मॉ के लिए कोई खास दिन ही क्यो, हर- पल है "खास"

मॉ, शब्द की महत्ता को तो केवल अन्तर्मन से महसूस किया जा सकता है। मॉजन्मदायिनी है और इस जीवन रूपी युद्ध को जीतने के योग्य बनाने वाली एक गुरू भी हैजो बालक की प्रथम पाठशाला में ही संस्कारों का बीजारोपण कर एक सच्चा इन्सान औऱ एक सभ्य समाज बनाने का जिम्मा लेती है। इसके ह्दय में विराट सागर रूपी करूणामस्तिष्क में संस्कार रूपी विचारो की अग्नि औऱ भुजाऔ में अथक परिश्रम की जिजीविषा सदैव प्रज्जवलित रहती हैजो निरन्तर अपनी सन्तानों को बिना किसी भेदभाव और कामना के अविरल पोषित करती रहती है। वह मॉ ही है जिसनें इस सुन्दरतम् संसार को रचा है। धन्य है मॉ तू जिसनें नारी के हर रूप को सार्थकता दी और जिसके आंचल में स्वंय ईश्वर ब्रम्हाविष्णु महेश भी खेले।

मॉ वह अमूल्य सुकून भरी छांव है जिसकी गोद मेरे हर एक कष्ट्र का निवारण अपनी थपकी से कर देती है। वह अध्यात्म की उपजा हैविचारों और संस्कारों की भूमिजा हैवह धरती पर ईश्वर का जीवन्त रूप है।

मॉ के लिए क्या लिखूं ... आज प्रकाशित सभी अखबारों में शब्दों के महारथियों ने मॉ पर अपनी सारी लेखनी ही उड़ेल दी है, कई जानी मानी हस्तियों ने आज अपनी भीड़ भरी जिन्दगी में से चन्द पल मॉ के नाम संरक्षित कर सेल्फी के रुप में सोशल मीडिया पर तस्वीर सांझा कर अपने कर्मों से इतिश्री कर ली है।

टी0वी0 चैनल हर आधा घन्टे के अन्तराल पर मॉ की ममता को उजागर करते कार्यक्रम चला रहे है, फिल्मी गीतों के माध्यम से मॉ को याद किया जा रहा है। जैसे – मेरी मॉ तू कितनी भोली है............... मेरी मॉ.
बाजारों में मॉ को उपहार देने के लिए चारों तरफ महगाई से भरी दुकानें सजी खड़ी है, खरीददार भी आज उपहार खरीदनें में कोई कसर नही छोड़ना चांहते है।


हद तो तब हो गयी जब शहर के कुछ बड़े बड़े लोग आम जनमानस की नजरों से स्वयं को बचाकर वृदाआश्रम में अपनी मॉ को खोज रहे थे। पता नही आज कायनात में क्या चल रहा है कि किसी मॉ का लाल वृदाआश्रम में दुलार लुटा रहा है। आज तो मालूम पड़ रहा है कि मॉ तपिस्वनी शबरी कों वर्षों के इन्तजार के बाद वृदाआश्रम में कोई राम मिल गया हो। नही नही राम को इस रुप में प्रदर्शित करना ठीक नही होगा। लेकिन क्या हम इन शहरी बाबुओं को कलयुगी राम कह सकते है। लेकिन यह प्रश्न भी काफी हद तक निरुत्तर ही लग रहा है।


समझ में ही नही आ रहा है कि मॉ को शब्दों मे कैसे पिरोहू.....क्या हमनें मॉ शब्द सें कोई समझोता तो नही कर लिया या फिर हम पर आधुनिकता ने अपना वशीकरण तो नही कर लिया। या चन्द सिक्के बटोरने की जद्दोजहद में कही हमनें मॉ कों इसी खास दिन के लिए तो ................। 


बस बस ! मै अब और नही लिख सकता, मेरी लेखनी पर ही विराम लगता नजर आ रहा है।
मेरी प्रार्थना कि भगवान हम सब को इतनी सदबुद्धि दे कि मॉ के लिए कोई खास दिन न हो, हर दिन ही खास हो। परिवारों में इतना प्रेम हो कि वृदाआश्रम बनवाने ही न पड़े।
                

लेखक

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें अपनें 08 मई 2022 के अंक में प्रकाशित किया है। 

मॉ के लिए कोई खास दिन ही क्यो, हर- पल है  "खास"

 


 

 

Gaurav Saxena

Author & Editor

0 Comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in comment Box