हिन्दी के प्रति
समाज में बढ़ती उदासीनता
उत्तर प्रदेश माध्यमिक
शिक्षा परिषद ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षाऔं का नतीजा घोषित कर दिया है।
इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार को धन्यवाद जिसनें वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के
समय में भी उत्तर पुस्तिकाऔं का न केवल मूल्यांकन करवाया बल्कि समय रहते नतीजे भी
जारी कियें। प्रदेश सरकार आगामी सत्र के लिए भी शिक्षण कार्य कैसे प्रारम्भ हो, निश्चय तौर पर प्रभावी
रणनीति के कार्यान्वन के लिए प्रयासरत भी होगी।
इस बार के नतीजों में हाईस्कूल
में करीब 84 फीसदी और इंटरमीडिएट में तकरीबन 75 फीसद परीक्षार्थियों की बेहतरीन
सफलता से प्रदेश की शिक्षा की बदलती तस्वीर सुखद लग रही है। प्रदेश में मेरिट में
आनें वाले छात्रों के जनपदों में जश्न का माहौल है। निश्चित तौर पर छात्रों की
सफलता का श्रेय उनकी मेहनत, शिक्षकों और अभिभावकों को जाता है, जिनकी वजह से ही
नतीजों का स्वरूप इस बार बदला नजर आ रहा है।
परन्तु सुखद नतीजों के साये
में निराशाजनक पहलू भी सामनें आया है। जिसमें तकरीबन आठ लाख परीक्षार्थियों का
हिन्दी विषय में अनुत्तीर्ण होना अति निराशाप्रद व चिंतनीय विषय है। इतनें बड़े
पैमानें पर परीक्षार्थियों का अनुत्तीर्ण होना घोर निराशाजनक है कि हिन्दीभाषी
राज्य होनें के बावजूद भी राज्य में हिन्दी की स्थिति में कोई सुधार होता नही दिख
रहा है। इस प्रकार के निराशाजनक नतीजो का आना कोई नयी बात नहीं है, साल दर साल
हिन्दी विषय में अनुत्तीर्ण होनें वाले छात्रों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती
रहीं है, पिछले वर्ष मातृभाषा में असफल होनें वालों की संख्या दस लाख से परे थी।
असफल होने के प्रति कोई
विशेष कारण नही है बल्कि हिन्दी के प्रति समाज में बढ़ती उदासीनता और अरूचि ही है।
जिसका मुख्य प्रभाव लोगो की विकृत होती हिन्दी लेखनकला व व्याकरण सम्बन्धी
त्रुटियों के रूप में स्पष्ट्र रूप से प्रदर्शित हो रहा है। जरा सोचियें कि यदि
इसी प्रकार इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान न दिया गया तो मातृभाषा का भविष्य क्या होगा।
क्या आडम्बर भरी विदेशी भाषा का दम-खम्भ भरनें वाला समाज हिन्दी को संरक्षित रख
पानें में सफल हो पायेगा ?
इस दिशा में सरकार के साथ- साथ शिक्षकों और अभिभावकों की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है जिन्हे बच्चों के मध्य हिन्दी के प्रति बढ़ती अरूचि के कारणों को टटोलना होगा तथा विदेशी भाषा की आड़ में हिन्दी को उपेक्षित करनें वाली मनोस्थिति को बदलना होगा।
इस दिशा में सरकार के साथ- साथ शिक्षकों और अभिभावकों की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है जिन्हे बच्चों के मध्य हिन्दी के प्रति बढ़ती अरूचि के कारणों को टटोलना होगा तथा विदेशी भाषा की आड़ में हिन्दी को उपेक्षित करनें वाली मनोस्थिति को बदलना होगा।
हिन्दी की स्थिति सुधारनें
पर व्यापक स्तर पर कदम उठाना होगा जिसमें हिन्दी को प्रोत्साहित करनें वालों को सरकार
द्वारा सम्मानित कर समाज में रोल मॉडल के रूप में खड़ा करना होगा जिससे हिन्दी के
प्रयोग और प्रचार- प्रसार में लोगो को प्रबल प्रेरणा मिल सकेगी। उदाहरण के रूप में
भारत सरकार द्वारा संचालित डाक विभाग प्रतिवर्ष हिन्दी लेखन को प्रोत्साहित करनें
के उद्देश्य से पत्र लेखन प्रतियोगिता का आयोजन करता है, तथा विजेताऔं को विभाग द्वारा
पुरूस्कृत भी किया जाता है। भारत सरकार को इस प्रकार के प्रयासों के लिए धन्यवाद।
इसी
दिशा में कम से कम हिन्दी भाषी राज्यों में ही सही व्यापक स्तर पर अन्य विभागो को
भी हिन्दी के उत्थान एवं संवर्धन हेतु अग्रेतर प्रभावी कदम उठानें चाहियें। हिन्दी
के विकाश हेतु जिला, तहसील और ब्लॉक स्तर पर गोष्ठियॉ, सम्मेलन प्रतियोगिताये
समय-समय पर निरन्तर आयोजित होती रहनी चाहियें। तथा अब हर एक को हिन्दी के भविष्य
को संरक्षित करनें के लिए आगे आना होगा, यहीं हमारी मातृभाषा के प्रति देशभक्ति
होगी।
लेखक
गौरव सक्सेना
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