गॉवों में बसता मेरा संसार


गॉवों में बसता मेरा संसार

गॉवों में बसता मेरा संसार


बेटे का बार – बार फोन पर यह कहना पापा शहर में मेरे साथ आकर रहिये और मेरा ग्रामीण जीवन शैली के प्रति आकर्षण उसके आंमत्रण को नित्य नये बहानों में टालना ना जानें कितनें वर्षें से चला आ रहा है। दिल्ली में बेटे का अपना व्यवसाय, नौकर चाकर, गाड़ी बंगला और तमाम अन्य सुख- सुविधायें मेरे ग्राम जीवन, खेत खलियान के आगे बौनें ही है। ग्राम जीवन के प्रति इस तरह का मेरा प्रगाड़ आकर्षण ही तो है जो अकेला एक छोटी सी छप्पर की बनी कोठरी में मुझे जीवित रक्खे है। जीवन के इस पड़ाव में ग्रामीण रहन सहन और शुद्ध खान-पान का ही तो यह नतीजा है कि जीवन के 70 वसन्त देखनें के बाद भी मैं एक नौजवान की तरह खेत-खलिहान, बागवानी और पशुऔ की देखरेख बिना किसी शारीरिक अक्षमताऔं के नित्य करता रहता हूं। 

शाम ढ़लते ही हम उम्र दराज लोगो की चौपाले सजती है और हम अतीत से लेकर वर्तमान तक न जानें कितनें अनुभवों को आपस में साझा करते रहते है। एक दूसरे का सुख-दुख, घर की जटिल समस्याओं को हम सब मिलकर हल निकाल लेते है। भलां यह गॉव वाले ही तो अब मेरे सच्चे साथी रह गये है। शहरी आकर्षण, और तनिक सिक्कों की खनक ने तो न जाने कितनें वर्ष पूर्व ही मेरे भाईयों को अपनें हिस्से की सम्पत्ति बेंचकर शहरी आवों हवा का आदी बना दिया। बेचारे बच्चों के साथ शहरी आवों हवा में ऐसे रचे बसे कि कभी मुड़कर गॉव भी न आ सके। हॉ शायद, आधुनिक हो गये होगे। या फिर शहरी आडम्बरों की कैद में विवश हो गये होगे। 

पिछलें साल दीपावली पर कुछ दिन बेटे के यह़ॉ साथ में गुजारे थें, तब मैनें पाया कि कैसे आज इन्सान शहरी दौड़-धूप में सिमटकर त्यौहारो को केवल औपचारिकताओं में पूर्ण कर रहा है। और निरन्तर एकांकी जीवन की और अग्रसर भी हो रहा है। दीपावली पर्व समापन के बाद भी मजबूरी में चन्द दिन मुझे शहर में गुजारनें पड़े थे, बेटा और बहू का नियत समय पर काम पर जाना और फिर अकेले अन्जान गृह सेवकों के संग पूरा दिन गुजारना तो निश्चित तौर पर एकांकी जीवनशैली का ही रूप है। 

मैं अपनें झोपड़े के बाहर चौबारे में दिन की सुकून भरी धूप सेंक रहा था तथा मन ही मन विचारमग्न होकर अपनें आप से प्रश्न कर रहा था ? कि आज लोग अपनी खेती-किसानी छोड़ कर शहरों में नौकरी के लिए क्यो दौड़ रहा है ? ऐसे कई तमाम प्रश्नों ने मेरे मन मस्तिष्क को अपनें प्रहारो से आहत कर रक्खा था। कि अचानक पड़ोस के एक लड़के नें यह कहकर मेरी एकाग्रता को भंग कर दिया किया कि काका आपके बेटे का फोन आया है। तो फोन कान से लगाकर बातों का सिलसिला चल रहा था तभी बेटे ने कहा कि हम पत्नी सहित अगले हफ्ते आपकों सदैव के लिए शहर लानें के लिए आ रहे है। और जल्द ही हम अपनी गॉव की सम्पत्ति को भी बेंच देगे। बेटे के यह बचन सुनकर तो मानों मेरे पैरों के नीचे की जमींन ही खिसक गयी हो। शाम को भी आज चौपाल में मेरा मन नही लगा। शहर जानें की बात धीरे-धीरे जंगल में आग की तरह पूरे गॉव में फैल गयी और फिर मेरी झोपड़ी में लोगो का मुझसे मिलनें का सिलसिला चालू हो गया। लोग दुखी थे और हम उम्र लोग कह रहे थे कि इस उम्र में अकेला छोड़ कर शहर जा रहे हो। व्यक्तिगत पारिवारिक मसला होनें के कारण लोग अपना प्रेम अधिकार भी नही दिखा पा रहे थें। पर हॉ जैसे- जैसे बेटे के आनें की तिथि नजदीक आती जाती तो हर कोई मिलकर मेरे अच्छे स्वास्थ्य की ईश्वर से प्रार्थना करता, मेरा शहर जाना तो कभी – कभी ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो मैं इस धरा से ही अपनी अन्तिम यात्रा पर जा रहा हूं। 

और फिर मेरा बेटा पत्नी और 18 वर्षीय पौत्री के साथ आकर मेरी झोपड़ी में मुझे निहारनें लगे शायद मेरी सादगी भरे जीवन को समझनें की कोशिश ही कर रहे होगे । साथ मैं वकील साहब भी आये है जो गॉव की सम्पत्ति की अच्छी कीमत लगवा देगे। बेटे का सम्पत्ति आंकलन का यह कार्यक्रम कई दिनों तक चला और फिर हमनें भी हार मानकर शहर जानें के लिए कार में अपने शरीर को रख लिया मन तो शायद गॉव में ही रह गया था।  

गॉवों में बसता मेरा संसार


कार गॉव के खेत खलिहानों को चीरते हुये आगे बढ़ रही थी, कि तभी गॉव निकलते ही लोगो के एक बड़े हुजूम नें कार को रोका और सभी नें बेटे से मुझे शहर ना ले जाने के लिए अनुरोध किया, कुछ नवयुवकों नें बेटे को समझाया कि वह अपना कुछ कारोबार गॉव मे भी लगा सकते हो जिससे काका का भी गॉव से नाता बना रहेगा और हम जैसे नौजवानों को भी आपकी वजह से रोजगार मिल सकेगा। मेरी हम उम्र लोगों की आंखो से छलकते आंसू ने मेरे बेटे का दिल जीत लिया और इसके परिणाम स्वरूप वह मुझे वापस मेरीं झोपड़ी में छोड़ गया। और अगले सप्ताह अपनी टीम के साथ गॉव में व्यापार के उद्देश्य से आया और फिर गॉव वालो के सहयोग से दूध के बड़े कारोबार का श्री गणेश किया गया, अब गॉव मे खुशियों की गंगा बह रही है बेटा समय- समय पर गॉव आकर कारोबार की देख रेख करता है और मैं भी बिना किसी संकोच के उसके पास दिल्ली में उसके घर रहकर पारिवारिक दायित्वों को निभा आता हूं। 

इस छोटी सी कहानी से मैं लोगो को यहीं सन्देश देना चाहंता हूं कि यदि आप तलाशे तो गॉव में भी आज रोजगार के अवसर मौजूद है और भारत एक कृषि प्रधान देश है हमें अपनी खेती – किसानी में अरूचि नही दिखानी चाहिये, मन लगाकर यदि अपनी कृषि को वैज्ञानिक पद्धति से सींचा जाये तो नि:सन्देह हमें शहरों में नौकरी के लिए भटकना नही पड़ेगा। और देश का युवा आत्मनिर्भर बन राष्ट्र उत्थान में अपना भरपूर सहयोग कर सकेगा। 

लेखक
गौरव सक्सेना

Gaurav Saxena

Author & Editor

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