।। व्यंग्यलेख ।। मतदान

।। व्यंग्यलेख ।।

गॉव में साफ सफाई, रोशनी की चकाचक व्यवस्था और मास्टर जी का स्कूल में उपस्थिति होना दिखा रहा है कि चुनावी गतिविधियों ने गॉव में दस्तक दे दी है। तभी मैने भी सोचा कि लोहा गर्म है। ईश्वर की कृपा से अपनी अच्छी खासी साख भी है, निकम्मे है तो क्या शिक्षित तो है ही, चलो चुनावी धधकती अंगीठी में हम भी जौ की बाली भून लेते है। तो उठाया अपना झोला और डायरी और लग गये मतदान के लिये जागरूकता फैलाने,







शुरूआत कहॉ से करें ? पता नहीं कहीं लोग मुझे सरकारी नुमाइंदा न समझ बैठे, ऐसे कई प्रश्नों के चक्रव्यूह ने मुझे घेर रखा था। तो मैने भी कहा कि जब कल्लू हलवाई के अनपढ लड़के को टिकट मिल सकता है, और मुन्शी का भान्जा भी कौन पी0एच0डी0 किये है वह भी तो दंसवी फेल है। राजनीति में अपना हाथ अजमा रहा है, और हम तो एम00 पास है और वो भी राजनीति शास्त्र से, चलों जो होगा देखा जायेगा। और क्या पता अगली बार मुझे भी पार्टी का टिकट मिल जायें। दिवास्वप्न के असीम सुख से ओत -प्रोत होकर मैने सर्वप्रथम चन्दा काकी की झोपडी में ही छापा मार दिया। पाय लागू काकी कैसी हो, ठीक हॅू सब सही है बड़े दिन बाद दिखाई दिये मुरारी बेटा। अरे काकी इस बार वोट किन्हे दे रही हो, मुरारी खबरदार जो वोट का नाम भी लिया,



अरे ! काकी नाराज क्यों होती हो, अगर तुम वोट के महत्व को नहीं समझोगी और वोट डालने नहीं जाओंगी तो एक अच्छी सरकार कैसे बन पायेगी और हम सबका विकास कैसे हो पायेगा। शान्त हो जाओं जब मेरा नाती बीमार पड़ा था तब तुम और तुम्हारी सरकार कहॉ चली गयी थी पूरे गॉव से अपने नाती की बीमारी के लिये कुछ रूपये उधार मॉगे थे किसी ने उधार तक नहीं दिये थे, मैने गहरी सांस ली और अपनी काकी को काफी हद तक मतदान करने के लिये राजी किया तो काकी बोली तुम कहते हो तो मुरारी मैं वोट की चोट जरूर कर दूंगी लेकिन देखती हॅू कौन कितना देता है मैं कुछ समझा नहीं, क्या देने की बात कर रही हो, अरे कल्लू का लड़का 2 दिन पहले पूरे डेढ किलो गरमा-गरम जलेबी देकर गया था और मुन्शी का भान्जा भी 05 किलो चावल दे गया था, और वह कह रहे थे कि काकी वोट हमें ही देना। तो मैने हॉ कह दी। अरे काकी! 




यह तूने क्या किया तेरा वोट तो बहुत कीमती है इस तरह चावल और जलेबी की चाशनी से इसका मोल तोलेगी तो हमारा विकास कैसे होगा। शान्त मन से अपनी समझ से सही योग्य कर्मठ उम्मीदवार का चयन करना ही हमारी जिम्मेदारी है, हॉ ठीक है चलो देखते है। हे राम ! शुरूआत ही इतनी घोर निराशाजनक इसका परिणाम कही मेरे सपनों को चकनाचूर न कर दें।

 

दिन प्रतिदिन हर घर जाता और मतदान की अलख जगाता, यहीं हमारी रोज की दिनचर्या बन गयी थीं, वोटिंग के कुछ दिन पूर्व मैने सोचा, क्यों न रूखड प्रधान से भी मिल लिया जाये, उसके साथ होने से शायद मेरा भी थोडा बहुत नाम अखबारों की सुर्खियों में छप जाये। यही सोचकर प्रधान के घर आ धमका और बातों ही बातों में कहा, कि प्रधान जी वोटिंग वाले दिन समापन समारोह में अपने बगल में खडा कराकर मेरी भी फोटो अखबारों में छपवा देना यह सुनते ही प्रधान भडक उठा और बोला अमां यार तुम तो हर चीज का मजाक समझते हो, काम करना पडता है पैसा खर्च करना पडता है तब कहीं जाकर अखबारों में ये थोपडा छपता है। और मेरे बगल में उस दिन मेरे बहुत सारे चेले भी होगें तुम चाहों तो मेरे पीछे खड़े हो जाना थोडा बहुत चेहरा फोटो में आ ही जायेगा।





मैंने बुझे मन से हॉ बोलकर चल दिया। तभी प्रधान जी बोले अरे ! मुरारी सुनो एक शर्त है कि अगर तुम उस दिन मुझे गोंद में उठा लो और मेरी जय जयकार करने लगो तो मीडिया में तुम्हारी स्पष्ट फोटो आ सकती है, मैने भी गहरी सांस ली और श्रीमान् जी को गोदी में उठाने की शर्त स्वीकार कर ली। और देखते ही देखते वोटिग का दिन भी आ गया, अनमने थके मन से चन्दा काकी के घर गया और बूथ पर जाकर मतदान करवाया। बूथ से बाहर निकलते हुये मैने पूछा कि काकी जलेबी को वोट दिया है या फिर 05 किलो चावल को! अरे मुरारी! तूने ही तो बताया था कि सुनो सबकी करों अपने मन की। वोट किसे दिया है यह बताया नहीं जाता है। 




मैने मन ही मन अपनी मेहनत को उड़ान भरते देख राहत की सांस ली, शाम को जब मतदान समाप्त हुआ तो विशालकाय शरीर बाले प्रधान जी अपने चेलों के साथ बूथ पर आये और बाह-वाही लूटने लगे, इसी बीच पूर्व प्रतिक्रिया के अनुसार मैने जोर से नारा लगाया और प्रधान जी को गोद में उठा लिया। अरे बाप रे फोटो तो खिंच गयी लेकिन मेरे पैरो ने सन्तुलन खो दिया, और प्रधान के चेलों ने जैसे तैसे प्रधान जी को सम्भाला लेकिन मेरा पॉव मोच का शिकार हो गया, कुछ लोग मुझे पकड़कर घर छोड़ गये। मैं थका हारा कब सो गया पता ही नहीं चला। अगले दिन कुछ लोग अखबार लेकर मेरे घर आये और बोले बेटा मुरारी तुम्हारे अच्छे कामों की खबर अखबार में छपी है। मैने अखबार को देखा और अपने पट्टी बॅधे पॉव को फिर अपने आपको। और सोचने लगा मरता सो क्या न करता।  
 
लेखक – गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "वेलकम इंड़िया " नें अपनें 04 दिसम्बर 2021 के अंक में तथा देशधर्म समाचार पत्र नेंं 05 दिसम्बर 2021 के अंक में   प्रकाशित किया है ।
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Gaurav Saxena

Author & Editor

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