छात्रवृत्ति की छाया

 

छात्रवृत्ति की छाया


छात्रवृत्ति की छाया

आज फिर राजा विक्रम पेड़ से बेताल को पकड़कर कन्धे पर लटकाकर चलना शुरू करते ही है तभी हमेशा की तरह बेताल जोर से हंसता है, लेकिन राजा विक्रम उसकी हंसी पर मौन रहकर लम्बी- लम्बी डग भरनें लगते हैं। बेताल फिर से एक कहानी राजन को सुनाने लगता है।  

राजन सुनों, एक नगर से सटे गॉव में एक किसान अपनी पत्नी और इकलौते पुत्र के साथ अपनी टूटी- फूटी झोपड़ी में रहता था, दिनभर किसान जमींदार के खेतों पर काम करता उसी से जो धन मिलता उससे परिवार का भरण पोषण करता। पुत्र व पत्नी भी कामों में हाथ बंटाते। उसका पुत्र अपने पिता की ही तरह परिश्रमी व कुशाग्र बुद्धि का था। किसान अपनें पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाना चाहंता था लेकिन धन के अभाव में वह बालक को किसी उच्च शिक्षण संस्थान तक शिक्षा हेतु नही पहुंचा सका, प्रारम्भिक शिक्षा के बाद उसके पुत्र की शिक्षा ग्रहण लग गया। ऐसे में उच्च शिक्षा का विचार किसान को मन ही मन कचौटता रहता था। 

एक दिन भरी धूप में वह अकेला खेत में काम कर रहा था तो एक कार खेत के पास रास्तें में गड्डे में फंस गयी उस कार में से एक सूट बूट पहनें सज्जन निकलें और उस व्यक्ति को सूनसान रास्ते में सिवाय उस किसान के कोई भी नजर नही आया। वह व्यक्ति किसान के पास जाकर बोला कि उसे शहर में जाना है इस गांव में सरपंच से मिलनें आया था और इस गड्डे में उसकी कार फंस गयी, आप मेरी कार निकलवानें में सहयता कर दे जिससें मैं समय से शहर पहुंच सकूं। किसान नें बिना समय गवायें कार में धक्का लगाना शुरू किया और कुछ समय के परिश्रम से कार गड्डे से बाहर आ गयी। वह व्यक्ति कार से निकलकर किसान का धन्यवाद अदा करनें लगा औऱ थोड़ी सी बातचीत का सिलसिला चल पड़ा तो बातो ही बातों में किसान नें अपनें बेटे को उच्च शिक्षा दिलानें की भी बात की। इस पर उस व्यक्ति नें कहा कि आप बेबजह डर रहे है, आज के समय में तो सरकार द्वारा शिक्षा मुफ्त में दी जा रही है, हर एक गरीब अपनी शिक्षा पूर्ण कर सके इसलिए सरकार द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है, आप एक बार शहर में जाकर शिक्षण संस्थान से सम्पर्क तो करें, आप यकीन मानियें कोई परेशानी नही आयेगी, इतना कहकर वह व्यक्ति चल दिया।

उस रात किसान को नींद नही आयी वह सोच रहा था कि वह बेबजह ही डर रहा था, सरकार शिक्षा के लिए कितना अच्छा काम कर रही है, छात्रवृत्ति के बारे में सोचते- सोचते उसकी आँख लग गयी। अगली सुबह वह अपनें बच्चे को लेकर शहर के एक कॉलेज में गया तो वहॉ बताया गया कि वह सारे दस्तावेज के साथ पूरे वर्ष की फीस जमा करें तब उसके बच्चें का एडमीशन उच्च शिक्षा के लिए हो जायेगा। किसान नें कहा लेकिन हमें तो पता चला है कि सरकार छात्रवृत्ति प्रदान करती है, तो तुरन्त क्लर्क नाराज होकर बोला कि छात्रवृत्ति क्या तुम्हे पहले दिन ही दे दी जायें, छात्रवृत्ति के चक्कर में रहोगे तो अनपढ़ ही रह जाओगे, अभी फीस जमा करवाओं बाद में अगली साल छात्रवृत्ति आयेगी। एडमीशन करवाना चांहते हो तो जल्दी से फीस जमा करों मेरे पास लिमिटेड सीटे है अगर सीट न बची तो फिर लेते रहना छात्रवृत्ति....    

किसान डर गया और गॉव जाकर अपनी जमा पूंजी के साथ-साथ ब्याज पर पैसा उधार लेकर बच्चे की फीस भरी। जैसे- तैसे एडमीशन हो गया घर आया तो पत्नी बोली कि उधार का पैसा कैसे चुकाओगे, तुमनें तो जमींदार को पहले का ही उधार चुकता नही किया है और अब यह नया उधार....

तो किसान बोला चिन्ता न करों अगली साल जब सरकार बच्चें को छात्रवृत्ति देगी तब हम उधार चुकता कर देगे, थोड़े दिन की ही तो बात है अपना बेटा पढ़ लिख जायें और चार पैसा कमानें लगे फिर अपनें भी दिन फिर जायेगे। उधर बच्चे की पढ़ाई चल रही थी, छात्रवृत्ति की राह देखते- देखते साल भी बीत गयी फिर एक दिन किसान नें अखबार में खबर पढ़ी और गश खाकर गिर पड़ा। पता है राजन वह गश खाकर क्यों गिरा ?

तो राजा विक्रम बोले-  बच्चे को किसी कारण से कॉलेज से निकाल दिया गया होगा इसलिए बेचारा गश खाकर गिया गया होगा।

बेताल बोला - नही राजन, इस बार भी छात्रवृत्ति के लुटेरों नें बच्चों की छात्रवृत्ति लूट ली थी। अखबार में खबर थी कि कॉलेज नें फर्जीवाड़े से बच्चों की छात्रवृत्ति हड़पी ली....

राजा यह सुनकर व्यथित हो गया किन्तु उत्तर देनें में उसका मौन भंग हो चुका था। इसलिए बेताल हर बार की तरह फिर से हवा में उड़ गया।

 

व्यंगकार

गौरव सक्सेना

उक्त लेख को दैनिक समाचार पत्र "नई दुनिया" नें अपनें अधबीच स्तम्भ में दिनांक 22 फरवरी 2023 को प्रकाशित किया है। 

छात्रवृत्ति की छाया


Gaurav Saxena

Author & Editor

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