागार्जुन जिसनें हिन्दी साहित्याकाश
को अपनी लेखनी से पुष्पित व पल्लवित किया था। अपनी उत्कृष्ठ लेखनी से देश और
दुनियां में नाम कमाने वाले बाबा नागार्जुन घुमक्कड़ी व फक्कड़ स्वभाव के थे, और ताउम्र
यात्रायें ही करते रहें। बाबा के यायावारी के शोक को देख कर लोग चकित रह जाते थे। प्रारम्भिक
दौर में यात्री नाम से लेखन कार्य करते थे। इनका मूल नाम वैधनाथ मिश्र था तथा
बौद्ध धर्म में शिक्षित होनें के बाद में उन्होने अपनें नाम में नागार्जुन शब्द को
जोड़ कर शब्द का ही मान बढ़ा दिया।
वास्तव में देखा
जाये तो मनुष्य अनुभवों से ही सीखता है और सीखनें की इस प्रकिया में मनुष्य जीवन
में यात्रायें अपना एक अलग अनुभव ही रखती है। हिन्दी साहित्य में यात्रा वृतांत
लेखन में नागार्जुन और राहुल सांकृत्यायन का नाम सदैव अमर रहेगा। जन- जन को समझना, आम
जनमानस की समस्याऔं को अपनी लेखनी में जीवंत रूप दे पाना निश्चित रूप से घुमक्कड़ी
जिज्ञासा वाला कोई नागार्जुन ही कर सकता है। बाबा ने एक बार अपनें बारे में स्वंय
ही कहा था कि जिसनें जन-जीवन को नजदीक जाकर नही देखा, बार – बार नही देखा, भला वह अच्छी रचनाएँ कैसे लिख सकता है? हर एक लेखक को
घुमक्कड़ी ज़रूर करनी चाहिए।'
बाबा का जे पी आन्दोलन से भी गहरा नाता रहा है। उस समय नुक्कड़ नाटको के रूप
में आन्दोलन में अपनी भूमिका अदा किया करतें थें। उस समय इनकी कवितायें लोगो के
अन्दर ऊर्जा का संचार करनें का काम करती थी। उनकी लेखनी सांप्रदायिक
व फासीवादी शक्तियों के लिए कारगर थी
तो वहीं गरीबी और शोषित समाज के लिए एक नव जीवन हुआ करती थी। नागार्जुन कोई
व्यक्ति विशेष से ज्यादा किसी युग का उच्चारण है, 05 नवम्बर
1998 को नागार्जुन का शरीर
भले ही पंचतत्व में विलीन हो गया हो परन्तु वह अपनी लेखनी के माध्यम से लोगो के
दिलों में सदैव जीवित रहेगे।
यूं तो नागार्जुन कई भाषाऔं में लिखते थे और उनका काव्य संग्रह की एक लम्बी
श्रृखंला भी है। हिन्दी की कुछ बहुप्रचलित कविताऔं में युगधारा, अपनें खेत में,
अग्निबीज, सत्य है।
नोट - उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान में दिनांक 1 जुलाई 2020 के कानपुर संस्करण में प्रकाशित है।
नोट - उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान में दिनांक 1 जुलाई 2020 के कानपुर संस्करण में प्रकाशित है।
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