लटकन की लटकनी महिमा

 

लटकन की लटकनी महिमा

लटकन की लटकनी महिमा

उन्हे पता है कि वह लटकनें से टपक जायेगे क्योकि उन्होनें बचपन में ट्रक के पीछें लिखा हुआ बखूबी पढ़ा रखा है कि लटक मत टपक जायेगा। अब मन है कि बिना लटके मानता ही नही है, मन लटकनें की मोह माया को कभी छोड़ ही नही पाता है। कभी हमारे लिए कोई लटका था तो आज हमें भी किसी के लिए लटकना पड़ेगा। यह लटकना एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कारों के रूप में प्रवाहित होता रहता है। माना कि लटकनें में भी कई जोखिम है जैसे गिरकर हाथ- पैर खुल जानें का, पुलिसियां लठ्ठ के चल जानें का, लेकिन हमें इन्ही सब से बचना है और इनसे बचनें के दांव पेच आगे आनें वाली पीढ़ी को सिखाना है। हमारा लटकन यहीं तो मात खा गया, बेचारा अपनें भतीजों को बोर्ड की परीक्षा में स्कूल के पीछें की खिड़की से लटककर नकल मुहैय्या करवा रहा था ताकि बच्चें पास हो सके लेकिन क्या बतायें उड़नदस्ते की कारों की आवाज से बेचारे का सन्तुलन बिगड़ गया और दीवार से नींचे गिरा और ऐसा गिरा कि छ: महीनें हो गये उठ नही सका। वहीं दूसरी तरफ भतीजों का सन्तुलन तो पहले से ही पढ़ाई से बिगड़ चुका था नतीजन दूसरी बार भी गोता लग गया। अब यदि लटकन चच्चू स्वस्थ्य होकर उठ खड़े हुये तो कहीं जाकर अगले साल पास होनें की उम्मीद है।

हमारें गॉव में तो हर घर में लटकन पायें जाते है, तभी तो पिछली वर्ष स्कूल का रिजल्ट अब्बल आया था, टीचर परेशान थें कि उन्होनें इस अब्बल रिजल्ट के लिए कभी इतनी मेहनत की ही नही थी तो फिर बच्चों को कौन द्रोणाचार्य जी मिल गयें जो रिजल्ट पूरे जनपद में अब्बल आया है। वास्तव में यह कमाल तो लटकन चच्चा का है जो हर जगह व्याप्त है। स्कूल से लेकर यूनीवर्सिटी तक लटकन की लटे बिखरी पड़ी है। एक बार प्रधान जी अपनें बच्चे की परीक्षा वाले दिन अपनें लटकन को स्कूल में लटकनें के लिए भेजना भूल गये तो उनका बच्चा बेचारा पूरे 3 घन्टें पंखा ही निहारता रहा और एक अक्षर भी कापी पर नही लिख सका। घर आकर उसनें प्रधान जी को बताया कि आपके लटकन की बजह से आज मेरा पेपर खराब हो गया है और इस बार भी मैं फेल हो जाऊगा। तब प्रधान जी नें बड़े अनुभवी लटकन को याद किया जिसकी बड़ी लटे शिक्षा बोर्ड तक फैली थी। फिर क्या था बड़ा लटकन पहुंच गया बोर्ड के अन्दर और फिर वहॉ पर उसे कई अन्य प्रकार के लटकन मिलें जो जैसा दाम वैसा काम के हिसाब से फेल हुयें को पास और पास हुयें को टॉप करवानें का ठेका लेते थे।

पता चला कि प्रधान जी के लड़के नें कापी पर कुछ भी नही लिखा था इससे आगे की राह और अधिक आसान हो गयी और फिर एक मेधावी लटकन नें पूरी कॉपी कुछ घन्टे में भर कर तैयार कर दी औऱ रिजल्ट में प्रधान जी का लड़का प्रथम श्रेणी पास हुआ। वो तो प्रधान जी लोभी ठहरे इसलिए उन्होनें प्रथम श्रेणी का ही पेकेज खरीदनें के लिए बोला था नही तो लड़का जिला टॉप ही करता।

लेकिन अब यह टॉपर बेरोजगारों की फौज में खड़े होकर सरकारी नौकरी के लिए आवेदन फार्म भर रहे है, इस उम्मीद में कि शायद कोई लटकन यहॉ पर भी मिल जायें जो उन्हे एक सरकारी नौकरी दिलवा दें।

  व्यंग्यकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "देशधर्म" नें 26 फरवरी 2023 के अंक में प्रकाशित किया है। 

लटकन की लटकनी महिमा



Gaurav Saxena

Author & Editor

0 Comments:

Post a Comment

Please do not enter any spam link in comment Box