धरती पर ही स्वर्ग और ईश्वर है, बस नजर बदलिए ..........



किसी बच्चे के लिए उसके जन्म से लेकर लालन पालन तक माता –पिता का बहुत बड़ा योगदान होता है। बच्चो के लिए अच्छी शिक्षा, वस्त्र और अन्य लालन – पालन में ना जाने माता-पिता ने अपने कितने अरमानों की आहुति दी है। माता – पिता हमारे लिए धरती पर साक्षात भगवान के रूप में है, जिनकी सेवा करने से सन्तानों की यश, बल, बुद्धि, और आयु बढ़ती है। सन्तानों का दायित्व है कि वे माता – पिता के उपकारों को सदैव स्मरण रक्खे तथा वृद्धावस्था में माता-पिता की सेवा अवश्य करें, जब वे केवल सन्तानों पर ही आश्रित होते है। तभी हमारा मानव धर्म और जीवन सफल हो पायेगा। परन्तु वर्तमान परिवेश में स्थिति घोर निराशाजनक है जहॉ हम रोटी के चन्द टुकड़े जुटाने के लिए मॉ- बाप को अक्सर भूल जाया करते है। एक सन्त की बात का मैं यहॉ जिक्र अवश्य करना चाहंता हूं। उन्होने कहा है -  


जितना प्रेम तुम अपने कुत्ते से करते हो, उसका दस प्रतिशत भी यदि तुम माता-पिता पर न्यौछावर कर दोगे तो उनका बुढ़ापा सुधर जायेगा और तुम अगले जन्म में कुत्ता बनने से बच जाऔगे।


माना कि आप आधुनिक है और आपके माता – पिता आपकी जैसी आधुनिक सोच के नही है। तो इस बात का अवश्य ध्यान रक्खें कि आधुनिकता सदैव अनुभव से छोटी होती है। यकीन मानिए आज भी तकनीकी ने व्यक्ति के अर्जित अनुभव से सदैव शिक्षा ग्रहण की है। आप भी अपनी व्यस्तम जीवन शैली से कुछ पल अवश्य निकालकर वुजुर्गों के सान्धिय में बैठकर उनके अनुभवो को सुनिए और ज्ञान अर्जित करिए क्योकि अनुभव सबसे बड़ा गुरू है।


वृद्धावस्था वह एक सच है जिससे हर एक को गुजरना पड़ता है। चलने फिरने में कमजोरी, अनेको रोगो का जमावाड़ा, कम होती नेत्र ज्योति, क्षीण होती स्मरणशक्ति, मशीनों के सहारे जबाब देती श्रृवण शक्ति नि:सन्देह वृद्धावस्था की ही निशानी है जो कि हमारे पास भी एक न एक दिन आने वाली है और मृत्यु के समान अटल है। 


माता – पिता यदि हमारे आचरण, व्यवहार से खुश होगे तो हमें उनका आर्शीवाद मिलेगा जिससें हमारा लोक व परलोक दोनो सुधर जायेगें। आज हम जो भी है जिस स्थिति में उसका श्रेय हमारे माता – पिता को जाता है जिन्होने अपना पेट काट – काट कर हमारी इच्छाये पूरी की और हमें सच्चे अर्थो में इन्सान बनाया। आइये पहल करें अपने घर में खुशियॉ फैलाये और इन खुशियों में अपने माता- पिता को सामिल कर जीवन सफल बनायें। घर पर ही उन्हे इतना मान सम्मान और प्यार दे कि उन्हे किसी अनाथालय का द्वार न खटखटाना पड़े। अगर सभी लोग इन बातों का चिन्तन करे तो नि:सन्देह देश में अनाथालय बनानें की आवश्यकता ही नही पड़ेगी। 

लेखक – गौरव सक्सेना
 

Gaurav Saxena

Author & Editor

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