बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है


बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है

बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है



बात तकरीबन 10 वर्ष पुरानी है। मेरी मित्र मंडली के एक मित्र सुधाकर की पुत्री के वैवाहिक कार्यक्रम पटना में शामिल होने का मुझे आमंत्रण मिला तो इस बहानें अपनें पुराने सभी मित्रों से मिलनें का स्वर्णिम अवसर मैं गवांना नही चाहंता था। अत: मैने अपनी धर्मपत्नी से यात्रा सम्बन्धी सभी आवश्यक औपचारिक तैयारियॉ करनें की मदद मांगी और अपनें ही शहर में रहने वाले मित्र रमन से भी वैवाहिक कार्यक्रम में जानें की चर्चा की तो वह भी मेरे साथ पटना चलनें के लिए आतुर हो गया, रमन स्वभाव से थोड़ा हसमुख और आधुनिक विचारधारा व्यक्तित्व वाला व्यक्ति था। जहॉ उसकी आधुनिक विचारधारा मेरे सानिध्य में कभी – कभी विवादित चर्चा में भी तब्दील हो जाती थी। 


खैर, हम दोनो के दिल्ली से पटना रवाना होने का दिन भी आ गया और हम दोनों पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर रेलगाड़ी आगमन की प्रतीक्षा करनें लगे इस दौरान हमारी पुरानी यादों का सिलसिला चालू हो गया, रमन की नोंक झोंक, हसी ठिठोली तो मानों थमने का नाम ही नही ले रही थी। इसी बीच हमारी गाड़ी ने भी प्लेटफोर्म पर दस्तक दे दी, और हम दोनों नें अपनी आरक्षित सीट पर अपना कब्जा कर लिया। हमारी गाड़ी खेत- खलिहानों, नगर, और स्टेशनों को पार करती जा रही थी, खराब मौसम के चलते गाड़ी निर्धारित समय से कुछ घन्टे विलम्ब से भी चल रही थी, जो कि अपनी तेज रफतार से चलकर मानों पटना अपनें निर्धारित समय पर पहुंचने का प्रयास कर रही हो। हमारी बातों का सिलसिला बढ़ता ही चला जा रहा था। और आखिर एक लंबी प्रतीक्षा के बाद हम पटना पहुंच ही गये। स्टेशन से बाहर निकलते ही हमनें बस द्वारा मित्र सुधाकर के गांव का रुख किया। बस ने भी हमें स्टापेज पर उतार दिया और फिर हमें पैदल ही गांव तक पहुंचना था।

 तो हम दोनो अपनी मित्र मंडली से मिलन की उत्सुकतावश जल्दी-जल्दी खेतों में बनी पगडन्डी पर पूछते – पूछते अपने मित्र सुधाकर के घर पहुंचे, सुधाकर पुरानें ख्यालात और अपनी प्राचीन विचारधाराऔं से जुड़ा होनें के कारण शहरी अनावश्यक वैवाहिक खर्चो का विरोधी रहा है। तभी तो उसनें अपनी बहिनों की शादी भी अपने ग्रामीण चौबारे से ही पूर्ण की है। हम सभी नें आपसी मेल – मिलाप के साथ वैवाहिक कार्यक्रम की जिम्मेदारियॉ आपस में बांट ली। और फिर बारात का स्वागत, वैवाहिक रस्में, ग्रामीण खान-पान व्यवस्था नें बरबस ही मुझें इन सभी का कायल बना दिया था। परन्तु अचानक से बारात में आये कुछ आधुनिकता की चादर में लिपटे युवकों नें वर (दूल्हे) को लड़की वालों से दहेज के रूप में अन्य सामान की मांग के लिए उकसा दिया, और फिर दूल्हे की अकस्मात इस तरह की दहेज मांग से बारात लौटने तक की नौबत आ गयी, तभी मेरे मित्र रमन नें मानों दूल्हे के कानों में जानें क्या मंत्र फूक दिया कि अचानक से उस लड़के ने अपनी जिद्द तोड़ दी और अपनी गलती मानते हुये बिना दहेज के शादी करनें का मंडप के बीच ऐलान कर दिया, उसका यह ऐलान मानो वर पक्ष के दहेज प्रेमियों के मुख पर एक जोरदार तमाचा था।

बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है


 खैर, शादी खुशी – खुशी निपट गयी और फिर हमनें और रमन नें दिल्ली प्रस्थान के लिए मित्र सुधाकर से विदा मांगी, और तभी सभी मित्रों नें और सुधाकर के परिवारीजनों नें रमन से पूछ ही लिया कि आपनें लड़के के कान में मंडप पर क्या मंत्र फूका था।


 तो सुधाकर नें मुस्कराकर कहा कि  बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है, दूसरे के धन की अपेक्षा अपनी मेहनत से कमाया धन और यश लोक और परलोक दोनों को सम्हालता है। तथा दहेज रहित शादियॉ समाज को एक नयी दिशा देती है तथा बेटियों के सम्मान की रक्षा करती है।रमन के चन्द शब्द गागर में सागर भर गये और यह शादी एक यादगार शादी की भीनी खुशबू से सराबोर कर गयी। तब से लेकर आज तक मित्र रमन और मैं दहेज के कारण टूटते परिवारों को बचानें की यथा सम्भव कोशिश करता आ रहा हूं। तथा समाज में दहेज कुप्रथा के लिए जागरूकता भी फैला रहे है। 

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "दैनिक जागरण कानपुर संस्करण" नें दिनांक 20 फरवरी 2020  को अपने समाचार पत्र के पृष्ठ संख्या 8 पर तथा 22 मार्च 2020 को झंकार पृष्ठ पर स्थान दिया।



बेटी ही सबसे बड़ा दहेज होता है


लेखक
गौरव सक्सेना

Gaurav Saxena

Author & Editor

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